May 27, 2021

अंतर्राष्ट्रीय अबाध ऑक्सीजन आपूर्ति अभियान यात्रा

अंतर्राष्ट्रीय अबाध ऑक्सीजन आपूर्ति अभियान यात्रा 


कल जब तोताराम आया तो थोड़ा गंभीर था, बोला- मास्टर, पिछले साल जब कोरोना फैला था तब यह ऑक्सीजन वाला चक्कर कम था. अब अचानक पता नहीं क्या हो गया ? लगता है जैसे देश के सारे जंगल साफ़ हो गए. जिसे देखो ऑक्सीजन की कमी की शिकायत कर रहा है. अब कोई डीज़ल पेट्रोल और रसोई गैस की महँगाई की शिकायत नहीं कर रहा. जिसे देखो, ऑक्सीजन के लिए भागा फिर रहा है. लोग ऑक्सीजन की काला बाजारी कर रहे हैं. कुछ आधा खाली सिलेंडर की धका रहे हैं. लगता है इस समय ऑक्सीजन के लिए स्थायी प्रबंध करना ही सबसे बड़ा काम है. 

हमने कहा- उत्तर प्रदेश में तो योगी जी के सुशासन के कारण किसी चीज की कोई कमी नहीं है फिर भी लोग मर तो रहे हैं. अब यह पता नहीं कि वास्तव में ही कोई समस्या है या फिर लोग योगी जी और उनकी आड़ में मोदी जी को बदनाम करने के लिए मर रहे हैं.

बोला- मास्टर, यह तू बहुत घटिया आरोप लगा रहा है. ठीक है 'नाक कटाकर दुश्मन का शगुन बिगाड़ने' की कहावत है फिर भी विरोधी पार्टी के शासन में कानून व्यवस्था को बदनाम करने के लिए कुछ टुच्चे नेता खुद पर ही हमला करवाने का सीन फिल्माते हैं लेकिन उसे रीयल बनाने के लिए कोई वास्तव में नहीं मरता. 

हमने कहा- लेकिन यू पी में लोग मर रहे हैं. खबरों के आंकड़े सरकार से संबंधों के अनुसार कुछ इधर-उधर किये जा सकते हैं लेकिन श्मशान के आंकड़े तो झूठ नहीं हो सकते.

बोला- लेकिन ऐसे में हमें भी कुछ तो करना चाहिए. आज घर जाकर इस पर गंभीरता से विचार करूंगा.

आज सुबह हम जैसे ही तोताराम का इंतज़ार कर रहे थे तो एक जुलूस तो नहीं लेकिन एक 'प्रतीकात्मक-सा' जुलूस का बीजाणु जैसा कुछ प्रकट हुआ. आगे-आगे बैनर पकड़े तोताराम का पोता बंटी, इसके बाद मैना और अंत में सिर पर गमछा रखे, गाँधी जी के दांडी यात्रा की साजसज्जा में लाठी टेकता तोताराम. 

जुलूस हमारे बरामदे के सामने रुका. तोताराम ने आगे बढ़ते हुए हमारे हाथ में एक हरी झंडी थमा दी और उच्च स्वर में घोषणा की- 

अब देश के महान व्यंग्यकार श्री रमेश जोशी विश्व में ऑक्सीजन की अबाध आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए तोताराम के नेतृत्त्व में निकाली जा रही अन्तर्राष्ट्रीय अबाध ऑक्सीजन आपूर्ति अभियान यात्रा को हरी झंडी दिखा कर रवाना करेंगे.  मैना ने ताली बजाई और तभी फोटो लेने के लिए बंटी सामने के प्लाट की दीवार पर चढ़ गया. हमें किसी ने सोचने समझाने का अवसर ही नहीं दिया. हमसे झंडी लहराने के अलावा कुछ कहते-सुनते ही नहीं बना. दो मिनट में इस महाभियान के शुभारम्भ का काम संपन्न हो गया.

