Aug 9, 2019

डंके की चोट या डंडे की चोट



डंके की चोट या डंडे की चोट  



 





कुछ दिनों पहले दिल्ली के चिड़ियाघर के पिंजरे नंबर 19 के एक तोते हिरामन के बारे में छपा था कि जब लोग उससे हाल पूछते हैं तो वह कहता है- अच्छा हूं।
हमने भी जब तोताराम से कहा- अब शिकायत मत करना कि ‘अच्छे दिन’ का क्या हुआ? एक बार अखबार और मीडिया और भाजपा के मंत्रियों का विश्वास न भी करें लेकिन अब तो पशु-पक्षी तक मोदी जी का समर्थन कर रहे हैं।

बोला- यह हिरामन ही क्या, सब चतुर लोग दाख-छुहारे के लालच में गुण गा रहे हैं। सीबीआई तो बहुत पहले से ही ‘तोते’ के रूप में प्रसिद्ध है।
हमने कहा- चल, मत मान पशु-पक्षियों की; जे.पी.नड्डा जी की बात तो माननी ही पड़ेगी। महाराष्ट्र बीजेपी की विशेष कार्यसमिति बैठक को संबोधित करते हुए नड्डा ने कहा, ‘हमने कहा था अच्छे दिन आने वाले हैं, देश बदल रहा है। आज मैं डंके की चोट पर कहता हूं कि अच्छे दिन आ गए हैं और देश बदल गया है। इसको हमें समझाने की जरूरत नहीं।’
बोला- नड्डा जी भी कहते हैं, और लगता है तू भी आश्वस्त है तो चल, एक ट्राई और मार लेते हैं।
हमने कहा- अब और क्या ट्राई मारना बाकी रहा गया?
बोला- भाई साहब, अपना हाल तो सूरदास जी वाला है। कोई खीर के बारे में लाख उदाहरण देकर बताए लेकिन हमें तो तभी समझ में आएगा जब खीर खा लेंगे।


हमने पूछा- खीर से तेरा क्या मतलब है। राजधानियों में खीर नहीं, खिचड़ी पकती है। अब यह पता नहीं कि उस खिचड़ी का मतलब खाने वाली खिचड़ी होता है या षड्यंत्र वाली खिचड़ी या फिर कभी न पकने वाली बीरबल की खिचड़ी या फिर राजधानियों में बजट बनाने के दिनों में अधिकारी वित्त मंत्री के साथ जनता के टेक्स के पैसे से देशी घी का हलवा खाते हैं। वैसे दिल्ली चलकर क्या ट्राई मारेगा?
बोला- यही कि इन अच्छे दिनों में अपने पे कमीशन के ३१ महिने के एरियर का भी कोई प्रावधान है या नहीं ? कहीं यह भी कोई जुमला तो नहीं।
हमने कहा- हमारे हिसाब से तो चुप रहना ही ठीक है क्योंकि जो डंके की चोट पर कह सकते हैं, वे डंडे की चोट पर भी मनवा सकते हैं।





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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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