लम्पट लोकतंत्र की अप्राकृतिक आपदाएँ
हमने जैसे ही यह समाचार पढ़ा- चेन्नई में एक २४ वर्षीय युवती अपने ऑफिस से स्कूटी पर घर जा रही थी |संयोग ऐसा हुआ कि एआईएडीएमके का एक अवैध होर्डिंग उसकी स्कूटी पर आ गिरा |उसका संतुलन बिगड़ गया और पीछे से आ रहे पानी के एक टेंकर ने उसे कुचल दिया |
हाल ही में महाराष्ट्र के पुणे रेलवे के पास एक विज्ञापन होर्डिंग अचानक गिर गया जिससे 4 लोगों की मौत हो गई और 9 लोग बुरी तरह घायल हो गए|
ऐसे ही अनेक हादसे होते रहते हैं |दोनों हादसे ही व्यापार से जुड़े हैं एक राजनीति मतलब सेवा का व्यापार और दूसरा वस्तुओं का व्यापार |दोनों में ही झूठ बोलकर छवि बनाई जाती है |बेचारी जनता की का गलती ?
इस बारे सोच रहे थे और कुढ़ रहे थे कि तोताराम टपका जैसे हरियाणा का राजनीति में अचानक गोपाल कांडा के स्थान पर दुष्यंत चौटाला टपक पड़े |
हमने कहा- तोताराम, जीवन में और लोकतंत्र में वैसे ही बहुत दुःख हैं ऊपर से ये होर्डिंग |आदमी क्या करे ? घर से नहीं निकले ? अब बोलो और कुछ नहीं तो सत्ताधारी दल आल इण्डिया अन्ना डी.एम.के. के नेता जी का होर्डिंग ही बेचारी युवती के लिए जानलेवा साबित हो गया |
बोला- इस बारे में किसी प्रकार की चिंता या दुःख करने की ज़रूरत नहीं है | उस युवती को चाहिए था कि वह नेताओं ही नहीं नेताओं के होर्डिंग तक से बचकर चले |प्राकृतिक आपदाएं हैं किसी पर भी आ सकती हैं |मान ले कोई कहीं जा रहा है और आकाश से उस पर बिजली गिर पड़े तो तू किसे दोष देगा ? उत्तराखंड में जब-तब बादल फट पड़ता है |गाँव-गाँव के गाँव बह जाते हैं |तो किसकी गलती ? अपने-अपने कर्मों का फल |अमरीका तक में तूफान आ जाते हैं |इन्हें कौन रोक सकता है ?
हमने कहा- लेकिन यह होर्डिंग गिरना क्या कोई प्राकृतिक आपदा है ? यह तो होर्डिंग के गिरने से मरने वाले के कर्मों का फल नहीं बल्कि जनता के पैसों से जगह-जगह होर्डिंग लगवाने वाले यश-लोभी नेताओं का कुकर्म है |
बोला- होर्डिंग लगवाना भी उतना ही ज़रूरी है जितना काम करना |बल्कि मैं तो कहूँगा कि काम भले ही मत करो लेकिन अखबारों, रेडियो, टीवी में प्रचार ज़रूर करो, जगह-जगह होर्डिंग ज़रूर लगवाओ |कल्पना कर यदि हर पेट्रोल पम्प पर मोदी जी के होर्डिंग नहीं लगे हुए होते तो तुझे कैसे पता चलता कि चार करोड़ लोगों को उज्ज्वला योजना के तहत गैस कनेक्शन दिए गए हैं, यदि टी.वी. रेडियों में हर दो मिनट बाद अमिताभ बच्चन और शौचा सिंह नहीं आते तो तुझे कैसे पता चलता कि घर में शौचालय होना चाहिए या दीर्घ शंका का समाधान करते हुए शौचालय का दरवाज़ा बंद करना चाहिए |मोदी जी के प्रधान मंत्री बनने से लोग या तो शौच करते ही नहीं थे या फिर जहां मन चाहा बीच सड़क पर बैठ जाते पायजामा उठाकर |
हमने कहा- जब देश आज़ाद हुआ था तो चुनाव में पूरे गाँव में कोई एक-दो पोस्टर चिपकवाए जाते थे- कांग्रेस को वोट दो और दो बैलों की जोड़ी का निशान, बस | आजकल तो गली का कोई छुटभैय्या नेता भी यदि अखबार में दिवाली की बधाई का चार गुणा चार सेंटीमीटर का विज्ञापन छपवाएगा तो उसमें भी प्रधान मंत्री से शुरू करके गाँव के पञ्च तक पहुँच जाएगा |हो सकता है कल को कोई भरे पेट वाला भ्रष्टाचारी समय पर सूरज निकालने पर मोदी जी को बधाई देता हुआ पचास गुना पचास फुट का होर्डिंग बीच सड़क पर लगा देगा |चूँकि होर्डिंग मोदी जी के फोटो के साथ है तो फिर कौन बोल सकता है ? और उस होर्डिंग की वैधता पर प्रश्न उठाने का तो प्रश्न ही नहीं उठता |किसी नेता का विजय-जुलूस भले ही सारे शहर को कैद करके रख दे लेकिन कोई कुछ नहीं बोल सकता |इसी बात की खैर मनानी चाहिए कि कोई लोकतंत्र का रखवाला, विकास का मतवाला मस्ती और गर्व से अभिभूत होकर दस-बीस लोगों की टांगें न तोड़ दे |दस-बीस रेहड़ियाँ न लूट ले |
ये प्राकृतिक आपदाएं नहीं हैं ये तो लम्पट लोकतंत्र अप्राकृतिक आपदाएँ हैं |
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach
हमने जैसे ही यह समाचार पढ़ा- चेन्नई में एक २४ वर्षीय युवती अपने ऑफिस से स्कूटी पर घर जा रही थी |संयोग ऐसा हुआ कि एआईएडीएमके का एक अवैध होर्डिंग उसकी स्कूटी पर आ गिरा |उसका संतुलन बिगड़ गया और पीछे से आ रहे पानी के एक टेंकर ने उसे कुचल दिया |
हाल ही में महाराष्ट्र के पुणे रेलवे के पास एक विज्ञापन होर्डिंग अचानक गिर गया जिससे 4 लोगों की मौत हो गई और 9 लोग बुरी तरह घायल हो गए|
ऐसे ही अनेक हादसे होते रहते हैं |दोनों हादसे ही व्यापार से जुड़े हैं एक राजनीति मतलब सेवा का व्यापार और दूसरा वस्तुओं का व्यापार |दोनों में ही झूठ बोलकर छवि बनाई जाती है |बेचारी जनता की का गलती ?
