Jun 10, 2018

तोताराम का 'अनौपचायिक शिखर सम्मेलन'



 तोताराम का 'अनौपचायिक शिखर सम्मेलन' 

जैसे रिटायर्ड आदमी के लिए समय का कोई बंधन नहीं होता, वह कालातीत होकर अकाल-पुरुष हो जाता है |जब चाहे सोए, जब चाहे जागे, मन हो तो जागे ही नहीं |किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता | वैसे ही अब संन्यास आश्रम में पहुँच कर हम वैज्ञानिक और प्रगतिशील होने का साहस करने लग गए हैं |मतलब कि अब हम अंधविश्वासों से मुक्त हो गए हैं |अब चाहें तो बिल्ली के रास्ता काटने पर बिना रुके, बिना एक बार चप्पल उतारे और पानी पिए रास्ता पार कर सकते हैं |

जिसको जीने की कोई परवाह न हो, उस पर कोई ग्रह-नक्षत्र लागू नहीं होता |सरकार भी खुश, चलो एक मुफ्तिया निबटा |अब मजे से इसकी पेंशन के पैसे से 'स्वच्छ भारत' का विज्ञापन करेंगे |सो आज हमने गुरुवार को हजामत बनवाने साहसिक काम कर ही लिया |इसलिए नहाने का सुबह वाला काम दिन के ग्यारह बजे निबटा रहे थे कि तोताराम ने बरामदे में बैठने के प्रोटोकोल का पालन करने की बजाय सीधे ही हमारा बाथरूम का दरवाजा खटखटा दिया | 

हमने सिर पर बचे चंद श्वेत केशों में साबुन रगड़ते हुए कहा- ऐसी क्या जल्दी है ? बरामदे में बैठ, हम अभी आते हैं |

बोला- बरामदे में आने की 'औपचायिकता' की कोई  आवश्यकता नहीं है |तू आराम से नहा | मैं बाहर खड़ा हूँ | तू अन्दर नहाते-नहाते ज़वाब दे देना |यह कोई 'औपचारिक शिखर सम्मलेन' नहीं है |यह तो मोदी जी के चीन के शी और रूस के पुतिन के साथ अनौपचारिक शिखर सम्मेलन की तर्ज़ पर 'तोताराम का अनौपचायिक' सम्मेलन है |

हमें कभी  'अनौपचारिक' सुनता तो कभी 'अनौपचायिक' | सोचा, हो सकता है पानी के गिरने की आवाज़ या कान में साबुन लगे होने के कारण ऐसा सुन रहा हो |हिंदी के मास्टर हैं सो मन नहीं माना |हिंदी का मास्टर एक रोटी कम में काम चला सकता है लेकिन वर्तनी (स्पेलिंग) की गलती बर्दाश्त नहीं कर सकता |

पूछा- तोताराम, तेरे मुँह में कोई सुपारी या टॉफ़ी तो नहीं है ?क्यों हमें तेरा 'अनौपचारिक' शब्द कभी 'अनौपचारिक' सुनता है तो कभी 'अनौपचायिक' सुनता है | 

बोला- तेरे कानों में कोई खराबी नहीं है |मैं मोदी जी के शी और पुतिन के साथ शिखर सम्मेलन को 'औपचारिक शिखर सम्मेलन' बोल रहा हूँ और अपनी इस मुलाकात को  'अनौपचायिक शिखर सम्मेलन' बोल रहा हूँ |

हमने कहा- लेकिन शब्द तो एक ही हैं- अनौपचारिक | हमने तो आज तक तुम्हारा यह 'अनौपचायिक' शब्द कभी सुना नहीं |

बोला- लकीर के फकीर के साथ यही समस्या है |उसके पल्ले कोई नई बात पड़ती ही नहीं |'अनौपचारिक शिखर सम्मेलन' राजनीति में मोदी जी का एक नया आविष्कार है जिसे सुषमा जी नाम दिया है- 'नया संवाद तंत्र' |मास्को से लौटते समय रास्ते में इस्लामाबाद में शरीफ के घर टपक पड़ना इस शैली का पहला एपिसोड था |इसमें मिलना होता है, हाथ में हाथ डालकर बतियाना होता है, सुविधा हो तो झूला झूलना होता है, सेल्फी लेना होता है आदि-आदि | 

वैसे तो यह शब्द अन+उप+चार+इक से मिलकर बना है |ऐसा भी लगता है कि बीच का शब्द 'उपचार' है लेकिन ऐसे 'अनौपचारिक सम्मेलनों' का किसी समस्या के 'उपचार' से कोई संबंध नहीं होता | ये तो जनता के पैसे से मौज-मस्ती करने के तरीके हैं |ये तो वैसे ही है जैसे तेरे साथ मेरे इस 'अनौपचायिक शिखर सम्मेलन ' में कहीं 'चाय' नहीं है |आज मैं तेरे साथ बिना चाय के ही बाथ रूम के इस दरवाजे के पार खड़े-खड़े  'अनौपचायिक शिखर सम्मेलन' करूँगा |

हमने कहा- लेकिन शिखर सम्मेलन का क्या 'शिखा' से कोई संबंध नहीं होता ?कैसी अजीब बात है कि हम दोनों ब्राह्मण हैं और शिखा-सूत्र हम दोनों के ही नहीं हैं |हो सकता है, जगन्नियंता की यही मर्ज़ी हो तभी तो शिखा के स्थान से बाल गायब हो गए हैं |पर हमने तो ज़िन्दगी भर नौकरी की है |अब उसकी पेंशन की कमाई खा रहे हैं |हमें कौन-सी शिखा-सूत्र की कमाई खानी है ? जिन्हें इसके आधार पर कोई धंधा करना है उनकी बात और है | या फिर जो लोकतंत्र को शिखा-सूत्र दिखाने और शिव-भक्त प्रमाणित करने तक ले आए हैं, इसकी फ़िक्र करें |

बोला- ठीक है, तो अब अपने इस 'अनौपचायिक शिखर सम्मलेन' का पहला संवाद- 'आप अपनी छियत्तर वर्षों की अभूतपूर्व उपलब्धियों को किस प्रकार देखते हैं ?'

हमने कहा- तोताराम,  तुम्हारा यह 'अनौपचायिक शिखर सम्मेलन'  या 'नया संवाद तंत्र' हमें कुछ जमा नहीं  |क्या पता, कल तू इसके नाम पर बाथ रूम के अन्दर घुस आए | अपनी इस चुहलबाजी को कल चाय के 'औपचारिक शिखर सम्मेलन' के लिए रख ले |
पर अब तो घर जा |









 

पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)


(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

No comments:

Post a Comment