Sep 29, 2019

हँसूँ या रोऊँ



  हँसूँ या रोऊँ    

आज आते ही तोताराम ने बड़ा विचित्र प्रश्न किया- हँसूँ या रोऊँ ?

हमने कहा- अभी तो इस देश में इतना लोकतंत्र बचा हुआ है कि तू चाहे तो रो सकता है, चाहे तो हँस सकता है |चाहे तो अपना सिर फोड़ सकता है, अपने कपड़े फाड़ सकता है |कुँए में कूदकर जान दे सकता है | हाँ, दूसरों के कपड़े फाड़ने या दूसरों का सिर फोड़ने के लिए या किसी को ट्रक से कुचलवा देने के लिए ज़रूर सत्ताधारी का हाथ सिर पर होना चाहिए | अभी दुःखी लोगों के रोने पर प्रतिबन्ध लगाने का संशोधन संविधान में नहीं किया गया है | अभी तो अस्थायी चीजों के हटाने की योजना चल रही है जैसे धारा ३७० | 

बोला- मैं अपने रोने या हँसने की बात नहीं कर रहा हूँ |मैं तो मोदी जी की दुविधा के बारे में बात करना चाह रहा था लेकिन तूने मेरी बात पूरी ही नहीं होने दी |

हमने कहा- मोदी जी, वैसे भी बहुत साहसी नेता रहे हैं और अब तो माशा अल्लाह विश्व-नेता का दर्ज़ा पा चुके हैं | वे जो चाहे कर सकते हैं |चाहें तो रो सकते हैं, चाहें तो हँस सकते हैं |चाहें तो सारे देश को रुला सकते हैं |उनका तो जंगल के राजा शेर वाला मामला है- अंडा दे या बच्चा |चाहे तो वैसे ही पेट फुलाकर दिखा  और कुछ भी न दें |
वैसे वे दुविधा में रहने वाले जीव नहीं हैं |वे तो अपने स्टेटमेंट से दूसरों को दुविधा में डाल देते हैं |लेकिन क्या उनका फोन आया था ? तुझे उनकी इस दुविधा का कैसे पता चला ? 

बोला- क्यों मज़ाक करता है ? मेरे पास मोदी जो का फोन क्यों आने लगा ?अभी मैं इतना बड़ा आदमी नहीं हूँ | मैंने तो पढ़ा था कि उन्होंने फ़्रांस में अपने भाषण में कहा है- अस्थाई ३७० हो हटाने में ७० साल लगे |मुझे समझ नहीं आता कि रोऊँ या हँसूँ ? 

हमने कहा- यहाँ भी फिर मेरा कहना है कि मोदी जी हैं तो मुमकिन है |वे चाहें तो एक साथ हँस और रो सकते हैं |एक आँख हँसती हुई और एक रोती हुई | वे नेता, द्रष्टा, वक्ता, वैज्ञानिक ही नहीं ऊंचे दर्जे के कलाकार भी हैं- कृष्ण की तरह सोलह कला अवतार |लेखक यशपाल ने अपने एक संस्मरण में उस समय के केरल के एक कलाकार का वर्णन किया है जो अपनी अभिनय-क्षमता से एक आँख से हँसता और दूसरी आँख को रोता हुआ दिखा सकता था |मोदी जी एक होकर भी बहुस्यामि हैं जैसे भागवत में महारास के वर्णन में आता है कि सभी गोपियों को खुश करने के लिए कृष्ण हर गोपी को अपने साथ नृत्य करते हुए नज़र आते थे |उनके लिए यह ज़रूरी भी क्योंकि सफल नेता वही है जो एक साथ रो और हँस सके, सबसे अलग और सबके साथ नज़र आ सके |

बोला- इस नाटक की क्या ज़रूरत है ? जब रोना आए तो जम कर रो लो और जब हँसने का मन हो तो जम कर हँस लो |राजा भी मनुष्य होता है, उसे भी कम से कम अपनी मर्ज़ी से हँसने-रोने की सुविधा तो होनी ही चाहिए |