बंटी और मैना को घर जाने का आदेश देकर तोताराम हमारे साथ बरामदे में आ बैठा.

हमने पूछा- यह क्या नाटक है ?

बोला- शुरू में सभी बड़े काम नाटक ही लगते हैं. इसे किसी नेता की रैली के रूप में शक्ति-प्रदर्शन की तरह मत देख. इसे मोदी जी के विजन की तरह एक महान विचार, एक विराट स्वप्न के रूप में देख. कल यही विचार विश्व को पाने आगोश में ले लेगा और दुनिया की शक्ल बदलकर रख देगा.

हमने पूछा- समस्त विश्व में ऑक्सीजन की अबाध आपूर्ति अभियान ! कोई छोटा काम है ? कितने बड़े-बड़े अनगिनत आक्सीजन प्लांट लगाने होंगे.  आपूर्ति कैसे करेगा. वास्तु का होना ही नहीं उसको यथासमय, यथास्थान ही बहुत बड़ा कम होता है.क्या प्लान है, बता तो सही.

बोला- तूने सुना होगा कि पीपल का पेड़ २४ घंटे ऑक्सीजन देता है. तभी गीता में कृष्ण कहते हैं- अश्वत्थ सर्व वृक्षाणाम. 

हमने कहा- गीता और कृष्ण के बारे में तो हम क्या कहें लेकिन यह एक बार-बार दुहराया गया झूठ है जिसके बारे में बहुत  सेवनस्पति शास्त्री भी वेद विज्ञानियों से डरते हुए चुप रहते हैं लेकिन यह तय है कि कोई भी वृक्ष २४ घंटे ऑक्सीजन नहीं देता. हाँ, यह ठीक है जितने ज्यादा पेड़ होंगे उतना ही दुनिया को साँस लेने के लिए साफ़ हवा मिलेगी. 

बोला- तो ऐसा ही समझ ले. हम सारी दुनिया में पीपल के पेड़ लगवाएँगे. 

हमने कहा- लेकिन पेड़ हैं कहाँ ? और इस कोरोना काल में वैसे ही आवागमन बंद है. 

बोला- तो हम कहाँ जा रहे हैं. फिलहाल हम इस ग्रीष्म ऋतु में पीपल के फल इकठ्ठा करेंगे. उसके बाद जो भी देश या व्यक्ति पीपल के पेड़ लगाना चाहेगा वह हमारे भारत स्थित 'अंतर्राष्ट्रीय अबाध ऑक्सीजन आपूर्ति संस्थान' के अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष तोताराम से संपर्क कर सकता है. उसे पीपल के बीज 'पहले आओ : पहले पाओ' के आधार पर  निःशुल्क उपलब्ध करवाए जाएंगे. 

चल,अभी इस आशय का एक प्रस्ताव संयुक्त राष्ट्रसंघ के अध्यक्ष को भिजवाने के लिए अपने वार्ड पार्षद को  भी सौंप आते हैं. और सबसे विश्वसनीय अखबार को इसका समाचार भी दे आते हैं.

हमने कहा- ठीक है. अब अखबार भले ही टीकाकरण, ऑक्सीजन, अस्पताल के समाचार या नंबर न छापें लेकिन ऐसे ही हवाई समाचारों को ज़रूर पूरा कवरेज देते हैं.

बोला- तू हमारे विश्वसनीय अखबार पर ऐसा आरोप नहीं लगा सकता.

हमने कहा- अभी तो चल, समाचार दे आते हैं. बाद में तुझे ऐसा ही एक 'विश्वसनीय' समाचार दिखाएंगे और चर्चा भी करेंगे. 



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May 23, 2021

पीयूष गोयल का मितव्ययिता सिद्धांत


पीयूष गोयल का मितव्ययिता सिद्धांत    

     

आते ही तोताराम ने कहा- लगता है आज सूरज पश्चिम से उगा है. 

