सोच समझकर लिया गया निर्णय
पेंशन लेने दूसरे हफ्ते में जाते हैं क्योंकि महिने के पहले हफ्ते पेंशन वालों की बहुत भीड़ रहती है | और फिर इस महिने जीवित होने का प्रमाणपत्र भी देना होता है सो दोनों कामों का तालमेल बैठाते-बैठाते ८ नवम्बर को यह नोटों वाला चक्कर आगया | सो हमें बैंक जाने की ज़रूरत ही नहीं पड़ी, नोट बदलवाने वालों की लाइन ही लम्बी होते-होते हमारे घर तक आ गई |किसी तरह गली के दुकानदार से ही बेशर्म होकर उधार खा रहे हैं |सब्ज़ी की जगह दाल और कढ़ी से काम चला रहे हैं |उम्मीद है महिने के अंत तक तो सुधार हो ही जाएगा |
यही सोचते हुए दोपहर की झपकी ले रहे थे कि फोन आ गया |बैंक में पेंशन वाला बाबू थोड़ा परिचित है, उसीका फोन था |बोला- तोताराम जी, आज लाइन में आकर लगे थे |खड़े-खड़े चक्कर आ गया है |नंबर तो आज क्या आना है |अच्छा हो, आप इन्हें ले जाएँ |
सो बस, तोताराम के साथ अभी बैंक से लौटे हैं |
हमने कहा- तोताराम, तेरा कौन सा ५००-१००० के नोटों का भंडार बेकार हुआ जा रहा था | ३० दिसंबर तक का समय है |अभी तो काम चल ही रहा है उधार में |क्या ज़रूरत थी ओखली में सिर देने की |अब इस उम्र में ऐसे फालतू के काम करते हुए कुछ सोचकर समझ लिया कर |नोट बदलवाने के चक्कर में कई बुज़ुर्ग लाइन में ही वीरगति को प्राप्त हो गए हैं
बोला- बहुत सोच समझकर ही निर्णय लिया है |
हमने कहा-तेरे इस सोच समझकर लिए गए निर्णय पर एक किस्सा सुन |एक मास्टर जी थे |रोज सवेरे अपने चबूतरे पर बैठकर दातुन किया करते थे |और यही समय होता उनके पड़ोसी का अपनी भैंस को खेत में लेजाने का | भैंस मुर्रा नस्ल की स्वस्थ, सुन्दर और दुधारू थी | सींग एकदम गोल |मास्टर जी रोज सोचते कि इसके सींगों के बीच की गोलाई ठीक मेरे सिर की गोलाई जितनी है | बहुत दिनों तक सोचते रहे और एक दिन साहस करके अपने अनुमान की सत्यता का निर्णय करने के लिए अपना सिर भैंस के सींगों में फिट कर ही दिया |
भैंस के लिए यह एक नया अनुभव था |वह चमक गई और मास्टर जी का सिर अपने सींगों में फँसाए-फँसाए दौड़ पड़ी |मास्टर जी चिल्लाने लगे |लोगों के लिए यह एक अजीब दृश्य था |किसी तरह लोगों ने भैंस को कब्ज़े में किया और मास्टर जी को सिर सहित निकाला |
जब मास्टर की को कुछ साँस आया तो लोगों ने कहा- मास्टर जी, आप पढ़े-लिखे आदमी हो, कुछ तो सोचा होता |
मास्टर जी बोले- तो क्या आप मुझे बेवकूफ समझते हो |सिर फँसाने से पहले पूरे एक साल तक सोचा है |
तोताराम चिढ़ गया, बोला- और मोदी जी ने कहा है कि वे नोट बदलने की दस महीने से तैयारी कर रहे थे तो क्या तू मोदी जी के इस कदम की इस तरह व्याख्या कर रहा है |अरे, उन्हें इस देश की सत्तर सालों की गड़बड़ियों को ठीक करना है तो ऐसे निर्णय तो लेने ही होंगे |
हमने कहा- बन्धु, उन्हें पूर्णबहुमत मिला है | अब वे भले ही हर छः महीने में नोट बदलें लेकिन तुझे कुछ हो जाता तो पता है, डाक्टर सौ-सौ के नोटों के बिना इलाज भी नहीं करता और कल ही एक और खबर बन जाती- सीकर में नोट बदलवाने की लाइन में खड़े एक ७५ वर्षीय वृद्ध को दिल का दौरा पड़ा | डाक्टरों ने पुराने नोट लेने से मना किया | मृतक का नाम तोताराम बताया गया है |
