Mar 1, 2016

बजट-विश्लेषण

  बजट-विश्लेषण 

पूरे अखबार में केवल बजट ही बजट की खबरें |जिन्हें नौ का पहाड़ा तक नहीं आता वे भी अपनी प्रतिक्रिया दे रहे हैं |तोताराम ने भी आते ही पूछा-बजट के बारे में तेरे क्या विचार हैं ?

वैसे हम जानते हैं यदि किसी आदमी से पूछा जाए कि तेरे सामने शेर आ जाए तो तू क्या करेगा ? तो क्या ज़वाब होगा |इसका ज़वाब तो शेर ही दे सकता है क्योंकि जो कुछ करना है वह तो शेर ही करेगा कि कब मारे और कहाँ जाकर भक्षण करे ? भला कोई आदमी क्या उत्तर दे सकता है इसका ?

सब कुछ जानते हुए भी हमने कहा- पहले यह बता कि बजट किस पार्टी के वित्त मंत्री ने बनाया है, वह सवर्ण है या दलित, हमारी जाति का है या विजातीय ? क्योंकि जब न्याय देना, पानी पिलाना, इलाज़ करना, स्कूल कालेज में प्रवेश देना तक जाति-धर्म पर आधारित होता है तो फिर हम बिना जाति-धर्म-पार्टी जाने कैसे प्रतिक्रिया दे दें |

बोला- यह भी कोई बात हुई ?प्रतिक्रिया बजट पर देनी है या व्यक्ति पर ?

हमने कहा-जिसने भी बनाया है अच्छा बनाया है |कल्याणकारी, विकासोन्मुख, अनुपम, अभूतपूर्व और अद्वितीय है |

बोला- इतने विशेषण तो मोदी जी और अडवानी जी ने भी नहीं लगाए और तू बिना पढ़े ही माला जप रहा है |

हमने कहा- समय के साथ चलना चाहिए |हम बिना बात भक्ति-अभक्ति के चक्कर में नहीं पड़ना चाहते |कैसा भी हो, किसी ने भी बनाया हो, है तो सत्ताधारी |सत्ताधारी ही हमारे अन्नदाता होते हैं |यह तो उन्होंने अपने ही फंड में से पैसे निकालने पर टेक्स ही लगाया है |अगर वे देशहित में फंड को ज़ब्त कर लें या देशहित में हमारी पेंशन आधी कर दें तो भी उन्हें कौन रोक लेगा?

अपना तो वह हाल है- एक कार वाले ने एक गरीब को टक्कर मार दी |कार वाला तो कार वाला उसे कौन पकड़े लेकिन पुलिस वाले ने उस गरीब को पकड़ लिया और ज़रा सा डंडा चुभाया कि वह जोर-जोर से चिल्लाने लगा | तभी एक थानेदार साहब वहाँ आ पहुँचे |उन्होंने उसे चिल्लाते देख गुस्से में एक ठोकर मारी और कहा- साले, क्यों चिल्ला रहा है ? बता कहाँ लगी है ?

वह बेचारा और भी घबरा गया, बोला- साहब, पता नहीं कहाँ लगी है ?आप जहां कह दो वहीं लगी है |सो बन्धु, जो तू या तेरे 'वो' कहें, वह सही है |

तोताराम बोला- ऐसे गोलमोल ज़वाब से काम नहीं चलेगा |यह बजट किसान और आम आदमी को ध्यान में रखकर बनाया गया है और तू आम आदमी है इसलिए प्रतिक्रिया देने से नहीं बच सकता |बताना ही पड़ेगा |

हमने फिर घुमाया- उन्होंने मेरे जिस हित के लिए बनाया है वह हित सिद्ध हो गया |

फिर बोला- क्या हित ?

हमने कहा- आम हो या आम आदमी दोनों में आम प्रमुख है |विशेष्य से अधिक विशेषण का महत्त्व होता है |सो विशेषण है आम |और आम का उपयोग है कि उसे मौसम में जितना हो सके चूसा जाए |जब चूसने से मन भर जाए तो उसे भविष्य अर्थात ऑफ सीज़न में काम में लेने के लिए उसका 'आम पापड़ा' या कोल्ड ड्रिंक या ज्यूस बना लिया जाए |कच्चा हो तो अमचूर बना लिया जाए और पीस कर सब्ज़ी में डाला लिया जाए या फिर अचार बना लिया जाए और कभी भी परांठे के साथ खाया जाए |

और कुछ अधिक जानना है तो यह रहा हमारा ४२० पेज का विश्लेषण |ले जा, फुर्सत से पढ़ना और पढ़ाना |

बोला- यह सब तुमने कब लिख लिया ?

हमने कहा- हमें सब पता है | अब तक साठ-सत्तर बजट देख लिए |

बोला- इसका मतलब तुझे सब कुछ समझ में आता है लेकिन यह किसी भी वित्त मंत्री के लिए शर्म की बात है कि उसका बनाया बजट तेरे जैसे आम आदमी की समझ में आ गया अन्यथा बजट तो अर्थशास्त्रियों तक को क्या, खुद बनाने वाले तक को समझ में नहीं आता |

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