Sep 2, 2019

आप न चाहें तो भी.......

 आप न चाहें तो भी ..... 


हम सोच रहे थे कि राजनीति में लोग कुत्ते-बिल्ली की तरह लड़ते रहते हैं, एक दूसरे को गालियाँ निकालते रहते हैं, एक-दूसरे के बारे में झूठी अफवाहें उड़ाते रहते हैं | साथ ही यह भी कहते रहेंगे कि राजनीति में कोई स्थाई दोस्त और दुश्मन नहीं होता |राजनीति न हुई अपराध की ईमानदार दुनिया हो गई जिसमें सभी धर्म-जाति और पार्टी के लोग बड़े प्रेम से मिलजुलकर अपराध करते हैं और सभ्यता से बँटवारा कर लेते हैं |यदि कभी कुछ ऊंँच-नीच हो भी गई तो कभी पुलिस-थाना और कोर्ट-कचहरी नहीं करते |हाँ, कभी-कभी कुछ बिल्लियाँ न्याय-व्यवस्था में विश्वास करके बँटवारे के लिए बन्दर के पास जाने की मूर्खता कर बैठती हैं और रोटी गँवाकर पछताती हैं |

तभी तोताराम एक लम्बे-चौड़े, लाल मुँह वाले सज्जन के साथ प्रकट हुआ |

हमने पूछा- ये 'वानर' कौन हैं ?

बोला- एक बड़े और धनवान लोकतंत्र से बड़े नेता हैं और तू इन्हें 'वानर' कहता है ?

हमने कहा- हम इन्हें स्पष्ट रूप से वानर नहीं कह रहे हैं | ये हमारे यहाँ के नरों जैसे नहीं लगते हैं |इनका मुँह हमारे यहाँ के नरों से अधिक लाल है, बाल सुनहरे हैं | इसलिए शंका हो गई |तभी तो 'कपि' न कह कर वानर कहा |

बोला- कपि और वानर में क्या फर्क है ?

हमने कहा- कपि का मतलब 'बन्दर' और वानर मतलब 'वा' 'नर' अर्थात शायद नर |हम इनके बारे में अपनी शंका ज़ाहिर कर रहे हैं |वैसे ये यहाँ कर क्या रहे हैं ?

बोला- 
बड़ी दूर से चलकर आए हैं 
मध्यस्थता का संदेसा लाए हैं |

हमने कहा- कहीं ये ट्रंप जी तो नहीं हैं ?

बोला- पता नहीं, लेकिन पूछ रहे हैं वे दो बिल्लियाँ कहाँ गईं जो हमारे पास रोटी का बँटवारा करवाने आया करती थीं |

हमने कहा- इनसे कह दे, भले ही एक बिल्ली को समझ नहीं आई हो लेकिन दूसरी बिल्ली ने ऐसा इंतज़ाम कर दिया है कि अब दोनों बिल्लियों को आपस में ही बातचीत करके समझौता करना पड़ेगा |कोई तीसरा बीच में नहीं आएगा |

लाल मुँह वाले सज्जन बोले- यदि बिल्लियाँ चाहें तो हम मध्यस्थता करने को तैयार हैं |

हमने कहा- आप तो बिना चाहे भी मध्यस्थता करने को तैयार हैं और ऐसा भी हो सकता है कि आप ज़बरदस्ती भी मध्यस्थता कर देंगे |लेकिन अब वह बात नहीं रही |

सज्जन बोले- वह कौनसी बात ?

हमने कहा- पहले हमारे यहाँ अंग्रेज आए थे, आपके ही पुरखे |यहाँ से राजा-नवाबों के बेटों में समझौता करवाने के लिए मध्यस्थता किया करते थे |एक की तरफ फ्रांसीसी और दूसरे की तरफ अंग्रेज | सहायता के नाम पर उन राजपुत्रों के पैसों पर दोनों की सेनाएँ पलती-लड़ती थीं |जो भी राज्य प्राप्त करता उसी की तरफ से इनाम-इकराम |ऐसा करते-करते सारे हिंदुस्तान पर लाल मुंँह वालों का कब्ज़ा हो गया |और जैसा कि इनकी कूटनीति रही है जाते-जाते उस देश का बँटवारा |मतलब देश छोड़ने के बाद भी चौधराहट बरकरार |इनसे कह दो- हम सब जानते हैं उन बिल्लियों को जिन्हें आप ढूँढ़ रहे हैं |

वे सज्जन जाने लगे |चार कदम जाने के बाद फिर मुड़े और बोले- वैसे हम आपके मोटा भाई के अच्छे मित्र हैं, स्मार्ट पर्सन | अभी न सही, कोई बात नहीं; जब मन करे हमें याद कर लेना | हम हमेशा तैयार हैं |









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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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