'बनिए' बिना अकल के नहीं बनते
सुमित अग्रवाल
तुमने केजरीवाल को फ़्रांस के राष्ट्रपति के लिए, हमारे राष्ट्रपति भवन में आयोजित औपचारिक कार्यक्रम में सेंडिल पहनकर जाने पर अच्छे से फॉर्मल जूते पहनने की सलाह देते हुए ३६४ रुपए का ड्राफ्ट भेजकर अपनी बनिया बुद्धि का परिचय दे दिया कि 'बनिया' बनने के लिए बड़ी अकल चाहिए | इतने रुपए में तो किसी समाचार पत्र में तीए की बैठक का समाचार भी नहीं छपता और तुम कितने सस्ते में ही एक साथ कई समाचार पत्रों में एक साथ छप गए |ऊपर से सभ्यता और दानवीरता का ठेका और ले लिया |
तुमने लिखा कि बहुतकोशिश के बाद इतने पैसे जुटा पाया |यह बात कुछ हज़म नहीं हुई |तुम इंजीनीयर हो, व्यापार करते हो, मारवाड़ी बनिए हो तो हम भी मारवाड़ी ही हैं, ठेठ शेखावाटी के | बनियों के बीच ही पीला, बढ़े, पढ़े हैं |हमने तो देखा है कि बनिया मारवाड़ी क्या, कहीं का भी हो यदि भीख माँग रहा है तो भी समझो लाख-दो लाख का असामी तो है ही |और फिर व्यापार ? कहा भी है व्यापारे वसति लक्ष्मी |
सब जानते हैं, ३६४ रुपए में आजकल कैसे जूते आते हैं ? और फिर इतनी बड़ी गेदरिंग में जाने के जूते ?तुमनेआगे कहा- यदि और पैसों की ज़रूरत हो तो लिखें |मैं कुछ और पैसे जुटाने के लिए सारे शहर का चक्कर लगा आऊँगा |मतलब चंदा करूंगा | किसे पता नहीं कि चंदे से बढ़िया कोई धंधा नहीं ? समाज सेवा और धर्म का नाटक और बिना किसी रिस्क और निवेश के शुद्ध कमाई |टेक्स का कोई झंझट नहीं | वैसे भी टेक्स बचाने के गुर आपसे अधिक कौन जानेगा |
हमारे गाँव में बनिए अपनी दुकान पर गौशाला की एक दान पेटी लगाकर रखते थे जिसमें वे खुद पैसा नहीं डालते थे बल्कि ग्राहकों से आग्रह करके डलवाते थे और अपने नाम से गौशाला में जमा करवाते थे |उस पेटी में से कितना पहले ही निकाल लेते होंगे, यह वे जाने |हम क्यों आरोप लगाएं लेकिन यह तय है की चंदे में से कम से ३५ प्रतिशत न खाने वाला नरक में जाता है तो आप भी नरक में क्यों जाना चाहोगे |आप जानते हैं कि सभी गौशालाओं के अध्यक्ष और मंत्री बनिए ही क्यों होते हैं ?
खैर छोडो, लेकिन एक बात याद रखो आदमी महँगे कपड़ों के नहीं अच्छे कर्मों से बड़ा बनता है, पूजा जाता है, इतिहास में दर्ज हो जाता है |वैसे इतिहास में तो गाँधी गोडसे दोनों ही दर्ज हैं लेकिन फर्क तुम समझते हो ?कबीर, रैदास जैसे संतो की बात छोड़ो आज के महात्मा गाँधी,विनोबा, बाबा आमटे, मदर टेरेसा को ले लो कैसे कपड़ों में रहते हुए क्या बन गए |
इसलिए यदि कुछ कर सको तो अपनी कमाई से,निष्काम भाव से परोपकार करो |पता है, धन की सर्वश्रेष्ठ गति है दान |
सुमित अग्रवाल
तुमने केजरीवाल को फ़्रांस के राष्ट्रपति के लिए, हमारे राष्ट्रपति भवन में आयोजित औपचारिक कार्यक्रम में सेंडिल पहनकर जाने पर अच्छे से फॉर्मल जूते पहनने की सलाह देते हुए ३६४ रुपए का ड्राफ्ट भेजकर अपनी बनिया बुद्धि का परिचय दे दिया कि 'बनिया' बनने के लिए बड़ी अकल चाहिए | इतने रुपए में तो किसी समाचार पत्र में तीए की बैठक का समाचार भी नहीं छपता और तुम कितने सस्ते में ही एक साथ कई समाचार पत्रों में एक साथ छप गए |ऊपर से सभ्यता और दानवीरता का ठेका और ले लिया |
तुमने लिखा कि बहुतकोशिश के बाद इतने पैसे जुटा पाया |यह बात कुछ हज़म नहीं हुई |तुम इंजीनीयर हो, व्यापार करते हो, मारवाड़ी बनिए हो तो हम भी मारवाड़ी ही हैं, ठेठ शेखावाटी के | बनियों के बीच ही पीला, बढ़े, पढ़े हैं |हमने तो देखा है कि बनिया मारवाड़ी क्या, कहीं का भी हो यदि भीख माँग रहा है तो भी समझो लाख-दो लाख का असामी तो है ही |और फिर व्यापार ? कहा भी है व्यापारे वसति लक्ष्मी |
सब जानते हैं, ३६४ रुपए में आजकल कैसे जूते आते हैं ? और फिर इतनी बड़ी गेदरिंग में जाने के जूते ?तुमनेआगे कहा- यदि और पैसों की ज़रूरत हो तो लिखें |मैं कुछ और पैसे जुटाने के लिए सारे शहर का चक्कर लगा आऊँगा |मतलब चंदा करूंगा | किसे पता नहीं कि चंदे से बढ़िया कोई धंधा नहीं ? समाज सेवा और धर्म का नाटक और बिना किसी रिस्क और निवेश के शुद्ध कमाई |टेक्स का कोई झंझट नहीं | वैसे भी टेक्स बचाने के गुर आपसे अधिक कौन जानेगा |
हमारे गाँव में बनिए अपनी दुकान पर गौशाला की एक दान पेटी लगाकर रखते थे जिसमें वे खुद पैसा नहीं डालते थे बल्कि ग्राहकों से आग्रह करके डलवाते थे और अपने नाम से गौशाला में जमा करवाते थे |उस पेटी में से कितना पहले ही निकाल लेते होंगे, यह वे जाने |हम क्यों आरोप लगाएं लेकिन यह तय है की चंदे में से कम से ३५ प्रतिशत न खाने वाला नरक में जाता है तो आप भी नरक में क्यों जाना चाहोगे |आप जानते हैं कि सभी गौशालाओं के अध्यक्ष और मंत्री बनिए ही क्यों होते हैं ?
खैर छोडो, लेकिन एक बात याद रखो आदमी महँगे कपड़ों के नहीं अच्छे कर्मों से बड़ा बनता है, पूजा जाता है, इतिहास में दर्ज हो जाता है |वैसे इतिहास में तो गाँधी गोडसे दोनों ही दर्ज हैं लेकिन फर्क तुम समझते हो ?कबीर, रैदास जैसे संतो की बात छोड़ो आज के महात्मा गाँधी,विनोबा, बाबा आमटे, मदर टेरेसा को ले लो कैसे कपड़ों में रहते हुए क्या बन गए |
इसलिए यदि कुछ कर सको तो अपनी कमाई से,निष्काम भाव से परोपकार करो |पता है, धन की सर्वश्रेष्ठ गति है दान |
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