मुंडाई मुंडाई का फर्क
आज तोताराम ने आते ही हमसे पूछा- क्यों मास्टर, अपना सीकर जिला देश में एक हर क्षेत्र में एक अग्रणी जिला है तो फिर यहाँ महाराष्ट्र के सांगली शहर के रामचन्द्र दत्तात्रेय काशिद की तरह सोने के उस्तरे से दाढ़ी बनाने वाला कोई कलाकार क्यों नहीं है ?
हमने कहा- खबर अभी कल ही तो आई है |अगले महीने पढ़ लेना सीकर के किसी ऐसे ही सैलून का विज्ञापन | यह पता नहीं कि वह उस्तरा चाँदी पर सोने के पानी वाला होगा या शुद्ध पीतल का ही होगा | लेकिन अभी तो यह शहर अखबारों में स्कूलों के इतिहास रचने वाले टॉपर के फोटो से भरा हुआ है |लगता है हर स्कूल में टॉपर ही टॉपर भरे पड़े हैं |जब ये विज्ञापन मिलने बंद हो जाएँगे तब सोने के उस्तरे वाला विज्ञापन भी आ जाएगा |अब जब विज्ञापन के बल पर बिना कुछ खर्च किए उलटे उस्तरे से मूंडने का मौका है तो उसे ही क्यों न भुनाया जाए |
बोला- क्यों क्या स्कूलों में खर्चा नहीं लगता ? विज्ञापन, बिल्डिंग और प्रश्नोत्तर के कागज फोटो स्टेट करवाने का काम क्या मुफ्त में हो जाता है ?
हमने कहा- लेकिन इसके अलावा और क्या खर्चा होता है ?मास्टरों को तो सरकारी चपरासी जितनी तनख्वाह भी नहीं देते |और फिर जिसने फीस दी है वह अपनी गरज के चलते रट्टा मारेगा ही |और जब इतने बच्चे परीक्षा देंगे तो कोई न कोई सलेक्ट भी होगा ही |बस, उसी को गोद में उठाए दस साल तक विज्ञापन करते रहेंगे |
बोला- लेकिन बात तो सोने के उस्तरे की चली थी |
हमने कहा- यदि अपने यहाँ किसी ने सोने के उस्तरे का विज्ञापन कर दिया तो हो सकता है कि दूसरे दिन ही कोई साहसी युवक हजामत बनवाने के बहाने उसका उस्तरा ही ले उड़ेंं और पुलिस सी सी टी वी कैमरा ही खंगालती रहे |वैसे हजामत तो हजामत है चाहे लोहे के उस्तरे से बनाई जाए या सोने के |जैन धर्म में यह काम 'लुंचन' द्वारा बिना किसी यंत्र के ही कर लिया जाता है | मोदी जी, अमित जी, पासवान जी, सुशील जी, नीतीश जी आदि कुछ लोगों को देश सेवा से ही समय नहीं मिलता |वैसे ये चाहें तो सोने ही क्या, प्लेटिनम के उस्तरे से दाढ़ी बनवा सकते हैं |
बोला- मैं अतिमानवों की बात नहीं कर रहा हूँ |लेकिन जब चार साल में वह सब हो गया जो पिछले चार दशकों में नहीं हुआ था तो सोने के तारों से बुने सूट की तरह सोने का उस्तरा क्यों नहीं हो सकता ?
हमने कहा- लेकिन इससे क्या फर्क पड़ता है कि मरने वाला किसी ट्रक से टकराकर मरे या किसी की बी.एम.डब्लू. कार से टकराकर | बकरे को कोई कलमा पढ़कर काटे या शेराँ वाली का जैकारा लगाकर | भेड़ को उलटे उस्तरे से मूंडा जाए या किसी आयातित मशीन से | मंदिर में मूंडा जाए या मस्जिद में |जुमे को निबटाया जाए या मंगलवार को |महत्त्वपूर्ण साध्य है न कि साधन | जैसे सभी नदियाँ समुद्र में जा मिलती हैं वैसे ही सभी मूंडनीय जीव मुण्डने की ओर अग्रसर हैं |
बोला- तो फिर गाँधी जी ने क्यों कहा था कि पवित्र साध्य के लिए साधन भी पवित्र ही होने चाहिएँ ? लोहे के उस्तरे से इन्फेक्शन हो जाता है |कहते हैं सोने के उस्तरे से इन्फेक्शन नहीं होता |
हमने कहा- तब तो आजकल जो हर बार नई ब्लेड से दाढ़ी और हजामत बनाते हैं वह सबसे ज्यादा ठीक है |उस्तरा चाहे लोहे का हो या सोने का, हर बार नया थोड़े ही होता है |और सोने वाला तो बिलकुल भी नहीं |
वैसे थोड़ा धीरज रख |अभी तो अच्छे नसीब वाला तेल-योग समाप्त हुआ है |इसके बाद जब असलियत वाली साढ़ेसाती शुरू होगी तब न लोहे-सोने के उस्तरे की ज़रूरत रहेगी और न रेजर ब्लेड की |अपने हाथों से ही नोंच लेना अपने सिर और दाढ़ी के बाल |
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach
No comments:
Post a Comment