हमने कहा- किसी महामानव ने दिन भर हरी झंडी नहीं दिखाई होगी. अंत में लाचार होकर सूरज को उल्टा चक्कर लगाकर पश्चिम से निकलना पड़ा होगा. 

बोला- मास्टर, तेरा भी ज़वाब नहीं, जहां बात को व्यंजना में लेना होता है वहाँ अभिधा में लेगा और जहां अभिधा की बात होगी वहाँ लक्षणा घुसेड़ देगा. मैं मुहावरे में बात कर रहा हूँ. 

हमने कहा- तो आज ऐसा क्या हो गया जो सूरज को पश्चिम में उगा दिया. क्या अपनी सात साल की भूलों के लिए माफ़ी मांग ली ? 

बोला- नहीं, आज मोदी जी ने अपने सबसे बड़े शत्रु की तारीफ़ की.

हमने कहा- मोदी जी तो पूरे देश के प्रधानमंत्री हैं. वे तो सबको साथ लेकर सबका विकास करने वाले महान नेता हैं. वे किसी से क्यों शत्रुता रखेंगे. 

बोला- देखो, हर एक का कोई न कोई शत्रु होता है. शत्रु के बिना प्रयत्नों को गति और मन को उत्साह नहीं मिलता. संघ के शलाका-पुरुष माधव राव सदाशिव राव गोलवलकर ने अपनी पुस्तक 'बंच ऑफ़ थॉट्स' में संघ के तीन शत्रु बताये हैं- मुसलमान, ईसाई और कम्यूनिस्ट. और आज मोदी जी ने इन तीनों की एक साथ प्रशंसा कर दी है. तो यह सूरज का पश्चिम में उगना हुआ कि नहीं ?

हमने उत्सुकता से पूछा- वह कैसे ?

बोला- केरल मुसलमान, ईसाई और कम्यूनिस्टों का समुच्चय है. तीनों ही वहाँ की राजनीति तय करते हैं. ऐसे केरल की मोदी जी ने प्रशंसा करते हुए कहा है कि वेक्सीन में १०% वेस्टेज की छूट दी गई है जब कि केरल ने कोई वेस्टेज नहीं किया. और मज़े की बात यह रही कि ७३ लाख वेक्सीन ऐसे मितव्ययिता से लगाते हुए  ८७ हजार अतिरिक्त लोगों को निबटा दिया.

हमने कहा- यह केरल की नहीं, प्रकारांतर से केंद्र में भाजपा के मंत्री पीयूष गोयल की तकनीक की प्रशंसा है जिन्होंने कहा था कि ऑक्सीजन मितव्ययिता से काम में ली जानी चाहिए. अपने यहाँ के अनुभवी, व्यापारी किस्म  के बुज़ुर्ग लोग कहा करते हैं- जब किसी फंक्शन में मिठाई कम पड़ने लग जाए तो सब्जी में मिर्च और पानी में बर्फ डलवा देनी चाहिए. मिर्च से मुंह जलेगा तो बर्फ का ठंडा पानी खूब पिया जाएगा और ऐसे ही पेट भर जाएगा.

जब गोयल जी ने कहा था तो लोग मज़ाक बनाने लगे थे लेकिन अब उसीकी दाद दे रहे हैं. यही बात अगर कोई विदेशी विशेषज्ञ कहता तो लोग उद्धृत करते. इसीको कहते हैं- घर का जोगी जोगना,आन गाँव का सिद्ध. 

बोला- तभी सरकार के टीका विशेषज्ञ जहां पहले कहते थे कि दूसरा टीका चार हफ्ते बाद लगवाओ, अब वे ४५ दिन बाद की बात करने लगे हैं. सुनने में तो यह भी आ रहा है कि दूसरा टीका छह महीने बाद लगेगा.  हो सकता है कल को कह दें कि अगर एक टीका लग गया है तो दूसरे को कोई ज़रूरत नहीं है. 

