Dec 14, 2016

निष्काम वक्ता

  निष्काम वक्ता 

 ११ दिसम्बर २०१६ को मोदी जी ने बनासकांठा में एक चीज़ फेक्ट्री के उद्घाटन के अवसर पर कहा- मुझे लोकसभा में बोलने नहीं दिया जाता तो मैंने जनसभा में बोलने का निश्चय किया है |

हमें बहुत बुरा लगा | जैसे ही तोताराम आया हम उसी पर पिल पड़े- देखा तोताराम, मोदी जी का क्या हाल बना दिया है ?  भले ही १०० में से मात्र ३१ वोट मिले हैं लेकिन सीटें तो दो तिहाई मिली हैं |पिछले २५ वर्षों से देश में जोड़-तोड़ के गठबंधन ही सरकार बनाते रहे हैं |ऐसे में यह बहुत  बड़ी उपलब्धि है |लोकतंत्र के उज्जवल भविष्य का संकेत है | लेकिन उसी दल के नेता को लोकसभा में बोलने तक नहीं दिया जाता | यह हाल तो तब है जब सबसे बड़े विरोधी दल तक को विरोधी दल का संवैधानिक दर्ज़ा तक प्राप्त नहीं है | 

तोताराम बोला- बोलने कौन नहीं दे रहा है ? मोदी जी क्या, उनके सिपहसालार तक संसद में दहाड़ रहे हैं | हर विपक्षी को हर बात पर गरिया और लतिया रहे हैं | बात यह नहीं है कि मोदी जी को बोलने नहीं दिया जा रहा है |बात यह है कि संसद में लोग टोका-टाकी करते हैं | मोदी जी को अपनी प्रायोजित रैलियों में बोलने का अभ्यास है जहाँ या तो पार्टी के टिकटार्थी, मंत्री-पदार्थी और ठेकार्थियों के अलावा वे लोग अधिक होते हैं जो दो सौ रुपए रोज की दिहाड़ी पर आए हुए होते हैं जिन्हें उनके बीच बैठे कार्यकर्त्ता या मंच पर पीछे बैठे निर्देशक बताते रहते हैं कि कहाँ ताली बजानी हैं, कहाँ नारे लगाने हैं और कहाँ 'मोऽदी..मोऽदी..मोऽदी..' चिल्लाना है | और उसमें मोदी जी चाहे जितना बोलें कोई टोकने वाला नहीं |

अब बन्धु, यह तो संसद है |जहाँ दूसरे भी कोई मिट्टी के माधो नहीं है और ये कोई पूर्ण पुरुष नहीं जिससे कि कोई गलती हो ही नहीं सकती |यह तो खुला मंच है कोई टी.वी.और रेडियो स्टेशन का आमंत्रित श्रोताओं वाला सुरक्षित कवि सम्मेलन तो है नहीं जहाँ हूट होने का डर ही न हो |

हमने कहा- तुमने वह किस्सा सुना नहीं ? एक महिला अपने पति को डाक्टर से पास लेकर गई और कहा- साहब, ये रात को नींद में बड़बड़ाते हैं |कोई दवा दीजिए |डाक्टर ने कहा- आप इन्हें दिन में बोलने का अवसर दिया कीजिए | जब दिन में बोलने नहीं देंगी तो फिर यही होगा कि ये नींद में बड़बड़ा कर अपनी खाज मिटाएँगे | बोलने की आदत गैस, दस्त,खुजली की तरह होती है |इसीलिए तो प्रेशर कुकर में प्रेशर रिलीज़ होने की भी व्यवस्था रहती है | 

लोकतंत्र में सभी बोलते हैं और सभी चुप भी रहते हैं |कभी हिट भी होते हैं और कभी पिट भी जाते हैं |इसे खेल भावना से लेना चाहिए |लेकिन आदत धीरे-धीरे ही तो बदलेगी |पहले भी तो गुजरात में स्पष्ट बहुत वाले सदन में बोलते रहे हैं |विपक्षियों को भी इस मामले में थोड़ा धैर्य और संयम से काम लेना चाहिए |अन्यथा उन दो सौ सांसदों की बला बनासकांठा की तरह के बेचारे सीधे-सादे लोगों पर पड़ेगी |

बोला- यह तो होगा ही |यदि बड़े-बड़े महापुरुषों की पत्नियाँ या जिनके नहीं थी तो उनके घर वाले उन्हें घर में थोड़ा बहुत बोलने का मौका देते रहते तो वे घर छोड़कर नहीं जाते और अपने भाषणों से देश-दुनिया के प्राण नहीं खाते फिरते |या फिर इसका एक उपाय और है कि संसद में निर्विघ्न बोलने की कामना करने वालों को प्रोफ़ेसर साहब की तरह अपना स्वभाव बदल लेना चाहिए |

हमने पूछा- कैसे ?

बोला- एक प्रोफ़ेसर साहब छुट्टी के दिन भी नियत समय पर तैयार होकर कॉलेज जाने लगी तो पत्नी ने टोका- आज तो छुट्टी है |कहाँ जा रहे हैं ?

लाचार प्रोफ़ेसर साहब ने घर पर ही अपना लेक्चर शुरू कर दिया तो पत्नी ने पूछा- यहाँ आपका लेक्चर कौन सुन रहा है ?

प्रोफ़ेसर साहब ने कहा- सुनता तो वहाँ भी कोई नहीं |






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