Nov 14, 2019

ग्लोबल गोलकीपर



ग्लोबल गोलकीपर  

आज तोताराम ने आते ही फुलझड़ी छोड़ी- मास्टर, आज तो कुछ हो जाए |

हमने पूछा- क्या ? क्या अमिताभ को दादा साहब फाल्के अवार्ड मिलने पर कुछ मीठा हो जाए ? 

बोला- नहीं, ये सब तो सामान्य बातें हैं | रुटीन है | चाहे फाल्के अवार्ड हो या अकादमी अवार्ड या फिल्मफेयर का बेस्ट फिल्म, एक्टर,ऐक्ट्रेस आदि; किसी न किसी को तो दिए ही जाएँगे |  मैं तो मोदी जी मिले 'ग्लोबल गोलकीपर गौरव' की बात कर रहा हूँ |

हमने कहा- 'ग्लोबल गोलकीपर गौरव' नहीं, 'ग्लोबल गोलकीपर अवार्ड' है |

बोला- जब देश के १३० करोड़ लोगों को मालूम है तो मुझे नहीं मालूम होगा लेकिन जब बात मोदी जी है तो उनकी वक्तृत्व शैली में अनुप्रास से थोड़ा बहुत खेलने का अधिकार तो मेरा भी बनता ही है |इसीलिए ग्लोबल के साथ गौरव का तड़का लगा दिया |

हमने कहा- ठीक है |जब भारत में माइक्रोसोफ्ट का इतना धंधा फैला हुआ है तो इतना तो बनता ही है लेकिन मोदी जी को तो विकास से ही फुर्सत नहीं है |वे यह हॉकी या फ़ुटबाल कब से खेलने लगे ?

बोला- तुम्हारा कहना ठीक है | मोदी जी के सृष्टि-सेवार्थ गृह-त्याग, मगरमच्छ-पालन आदि के किस्से तो सुने हैं लेकिन उनके फुटबाल या हॉकी खेलने के बारे में कभी कुछ नहीं सुना |लेकिन राजनीति का खेलों से घनिष्ठ संबंध है, तभी तो हर नेता किसी न किसी खेल संघ का अध्यक्ष बनाना चाहता है |शरद पवार, लालू, ललित मोदी, शशि थरूर, पी.सी.जोशी, अनुराग ठाकुर आदि कौन नहीं है जो क्रिकेट से जुड़ा नहीं है |जिसको क्रिकेट जैसे धनवान खेल में घुसने का मौका नहीं मिला वह फ़ुटबाल, कबड्डी, खो-खो में ही घुस गया |हमारे जिले के एक भूतपूर्व मंत्री हैं जिनकी हालत कर्णाटक वाले कुमारस्वामी जैसी हो गई है फिर भी जिला ओलम्पिक संघ के अध्यक्ष बने हुए हैं |अब यह तो वे ही बता सकते हैं कि ओलम्पिक के किस खेल में, भारत से संबंधित उनकी क्या भूमिका रहती है ? 
क्रिकेट के ग्लेमर से तो मोदी जी भी नहीं बच सके |वे भी तो गुजरात क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष रहे हैं |उनके बाद अमित जी अध्यक्ष रहे हैं |आज भी अपने राजस्थान में क्रिकेट का कोहराम मचा ही हुआ है |

हमने कहा- लेकिन जिस खेल में मोदी जी को गोलकीपर का इनाम मिला है वह कौन-सा खेल है |

Prime Minister Narendra Modi receives the ‘Global Goalkeeper’ award from Bill Gates, in New York on Wednesday. PTI

बोला- सभी खेलों में गोल होता है |सभी विपक्षी के गोल में बॉल घुसाकर गड़बड़ करना चाहते हैं |फ़ुटबाल, हॉकी की तरह सभी खेलों में किसी न किसी रूप में गोल होते हैं और गोलकीपर का काम उसमें दूसरे की घुसपैठ को रोकना है |जैसे बास्केटबॉल में अपनी बास्केट में बॉल न जाने देना, क्रिकेट में अपने विकेट पर बॉलर की बॉल को टकराने से रोकना, टेनिस और वॉलीबॉल में अपनी तरफ गेंद न गिरने देना |क्रिकेट के  बैट्समैन और टेनिस के खिलाड़ी की सारी ज़िम्मेदारी और श्रेय खुद का होता है लेकिन फ़ुटबाल और हॉकी में गोलकीपर को सारी टीम की कमजोरी को झेलना पड़ता है |  

हमने कहा- सो तो ठीक है लेकिन अपने बचपन में तो जिसका फुटबाल होता था वह फारवर्ड खेलता था और जिसका कुछ भी नहीं होता था वह दलित होता था |उसे गोलकीपर बनाया जाता था | ग्लोकीपर के अलावा सभी को बॉल को किक मारने का मौका मिलता था |मोदी जी देश-दुनिया के इतने बड़े और शक्तिशाली नेता हैं और उन्हें इस बिल गेट्स ने गोलकीपर का ही दर्ज़ा दिया ?

