Oct 22, 2020

राजधानी का मोर : गाँव का मोर


राजधानी का मोर : गाँव का मोर 


आज तोताराम बड़ा खुश था |बोला- मास्टर देखा,  मोदी जी के कारण लोग पक्षी, पर्यावरण और प्रकृति में कितना रुचि लेने लगे हैं ? एक दिन में ही सोलह लाख लाइक्स और व्यूज मिल गए हैं मोर वाले वीडियों को |वैसे यह मोर है भी कितना सभ्य और फ्रेंडली |

हमने कहा- ये लाइक्स मोर को नहीं, मोदी जी को मिले हैं | हमें तो यह कोई फ़िल्मी मोर लगता है जो निर्देशक के इशारे पर साउंड, लाइट, कैमरा, एक्शन करता है | फिल्मों में नायिका के आसपास जो हिरन, कबूतर, बतख और तोते आदि दिखाए जाते हैं वे सब फ़िल्मी होते हैं |उन्हें सहज भाव से पोज देने का अनुभव होता है |यदि आज भी शकुंतला-भरत और दुष्यंत पर कोई फिल्म बनाएगा तो ज़रूर कोई भरत से चुपचाप अपने दाँत गिनवाने वाला शेर भी मिल जाएगा |

 बोला- मास्टर, मोर तो अपने राजस्थान में अधिक पाए जाते हैं |अरावली की पर्वत श्रेणियाँ  राजस्थान को दक्षिण-पश्चिम नैऋत्य कोण से उत्तर-पूर्व ईशान कोण पर काटती हुई दिल्ली को पार कर जाती है |हो सकता है यह मोर राजस्थान से ही दिल्ली गया हो  | 

हमने कहा- याद रख राजधानी जाकर कोई भी कहीं का नहीं रहता |वह बस, राजधानी का हो जाता है | गाँव, गली, घर, रिश्ते-नाते सब भूल जाता है |राजधानी का मतलब समझता है ना ? राजधानी मतलब सत्ता से निकटता |हमें नहीं लगता कि वह हमें अपनी राजस्थानी पहचान के कारण कोई घास डालेगा |

बोला- मोर तो मोर मोर होता है |उसमें क्या राजधानी और क्या गाँव |राजधानी के मोर के क्या कुछ अतिरिक्त पंख उग आते हैं ?


prime minister narendra modi playing with peacocks in residence lawn photos



हमने कहा- देखने में तो दोनों एक जैसे ही लगते हैं लेकिन व्यवहार में अलग-अलग | राजधानी का मोर बहुत सभ्य होता है |वह नेता का पद, प्रभाव, पार्टी और उसकी संभावनाएँ देखकर तदनुसार नाचता हैं, पोज देता है, सभ्यता से दाना चुगता है |और गाँव का मोर तो हमारी फोटोग्राफर चाची के मोर की तरह दादागीरी छाँटता है |

बोला- यह क्या प्रसंग-सन्दर्भ है ?

हमने कहा- हमारी सबसे बड़ी चाची आजकल कानपुर में रहती है |चाचा फोटोग्राफर थे इसलिए हम उन्हें फोटोग्राफर चाची कहते हैं |१९५० के आसपास वे गाँव में ही रहती थीं |घर के दालान पर लोहे की चद्दर का छाजन था |चाची रोज पक्षियों के लिए उस छाजन पर दाने डालती थी |सुबह-सुबह कोई आधे घंटे तक टीन पर विभिन्न पक्षियों की टक-टक-टन-टन का संगीत बजता था |कभी चाची दाना डालने में लेट हो जाती तो मोर बड़े जोर से टीन पर ठक-ठक करता जैसे कोई दबंग और देशभक्त नेता वोटर पर रंगदारी जमाता है |

बोला- यह दादागीरी वाली बात तो आजकल सभी नेताओं में देखने को मिलती है |वही जिताऊ उम्मीदवार होता है |भले आदमी को कोई पार्टी टिकट ही नहीं देती |अच्छा, राजधानी वाले मोर में और क्या ख़ास बात होती है ?

हमने कहा- राजधानी वाले मोर में यह विशेषता होती है कि वह  बड़े नेता के कहे अनुसार ताली-थाली तो बजाता ही है बल्कि तत्काल प्रमाणस्वरूप फोटो भी अखबारों में छपवा देता है |और तो और वह बड़े नेता की इच्छा के विरुद्ध किसी को बधाई भी नहीं देता |संवेदना, ख़ुशी और चिंता भी नेता के पद चिह्नों पर चलते हुए ही देता है |वह रिस्क नहीं लेता |     



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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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