Jun 3, 2018

निपाह वायरस और निर्मल बाबाओं की लाल-हरी चटनी

 निपाह वायरस और  निर्मल बाबाओं की लाल-हरी चटनी 

आज तोताराम ने आते ही कहा- बन्धु, यह निकाह वायरस क्या होता है ?

हमने कहा- तोताराम, यह एक ऐसा वायरस है जिसका कोई इलाज नहीं है |हाँ, यदि कोई साहसी हो तो तीन तलाक दे दे |यदि तीन तलाक जितनी धार्मिक सुविधा न हो तो सिद्धार्थ की तरह साहस दिखाओ और मानवता के कल्याण की आड़ में फूट लो घर से, हो जाओ जिम्मेदारियों से मुक्त और मज़े से झाड़ते फिरो भाषण |और सबसे ज्यादा भुगते बेचारी बीवी जिसकी कोई गलती ही नहीं |

बोला- मैं 'निकाह' नहीं, केरल में पाए गए एक खतरनाक वायरस 'निपाह' की बात कर रहा हूँ | केरल में लोगों की जान पर बनी है, कर्नाटक में लोग डरे हुए हैं |और तुझे मजाक सूझ रहा है |

हमने कहा- कम्यूनिस्टों और बदकिस्मत लोगों को वोट देंगे तो यही होगा |यदि नसीब वाले सेवकों को वोट देते तो यह संकट नहीं आता |

बोला- यदि ऐसे ही नोनसेन्स  बातें करनी है तो मैं चलता हूँ |

हमने कहा- ठीक है, नो मजाक |सुन, यह वायरस है |और इसमें भी अन्य सभी वायरसों की तरह अपना एक रस होता है |जिन्हें यह वायरस नहीं पकड़ता वे बातें बनाकर रस लेते हैं और जिन्हें पकड़ लेता है वे कोमा में चले जाते हैं और सब प्रकार के जुमलों से मुक्त होने का रस लेते हैं |और स्वास्थ्य विभाग से जुड़े लोग दौरों, सेमीनारों और दवाओं में कमीशन-रस निचोड़ते हैं |

वैसे केरल के डाक्टरों ने कहा गया है कि ज़मीन पर गिरे, कुतरे हुए फल न खाएँ |

तोताराम ने कहा- अपने यहाँ तो कहा जाता है कि पक्षियों का खाया हुआ फल वास्तव में पका हुआ और सर्वाधिक सरस होता है |

हमने कहा-लेकिन यह तो पक्षियों-विपक्षियों का नहीं चमगादड़ों का चखा हुआ है |ये चमगादड़ न पशुओं में आते हैं और न ही पक्षियों में |जब, जहाँ, जैसा फायदा दिखाई देता है उधर ही हो लेते हैं |जब तक हंग-सदन नहीं बनता तब तक लोकतंत्र की डाल पर उलटे लटककर मन्त्र-जाप करते रहते हैं |

बोला- यह ठीक नहीं है मास्टर |बात चल रही थी निपाह वायरस और उससे फ़ैलने वाली बीमारी की लेकिन अब तू इसे गन्दी राजनीति से मत जोड़ |

हमने कहा- लेकिन तेरे नेता ही कौन-सी सीधी बात करते हैं |हर घटिया बात में इस देश के वेद-पुराणों और वांग्मय को ले आते हैं जबकि इनकी औकात नहीं होती बच्चों की छोटी-मोटी कविता-कहानी समझने की |

बोला- ठीक है, तुझे पता हो तो इसका कोई इलाज़ बता, कोई पथ्य-परहेज सुझा |नहीं तो अगर चपेट में आगए तो सीधे कोमा में ही जाएँगे और अस्सी साल पर सवाई होने वाली पेंशन का मज़ा कोई और ही लेगा |

हमने कहा- केरल के एक मौलवी जी ने कुरान के ३६ वें चेप्टर की सूराह-अल-यासीन को पढ़ने और किसी शेख अब्दुल कादिर जिलानी का नाम एक हजार बार लेने से भी यह बीमारी नहीं होती |

बोला- लेकिन मैं तो हिन्दू हूँ |मैं किसी जिलानी का जप कैसे कर सकता हूँ | 

हमने कहा-  फिर तो किसी बिप्लब कुमार देब से ही पूछना पड़ेगा जो महाभारत में इंटरनेट की तरह इसके बारे में भी कुछ ढूँढ़ निकालें |

बोला- लेकिन तब तक इस निपाह के भय से कैसे मुक्ति मिले ?

हमने कहा- इसका इलाज समय के पास है |समय बदलेगा, फिर कोई नया वायरस आ जाएगा तो लोग इस पुराने हो चुके निपाह वायरस को भूल जाएँगे |जैसे पहले मनमोहन जी को कोसते थे और अब मोदी जी के गुण गा रहे हैं |

गुलाम मानसिकता, अवैज्ञानिक सोच, व्यक्तिवादी लोकतंत्र और निर्मल बाबाओं के देश में आस्थाओं की लाल-हरी चटनियाँ बदल-बदल कर खाना ही सब दुखों का एकमात्र इलाज रह गया है |



  


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