Sep 24, 2019

महान वस्तुएं अमूल्य होती हैं




महान वस्तुएं अमूल्य होती हैं


कल शाम को एक जगह सवामणी के जीमण में चले गए। हम हनुमान जी के निस्वार्थ भक्त हैं। बजरंग दल की तरह राजनीतिक महत्त्वाकांक्षी नहीं। इसलिए मना नहीं कर सके। वैसे हम जानते हैं कि आजकल सबसे ज्यादा फूड पॉईजनिंग प्रसाद में ही होती है क्योंकि प्रसाद बनाने वाले ठेकेदार व्यापारी होते हैं, हनुमान जी के भक्त नहीं। इसलिए उन्हें स्वर्ग नहीं, इसी धरती पर स्वर्ग के सुख भोगने के लिए अधिक से अधिक मुनाफा चाहिये।
जैसी कि आशंका थी, आधी रात को पेट में जलन शुरू हो गई। दो बार ‘तरल दीर्घ शंका’ के लिए भी जाना पड़ा। बड़ी मुश्किल से कहीं ब्रह्म-मुहूर्त में जाकर आंख लगी। सुबह अपने निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार उठ नहीं सके। जब उठे तो देखा, बरामदे में एक रस्सी बंधी हुई है जिस पर कुछ सस्ती शालें लटकी हैं और एक बेंच पर कुछ सस्ते से तथाकथित स्मृति-चिह्न रखे हुए थे।
शाल की बात तो फिर भी समझ में आती है कि चद्दर के रूप में ओढ़ने-बिछाने के काम आ सकती है, न हुआ तो लुंगी की तरह लपेटा जा सकता है लेकिन इन स्मृति-चिह्नों का उद्देश्य कभी समझ नहीं आया। कबाड़ी दो रुपए किलो के भाव से भी नहीं लेता। जो पहले दिन सोने-चांदी सा चमकता था वह पत्तर दस दिन में जंग लगा टिन का टुकड़ा निकल आता है।
हमने पूछा- क्या तोताराम, क्या अखबार वालों की तरह किसी से मिलकर इस कबाड़ की महामेगा सेल लगा रहा है?
बोला- सेल में तो रद्दी और घटिया माल निकालने का उपक्रम होता है। हम तो गंगा सफाई के लिए इन उपहारों को नीलाम करके पैसा जुटाएंगे।
हमने कहा- क्या गंगा सफाई के लिए तय किया गया बजट कम पड़ गया?
बोला- बजट तो पर्याप्त ही मिला था लेकिन उसमें गंगा की आरती के खर्च का प्रावधान नहीं था। जबकि गंगा और उसकी सफाई सब आस्था का मामला है और आस्था में सबसे अधिक खर्च पूजा-आरती और प्रसाद वितरण में होता है। अलौकिक काम लौकिक तरीके से नहीं हो सकते। देखा नहीं, पिछली बार गंगा के किनारे लाखों दीये जलवाए गए थे और कई दिनों तक गंगा के घाटों पर लोग फिसल कर गिरते रहे थे।
अब भी आज देखा नहीं, मोदी जी ने अपने जन्मदिन पर सरदार सरोवर बांध पूरा भर जाने की खुशी में कैसे करोड़ों रुपए खर्च करके जलसा करवाया है? और तितलियां छेड़कर अपना जन्मदिन मनाया।
हमने कहा- सबसे पहले तो तू अभी कान पकड़कर माफी मांग क्योंकि समाचार यह था- मोदी जी ने बटरफ्लाई पार्क में तितलियां छोड़कर अपना जन्मदिन मनाया। और उसके बाद बता कि बजट की कमी के कारण अब गंगा की सफाई का क्या होगा?
तोताराम ने कान पकड़कर तीन बार उठक-बैठक लगाते हुए माफी मांगी और बोला- होगा क्या? मोदी जी ने खुद को मिले उपहारों की नीलामी का निर्णय लिया है। उससे जो रुपए मिलेंगे उनसे गंगा की सफाई होगी।
हमने कहा- इस समय मोदी जी तो पावर में हैं। विश्व के एकमात्र गतिशील और प्रभावशाली नेता हैं। ट्रंप तक उनसे मिलने के लिए तड़पते हैं। अब तो वे मोदी जी की रैली में ह्यूस्टन भी जा रहे हैं। सुना है, मोदी जी का तो गमछा भी करोड़ों में बिकने वाला है। जबकि गांधी जी का तो सारा सामान भी दो-चार करोड़ में नहीं बिका।