इस बारे सोच रहे थे और कुढ़ रहे थे कि तोताराम टपका जैसे हरियाणा का राजनीति में अचानक गोपाल कांडा के स्थान पर दुष्यंत चौटाला टपक पड़े |
हमने कहा- तोताराम, जीवन में और लोकतंत्र में वैसे ही बहुत दुःख हैं ऊपर से ये होर्डिंग |आदमी क्या करे ? घर से नहीं निकले ? अब बोलो और कुछ नहीं तो सत्ताधारी दल आल इण्डिया अन्ना डी.एम.के. के नेता जी का होर्डिंग ही बेचारी युवती के लिए जानलेवा साबित हो गया |
बोला- इस बारे में किसी प्रकार की चिंता या दुःख करने की ज़रूरत नहीं है | उस युवती को चाहिए था कि वह नेताओं ही नहीं नेताओं के होर्डिंग तक से बचकर चले |प्राकृतिक आपदाएं हैं किसी पर भी आ सकती हैं |मान ले कोई कहीं जा रहा है और आकाश से उस पर बिजली गिर पड़े तो तू किसे दोष देगा ? उत्तराखंड में जब-तब बादल फट पड़ता है |गाँव-गाँव के गाँव बह जाते हैं |तो किसकी गलती ? अपने-अपने कर्मों का फल |अमरीका तक में तूफान आ जाते हैं |इन्हें कौन रोक सकता है ?
हमने कहा- लेकिन यह होर्डिंग गिरना क्या कोई प्राकृतिक आपदा है ? यह तो होर्डिंग के गिरने से मरने वाले के कर्मों का फल नहीं बल्कि जनता के पैसों से जगह-जगह होर्डिंग लगवाने वाले यश-लोभी नेताओं का कुकर्म है |
बोला- होर्डिंग लगवाना भी उतना ही ज़रूरी है जितना काम करना |बल्कि मैं तो कहूँगा कि काम भले ही मत करो लेकिन अखबारों, रेडियो, टीवी में प्रचार ज़रूर करो, जगह-जगह होर्डिंग ज़रूर लगवाओ |कल्पना कर यदि हर पेट्रोल पम्प पर मोदी जी के होर्डिंग नहीं लगे हुए होते तो तुझे कैसे पता चलता कि चार करोड़ लोगों को उज्ज्वला योजना के तहत गैस कनेक्शन दिए गए हैं, यदि टी.वी. रेडियों में हर दो मिनट बाद अमिताभ बच्चन और शौचा सिंह नहीं आते तो तुझे कैसे पता चलता कि घर में शौचालय होना चाहिए या दीर्घ शंका का समाधान करते हुए शौचालय का दरवाज़ा बंद करना चाहिए |मोदी जी के प्रधान मंत्री बनने से लोग या तो शौच करते ही नहीं थे या फिर जहां मन चाहा बीच सड़क पर बैठ जाते पायजामा उठाकर |
हमने कहा- जब देश आज़ाद हुआ था तो चुनाव में पूरे गाँव में कोई एक-दो पोस्टर चिपकवाए जाते थे- कांग्रेस को वोट दो और दो बैलों की जोड़ी का निशान, बस | आजकल तो गली का कोई छुटभैय्या नेता भी यदि अखबार में दिवाली की बधाई का चार गुणा चार सेंटीमीटर का विज्ञापन छपवाएगा तो उसमें भी प्रधान मंत्री से शुरू करके गाँव के पञ्च तक पहुँच जाएगा |हो सकता है कल को कोई भरे पेट वाला भ्रष्टाचारी समय पर सूरज निकालने पर मोदी जी को बधाई देता हुआ पचास गुना पचास फुट का होर्डिंग बीच सड़क पर लगा देगा |चूँकि होर्डिंग मोदी जी के फोटो के साथ है तो फिर कौन बोल सकता है ? और उस होर्डिंग की वैधता पर प्रश्न उठाने का तो प्रश्न ही नहीं उठता |किसी नेता का विजय-जुलूस भले ही सारे शहर को कैद करके रख दे लेकिन कोई कुछ नहीं बोल सकता |इसी बात की खैर मनानी चाहिए कि कोई लोकतंत्र का रखवाला, विकास का मतवाला मस्ती और गर्व से अभिभूत होकर दस-बीस लोगों की टांगें न तोड़ दे |दस-बीस रेहड़ियाँ न लूट ले |
ये प्राकृतिक आपदाएं नहीं हैं ये तो लम्पट लोकतंत्र अप्राकृतिक आपदाएँ हैं |
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