बोला- हालाँकि सब भागते-दौड़ते दिखाई देते हैं | गोलकीपर बेचारा एक जगह पर खड़ा बोर होता रहा था |और उसके गोल पोस्ट के आसपास खड़े लोग उसे छेड़ते रहते थे |लेकिन तुझे पता होना चाहिए कि गोलकीपर का रोल ही सबसे महत्वपूर्ण होता है |एशियन गेम्स १९८२ में भारत और पाकिस्तान का हॉकी का फाइनल याद कर |किस बुरी तरह हारा था भारत | जिस तरह मीर रंजन नेगी खेल रहा था उससे लोगों ने उस पर मैच फिक्सिंग का इलज़ाम लगाया |सच क्या है पता नहीं, वह जाने या पाकिस्तान जाने या फिर ईश्वर क्योंकि उस समय पता नहीं नेगी की क्या मनःस्थिति हो गई होगी |उस भावभूमि पर फिल्म भी बनी थी- चक दे इण्डिया |

यह भी सच है कि सभी आक्रमण गोल कीपर को ही उसे ही झेलने पड़ते हैं बाकी खिलाडी तो वैसे ही अपनी-अपनी जगह पर उछलते रहते हैं |जैसे कि मज़े सभी मंत्री ले रहे हैं लेकिन सभी कामों की ज़वाबदेही मोदी जी की |इसलिए मेरे हिसाब से तो  'ग्लोबल गोलकीपर गौरव' सम्मान का अधिकारी मोदी जी के अतिरिक्त कोई और हो ही नहीं सकता | 
वैसे कोई नाम तो देना ही पड़ता है |जहां तक खेलने की बात है तो पूरे ग्राउंड में वे ही दिखाई देते हैं |गोलकीपर से गोल करने वाले तक वे ही हैं |वे ही बालिंग करते हैं और खुद ही उस पर छक्का लगा देते हैं और फिर मन हो तो खुद बाउंड्री पर जाकर कैच भी ले सकते हैं |जैसे महाभारत में जीत का श्रेय लेने की बहस चल रही थी तब श्रीकृष्ण ने सुझाव दिया कि बर्बरीक ने युद्ध देखा है, उसी से पूछ लिया जाए |बर्बरीक ने कहा- मुझे तो सब जगह कृष्ण का सुदर्शन ही दिखाई दिया |मेरे अनुसार इस युद्ध के विजेट कृष्ण ही हैं |तो समझ ले वे गोलकीपर ही नहीं सब कुछ वे ही हैं |ग्राउंड, बॉल, गोल, खेल-खिलाड़ी,हार-जीत, पुरस्कार सब कुछ |  

हमने पूछा- क्या तुझे पता चला कि इस पुरस्कार में नक़द नारायण कितने मिले ? हमने  तो कई अखबारों में, नेट पर सब जगह छान मारा कहीं कुछ पता नहीं चला
 
बोला- पुरस्कार एक सम्मान है |सम्मान बड़ी बात होती है, धन का क्या ? मुकेश अम्बानी की एक दिन की कमाई नोबल पुरस्कार में मिलने वाली राशि से अधिक होती है |दुनिया में और भी जाने कितने धनपति भरे पड़े हैं लेकिन नोबल तो नोबल ही होता है |

हमने कहा- लेकिन यह पुरस्कार लेते समय मोदी जी ने कई बार १३० करोड़ का ज़िक्र किया |हो सकता है इस पुरस्कार की राशि १३० करोड़ रुपए हो | उन्होंने यह सम्मान  देश के १३० करोड़ लोगों को समर्पित कर दिया | इस हिसाब से अपने हिस्से में क्या आएगा ?

'फिर वही लेनदेन की बात |ले अपने हिस्से का एक रुपया और छोड़ मोदी जी का पीछा', कहते हुए तोताराम ने हमारे हाथ पर एक टॉफ़ी रख दी |

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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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