हमने कहा- देश-दुनिया में एक ही साथ कई तरह की घटनाएँ होती रहती हैं |ऐसे में कभी गहरा दुःख प्रकट करना पड़ता है, रोते हुए दिखाई देना होता है तो कभी ख़ुशी प्रकट करने की ज़रूर आ पड़ती है |जैसे मुजफ्फरपुर में दिमागी बुखार से मरे बच्चों के सिलसिले में स्वास्थ्य मंत्री को रोते हुए नज़र आना था लेकिन उसी समय क्रिकेट रूपी राष्ट्रीय धर्म के तहत स्कोर जानना भी ज़रूरी था |ऐसे में एक साथ दो-दो भावों का निष्पादन बहुत ज़रूरी होता है |या फिर सेवक ऐसा कलाकार हो कि हँसता-रोता नज़र आए |या फिर बिना किसी आवाज़ के,आँखें बंद करके केवल मुँह फाड़ दे कि लोग समझ ही न पाएँ कि बंदा रो रहा है या हँस रहा है | 

बोला- लेकिन मोदी जी को क्या उत्तर दूँ ? हो सकता है वे फ़्रांस में रोने या हँसने के लिए मेरे उत्तर का इंतज़ार कर रहे हों ?

हमने कहा- बात फ़्रांस की है |इसका उत्तर देने की ज़िम्मेदारी फ़्रांस में कार्यक्रम में भाषण सुनने वाले लोगों की है |उन्होंने बता दिया होगा या मोदी जी ने खुद तय कर लिया होगा कि हँसें या रोएँ ? उनके पास इतना समय कहाँ है ? 


मोदी को दिया गया सम्मान


अब तो वे संयुक्त अरब अमीरात में वहाँ का सर्वोच्च सम्मान ले रहे होंगे |जहाँ हँसी के साथ-साथ ख़ुशी के आँसू भी छलक रहे होंगे | और जेटली जी के जाने का ग़म भी हो रहा होगा |बहुत बार ऐसे विचित्र अवसर सभी के जीवन में आते हैं जब आदमी वास्तव में तय नहीं कर पाता कि वह रोए या हँसे | बस, यही समझ कि भगवान हर हालत में आदमी को अपना विवेक बनाए रखने की शक्ति दे | 

बोला- यह तो हुई मोदी जी की बात |अब यह बता कि तेरे इस 'कभी ख़ुशी : कभी ग़म' प्रवचन पर मैं क्या करूँ ? हँसूँ या रोऊँ ?

हमने कहा-हमने एक निस्पृह-सी हँसी के साथ कहा- तोताराम, जीवन बड़ा विचित्र है और इसी तरह हँसना-रोना भी और वह भी विशिष्ट लोगों का ! कबीर तो कहते हैं-

जब हम आए जगत में, जगत हँसा हम रोय | 
ऐसी करनी कर चलो, हम हँसे जग रोय ||


और फिर सबकी हँसी और रोना अलग अलग होते हैं | इसी सन्दर्भ में प्रसाद के चन्द्रगुप्त नाटक के चौथे अंक में कात्यायन चाणक्य से कहता है- तुम हँसो मत चाणक्य | तुम्हारा हँसना तुम्हारे क्रोध से भी भयानक है |  

इसी तरह से बिल्ली और कुत्तों का रोना भी अशुभ माना गया है |लकड़बग्घे की हँसी एक मुहावरा है जिसका अर्थ होता है- क्रूर कर्म करके हँसना |

बोला-तेरी हँसी भी लकड़बग्घे से कम नहीं है | तेरा इतना लम्बा प्रवचन सुनकर मुझे तो  सिर दर्द होने लगा है |  

हमने कहा- तो ठीक है | आज का प्रवचन यहीं समाप्त करते हैं |अभी तो चाय पी |कल सुबह ज़रा समय से आ जाना, नहा-धोकर | पहले मंदिर चलेंगे और फिर तुझे बढ़िया सा नाश्ता कराएँगे |

बोला- आदरणीय, हो सके तो इस अयाचित कृपा का कारण और उपलक्ष्य तो बता दें |

हमने कहा- इस सपाट ज़िन्दगी में तो कुछ संपेंस रहने दिया कर |

बोला- नाश्ता तो ठीक है लेकिन तूने मुझे सारी रात के लिए लटका दिया है |
इब्तदा-ए-इश्क़ में सारी रात जागे, अल्ला जाने क्या होगा आगे ?' 




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