पेंशन लेने दूसरे हफ्ते में जाते हैं क्योंकि महिने के पहले हफ्ते पेंशन वालों की बहुत भीड़ रहती है | और फिर इस महिने जीवित होने का प्रमाणपत्र भी देना होता है सो दोनों कामों का तालमेल बैठाते-बैठाते ८ नवम्बर को यह नोटों वाला चक्कर आगया | सो हमें बैंक जाने की ज़रूरत ही नहीं पड़ी, नोट बदलवाने वालों की लाइन ही लम्बी होते-होते हमारे घर तक आ गई |किसी तरह गली के दुकानदार से ही बेशर्म होकर उधार खा रहे हैं |सब्ज़ी की जगह दाल और कढ़ी से काम चला रहे हैं |उम्मीद है महिने के अंत तक तो सुधार हो ही जाएगा |
यही सोचते हुए दोपहर की झपकी ले रहे थे कि फोन आ गया |बैंक में पेंशन वाला बाबू थोड़ा परिचित है, उसीका फोन था |बोला- तोताराम जी, आज लाइन में आकर लगे थे |खड़े-खड़े चक्कर आ गया है |नंबर तो आज क्या आना है |अच्छा हो, आप इन्हें ले जाएँ |
सो बस, तोताराम के साथ अभी बैंक से लौटे हैं |
हमने कहा- तोताराम, तेरा कौन सा ५००-१००० के नोटों का भंडार बेकार हुआ जा रहा था | ३० दिसंबर तक का समय है |अभी तो काम चल ही रहा है उधार में |क्या ज़रूरत थी ओखली में सिर देने की |अब इस उम्र में ऐसे फालतू के काम करते हुए कुछ सोचकर समझ लिया कर |नोट बदलवाने के चक्कर में कई बुज़ुर्ग लाइन में ही वीरगति को प्राप्त हो गए हैं
बोला- बहुत सोच समझकर ही निर्णय लिया है |
हमने कहा-तेरे इस सोच समझकर लिए गए निर्णय पर एक किस्सा सुन |एक मास्टर जी थे |रोज सवेरे अपने चबूतरे पर बैठकर दातुन किया करते थे |और यही समय होता उनके पड़ोसी का अपनी भैंस को खेत में लेजाने का | भैंस मुर्रा नस्ल की स्वस्थ, सुन्दर और दुधारू थी | सींग एकदम गोल |मास्टर जी रोज सोचते कि इसके सींगों के बीच की गोलाई ठीक मेरे सिर की गोलाई जितनी है | बहुत दिनों तक सोचते रहे और एक दिन साहस करके अपने अनुमान की सत्यता का निर्णय करने के लिए अपना सिर भैंस के सींगों में फिट कर ही दिया |
भैंस के लिए यह एक नया अनुभव था |वह चमक गई और मास्टर जी का सिर अपने सींगों में फँसाए-फँसाए दौड़ पड़ी |मास्टर जी चिल्लाने लगे |लोगों के लिए यह एक अजीब दृश्य था |किसी तरह लोगों ने भैंस को कब्ज़े में किया और मास्टर जी को सिर सहित निकाला |
जब मास्टर की को कुछ साँस आया तो लोगों ने कहा- मास्टर जी, आप पढ़े-लिखे आदमी हो, कुछ तो सोचा होता |
मास्टर जी बोले- तो क्या आप मुझे बेवकूफ समझते हो |सिर फँसाने से पहले पूरे एक साल तक सोचा है |
तोताराम चिढ़ गया, बोला- और मोदी जी ने कहा है कि वे नोट बदलने की दस महीने से तैयारी कर रहे थे तो क्या तू मोदी जी के इस कदम की इस तरह व्याख्या कर रहा है |अरे, उन्हें इस देश की सत्तर सालों की गड़बड़ियों को ठीक करना है तो ऐसे निर्णय तो लेने ही होंगे |
हमने कहा- बन्धु, उन्हें पूर्णबहुमत मिला है | अब वे भले ही हर छः महीने में नोट बदलें लेकिन तुझे कुछ हो जाता तो पता है, डाक्टर सौ-सौ के नोटों के बिना इलाज भी नहीं करता और कल ही एक और खबर बन जाती- सीकर में नोट बदलवाने की लाइन में खड़े एक ७५ वर्षीय वृद्ध को दिल का दौरा पड़ा | डाक्टरों ने पुराने नोट लेने से मना किया | मृतक का नाम तोताराम बताया गया है |
No comments:
Post a Comment