ग्राहक, मौत और पार्टी अध्यक्ष
आते ही तोताराम ने ऐसे अंदाज़ में अपनी झाड़ू और पोंछा निकाला जैसे कोई 'स्वच्छ भारत' का ब्रांड अम्बेसेडर फोटो खिंचवाने के लिए तैयार होता है |बरामदा झाड़ते हुए बोला- पता नहीं, कब आ जाएँ ? थोड़ी साफ-सफाई रखा कर |तुझे तो कोई फर्क नहीं पड़ता लेकिन मुझे तो बिना बात शर्मिन्दा होना पड़ेगा |
हमने कहा- कोई किसी को बिना बात शर्मिंदा नहीं कर सकताऔर फिर किसी ढीठ को शर्मिंदा कर सकना तो किसी के भी वश का नहीं है |
बोला- तो तू मुझे ढीठ कहता है ?
हमने कहा- हम तुझे कुछ नहीं कहते, हमारा संकेत तो सरकार की ओर है जो संवेदना के हजार नाटकों के बावजूद हमारा सातवाँ पे कमीशन खाकर बैठी है |लेकिन तेरे 'पता नहीं, कब आजाएँ' का क्या मतलब था ?वैसे अप्रत्याशित रूप से आना तो दो का ही होता है- एक ग्राहक और दूसरा मौत |ग्राहक का सवाल नहीं क्योंकि हम कोई दुकानदार नहीं और मौत से घबराते नहीं क्योंकि कम्यूटेशन रिस्टोर हो चुका है |
बोला- इन दो के अलावा भी एक और है जो कभी भी आ सकता है- शाह जी |
हमने कहा- क्यों आएगा कोई शाह ? हमने किसी शाह से कोई कर्जा नहीं ले रखा है |
बोला- ये कर्जे वाले शाह नहीं हैं |ये तो भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह हैं |जो २०१९ के चुनाव की रणनीति के तहत 'संपर्क फॉर समर्थन' के हिंदी अंग्रेजी के इस समासात्मक जुमले के नाम पर पचास लोगों से मिलने निकले हैं |इस क्रम में कपिलदेव, रामदेव, माधुरी दीक्षित से मिल चुके हैं |रतन टाटा से मिलने वाले हैं |उद्धव ठाकरे ने अब तक घास नहीं डाली,आगे का पता नहीं | धावक मिल्खा सिंह को उनसे भी तेज भागकर कब्जे में ले लिया | हो सकता है रिटायर्ड मास्टरों के समर्थन के लिए प्रबुद्ध जनों के क्रम में अपने यहाँ भी आ टपकें |
हमने कहा- चिंता मत कर |जब अपने मोहल्ले की नालियाँ ढंग से साफ होने लगेंगी, और जयपुर रोड़ पर गहलोत मोटर्स और मंडी की दीवारों के पास का कूड़ा साफ़ होने लगेगा तो समझ लेंगे कि शाह जी आ रहे हैं |फिर हम भी बरामदे में झाड़ू-पोंछा कर लेंगे |अभी से क्यों परेशान हों, क्या पता; आएँ कि नहीं |कहाँ ठाढ़े हैं बाँके यार...जो बिना बात सोलह शृंगार का आएँ ?
बोला- आजकल उनके नखरे कम हो गए हैं |अब वे कहीं जाने से पहले उस तरह से तैयारी का इंतज़ार नहीं करते जैसे पहले करते थे |अब तो एक साल से भी कम रह गया है |उपचुनावों में झटके से साथी दलों का स्वर भी 'उपलब्धियों' की तरह अविश्वसनीय होने लगा है |कांग्रेस-मुक्त भारत का सपना खटाई में पड़ता लगता है |इसलिए सेवा कर सकने की अगली पाँच साल की लीज़ रिन्यू करवाने का धन्धीय-संकट है |इसलिए हमें स्वागत के लिए तैयार रहना चाहिए |अब तो 'अनौपचारिक संवाद' का फैशन भी चल पड़ा है |इसलिए कभी भी टपक पड़ने वाले ग्राहक और मौत में एक शब्द और जोड़ ले - उम्मीदवार या किसी पार्टी का अध्यक्ष |
हमने कहा- क्या हमारा समर्थन इतना महत्त्वपूर्ण है जो अमित शाह हमसे 'संपर्क' फॉर समर्थन कर सकते हैं ?यदि ऐसा होता तो अब तक हमारे पे कमीशन के बारे में एक शब्द तो बोलते |
बोला- फिर भी सावधान तो रहना पड़ेगा क्योंकि सुना है अब अमित जी ही नहीं कई और छुटभैय्ये भी निकल पड़े हैं | यह धंधे का सवाल है | वैसे आने दो |कोई देगा नहीं, तो हमसे ले भी क्या लेगा ? चुनाव के नाम पर कुछ और नाटक, कुछ और जुमले |
हमने कहा- और उसके बाद अमल के नाम पर वही 'अच्छे दिन' वाला खाली कमंडल |
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach
आते ही तोताराम ने ऐसे अंदाज़ में अपनी झाड़ू और पोंछा निकाला जैसे कोई 'स्वच्छ भारत' का ब्रांड अम्बेसेडर फोटो खिंचवाने के लिए तैयार होता है |बरामदा झाड़ते हुए बोला- पता नहीं, कब आ जाएँ ? थोड़ी साफ-सफाई रखा कर |तुझे तो कोई फर्क नहीं पड़ता लेकिन मुझे तो बिना बात शर्मिन्दा होना पड़ेगा |
हमने कहा- कोई किसी को बिना बात शर्मिंदा नहीं कर सकताऔर फिर किसी ढीठ को शर्मिंदा कर सकना तो किसी के भी वश का नहीं है |
बोला- तो तू मुझे ढीठ कहता है ?