बोला- ऐसी खरीददारी वस्तु के हिसाब से नहीं होती बल्कि उससे जुड़े व्यक्ति के द्वारा लाभ पहुंचा सकने की क्षमता के अनुसार होती है। व्यक्ति वही महान होता है जो आपको फायदा पहुंचा सके। अब गांधी जी कमाई का साधन तो रहे नहीं। इसलिए उनके सामान की जब लन्दन में नीलामी होने लगी तो कोई नहीं पहुंचा। गीता भी लन्दन में बसे मनु भाई माधवानी ने 19000 पौंड में खरीदी और इसी तरह 2013 में गांधी जी का कुछ सामान विजय माल्या ने टोनी बेदी से 18 लाख में खरीदवाया लेकिन किसी कांग्रेसी और आजकल के गांधी के प्रति नई-नई भक्ति दिखाने वालों में से किसी ने नहीं खरीदा। अब जो मोदी जी का गमछा 1 करोड़ में खरीद रहे हैं वे गमछे का दाम नहीं लगा रहे हैं बल्कि मोदी जी की प्रसन्नता से लाभान्वित होने का खेल खेल रहे हैं। मोदी जी ने बड़े सही समय पर यह निर्णय लिया है। देख लेना, 15 लाख का सूट पांच करोड़ में खरीदने वाले की तरह बहुत से मिलेंगे जो खेल जाएंगे दांव। इसीलिए अंग्रेजी में कहा गया है- मेक हे व्हाइल द सन शाइंस। मैं तो कहता हूं कि मोदी जी को अपने पुराने कुर्ते-पायजामे, जूते-चप्पल, सफाई अभियान वाले झाड़ू-पोछे सभी नीलामी पर चढ़ा देने चाहिए। सब के ग्राहक मिल जाएंगे।
हमने कहा- स्वार्थी जमाने के खुशामदी लोगों के चरित्र की इस व्याख्या से हम पूरी तरह सहमत हैं लेकिन हमारे बरामदे में तूने यह क्या कबाड़खाना लगा दिया?
बोला- यह भी मोदी जी के उपहारों की नीलामी का ही कार्यक्रम तो है।
हमने आश्चर्यचकित होते हुए पूछा- क्या तू कभी मोदी जी से मिला है? या ये उपहार उन्होंने चुनावों के दौरान ‘चाय पर चर्चा’ की तरह तेरे पास डिजिटली पहुंचा दिए?
बोला- नहीं, ये तो मैं अपने घर से लाया हूँ।
हमने कहा- तो फिर ये मोदी जी के उपहार कैसे हो गए?
बोला- मैंने इन्हें मोदी जी को देने का संकल्प ले लिया था। अब मेरा इन पर कोई अधिकार नहीं है। अब ये मोदी जी के ही हैं, भले ही उन तक पहुंचे या नहीं।
हमने कहा- यह तो भक्तों के साथ धोखा है। यदि किसी ने शिकायत कर दी तो लेने के देने पड़ जाएंगे।
बोला- मैं तो चाहता हूं कि बात ऊपर तक जाए। तुझे पता है, गुजरात में एक व्यक्ति ने अपने शादी के कार्ड पर मोदी जी को वोट देने का सन्देश छपवा दिया था तो उसके पास मोदी जी की व्यक्तिगत बधाई आई थी।
हमने कहा- इनकी नीलामी की बेस प्राइस तो इनके साथ लिख दे।
बोला- ये कोई सामान्य वस्तुएं नहीं हैं। महान वस्तुएं अमूल्य होती हैं इसलिए हम इनका दाम खरीदने वाले भक्त की श्रद्धा पर छोड़ते हैं। जैसे कि जिस किताब के बिकने की कोई संभावना नहीं होती तो उस पर मूल्य के स्थान पर लिखा जाता है- मूल्य सप्रेम पाठ।
हमने कहा- ब्रिटेन के संग्रहालय में सोने का एक कमोड रखा था जिसे संग्रहालय वाले ट्रंप को भेंट करना चाहते थे।
अब वह चोरी हो गया है। क्या कोई तेरे ‘मोदी जी के उपहारों’ की तरह यह समाचार बना सकता है कि ‘ट्रंप का सोने का कमोड ब्रिटेन के संग्रहालय से चोरी’?
बोला- बना तो सकता है लेकिन इसमें एक भाषाई लोचा है।
हमने पूछा- क्या ?
तो बोला- इससे ध्वनि निकलती है जैसे ट्रंप इस कमोड पर बैठकर सोते हैं। दूसरे यदि शौचालय से संबंधित कोई सामग्री ही भेंट करनी हो तो मोदी जी से बड़ा कोई सुपात्र नहीं हो सकता जिन्होंने भारत के १३० करोड़ लोगों को पांच साल तक शौचालय से बाहर ही नहीं निकलने दिया।

 





















    





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