हमने कहा- हम तुझे कुछ नहीं कहते, हमारा संकेत तो सरकार की ओर है जो संवेदना के हजार नाटकों के बावजूद हमारा सातवाँ पे कमीशन खाकर बैठी है |लेकिन तेरे 'पता नहीं, कब आजाएँ' का क्या मतलब था ?वैसे अप्रत्याशित रूप से आना तो दो का ही होता है- एक ग्राहक और दूसरा मौत |ग्राहक का सवाल नहीं क्योंकि हम कोई दुकानदार नहीं और मौत से घबराते नहीं क्योंकि कम्यूटेशन रिस्टोर हो चुका है |
बोला- इन दो के अलावा भी एक और है जो कभी भी आ सकता है- शाह जी |
हमने कहा- क्यों आएगा कोई शाह ? हमने किसी शाह से कोई कर्जा नहीं ले रखा है |
बोला- ये कर्जे वाले शाह नहीं हैं |ये तो भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह हैं |जो २०१९ के चुनाव की रणनीति के तहत 'संपर्क फॉर समर्थन' के हिंदी अंग्रेजी के इस समासात्मक जुमले के नाम पर पचास लोगों से मिलने निकले हैं |इस क्रम में कपिलदेव, रामदेव, माधुरी दीक्षित से मिल चुके हैं |रतन टाटा से मिलने वाले हैं |उद्धव ठाकरे ने अब तक घास नहीं डाली,आगे का पता नहीं | धावक मिल्खा सिंह को उनसे भी तेज भागकर कब्जे में ले लिया | हो सकता है रिटायर्ड मास्टरों के समर्थन के लिए प्रबुद्ध जनों के क्रम में अपने यहाँ भी आ टपकें |
हमने कहा- चिंता मत कर |जब अपने मोहल्ले की नालियाँ ढंग से साफ होने लगेंगी, और जयपुर रोड़ पर गहलोत मोटर्स और मंडी की दीवारों के पास का कूड़ा साफ़ होने लगेगा तो समझ लेंगे कि शाह जी आ रहे हैं |फिर हम भी बरामदे में झाड़ू-पोंछा कर लेंगे |अभी से क्यों परेशान हों, क्या पता; आएँ कि नहीं |कहाँ ठाढ़े हैं बाँके यार...जो बिना बात सोलह शृंगार का आएँ ?
बोला- आजकल उनके नखरे कम हो गए हैं |अब वे कहीं जाने से पहले उस तरह से तैयारी का इंतज़ार नहीं करते जैसे पहले करते थे |अब तो एक साल से भी कम रह गया है |उपचुनावों में झटके से साथी दलों का स्वर भी 'उपलब्धियों' की तरह अविश्वसनीय होने लगा है |कांग्रेस-मुक्त भारत का सपना खटाई में पड़ता लगता है |इसलिए सेवा कर सकने की अगली पाँच साल की लीज़ रिन्यू करवाने का धन्धीय-संकट है |इसलिए हमें स्वागत के लिए तैयार रहना चाहिए |अब तो 'अनौपचारिक संवाद' का फैशन भी चल पड़ा है |इसलिए कभी भी टपक पड़ने वाले ग्राहक और मौत में एक शब्द और जोड़ ले - उम्मीदवार या किसी पार्टी का अध्यक्ष |
हमने कहा- क्या हमारा समर्थन इतना महत्त्वपूर्ण है जो अमित शाह हमसे 'संपर्क' फॉर समर्थन कर सकते हैं ?यदि ऐसा होता तो अब तक हमारे पे कमीशन के बारे में एक शब्द तो बोलते |
बोला- फिर भी सावधान तो रहना पड़ेगा क्योंकि सुना है अब अमित जी ही नहीं कई और छुटभैय्ये भी निकल पड़े हैं | यह धंधे का सवाल है | वैसे आने दो |कोई देगा नहीं, तो हमसे ले भी क्या लेगा ? चुनाव के नाम पर कुछ और नाटक, कुछ और जुमले |
हमने कहा- और उसके बाद अमल के नाम पर वही 'अच्छे दिन' वाला खाली कमंडल |
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