हमने कहा- इसी सिद्धांत के अनुसार ही तो पिछले लॉक डाउन में उत्तर प्रदेश में दस किलो गेहूँ की जगह साढ़े आठ किलो और एक किलो चने की जगह आठ सौ ग्राम चने में लाखों लोगों को निबटा दिया गया था. तभी तो कहा है- बाँटन वारे को लगे ज्यों मेहंदी को रंग. 

 

 


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May 17, 2021

फिर प्रतीकात्मक .....


फिर प्रतीकात्मक .....


तोताराम चाय पीकर चला गया और हम नहाने के लिए. लेकिन यह क्या ? जैसे ही पत्नी ने रात के दो फुल्के छाछ में चूर कर पौष्टिक नाश्ता हमारे सामने रखा, तोताराम प्रकट हो गया.

हमने कहा- यह क्या तमाशा है ? न हमारा डीए बढ़ा है और न ही मोदी जी की कृपा से भविष्य में किसी पे कमीशन की कोई आशा. ऐसे में क्या अब तेरा नाश्ते का भार भी हमें ही उठाना पड़ेगा. 

बोला- तेरे जैसे छोटे दिल वालों के कारण ही तो यह सोने की चिड़िया, विश्वगुरु संकट में हैं. पाकिस्तान जैसे देश को भी हमें मास्क भिजवाने की हिम्मत हो गई. 

हमने कहा- जिसकी जितनी हैसियत होगी उतना ही तो देगा. मुकेश अम्बानी ने ५०० करोड़ रुपए दिए तो हजार जगह नाम आ रहा है. दिया क्या मात्र १५ दिन की कमाई. वह भी पता नहीं कितनी अपनी मेहनत की है और कितनी सरकार की कृपा से ? लेकिन यदि हम अपनी ३० दिन की पेंशन कोरोना संकट में दान दे दें तो क्या मोदी जी हमसे उसी तरह मिलेंगे जैसे वे मुकेश अम्बानी और नीता अम्बानी से मिलते हैं ? पानी समुद्र पर ही ज्यादा बरसता है.

बोला- मोटी मुर्गी छोटा अंडा देती है. पैसे वाले के हाथ से पैसा बहुत मुश्किल से छूटता है. भले जाय चमड़ी,  पर न जाय दमड़ी. बड़ा दान गरीब ही दे सकता है. धनवान तो इसमें भी गणित लगाता है. श्राद्ध भी बेटे के टीचर को जिमाता है. एक पंथ दो काज, कर्मकांड का कर्मकांड और वक़्त ज़रूरत बच्चे का ख़याल भी रखेगा. इसीलिए धनवान का छोटा-सा दान भी बड़ा होता है. तभी राष्ट्रपति भवन या गवर्नर्स हाउस में २६ जनवरी को धनवानों को बुलाया जाता है ? क्या मोदी जी के शपथ-ग्रहण समारोह में किसी तेरे जैसे मास्टर को बुलाया गया ?

हमने कहा- लेकिन इन धनवानों के छोटे दानों से क्या होगा ?

बोला- होगा, ज़रूर होगा. और फिर मोदी जी तो हैं ही. मोदी जी हैं तो सब कुछ मुमकिन है. अभी अभी उन्होंने घोषणा की है कि १८ साल से ऊपर वाले सभी को टीका लगेगा. मैं तो इसीलिए आया था कि हम दूसरी डोज़ लगवा आते हैं और बंटी, सोनू और शुभम को भी टीका लगवा लाते हैं.  

हमने कहा- देश में १८ साल से बड़े लोगों की जनसंख्या संख्या करीब ८५ करोड़ है. इतने लोगों को टीका लगवाना इतनी जल्दी संभव नहीं है. अमरीका के ४८%  वयस्क लोगों को टीका लगाया जा चुका है. वह एक साधन संपन्न देश है और वहाँ टीके को लेकर मोल-भाव नहीं किये गए. सबको बिठाया और लगाया टीका. अब वे बिन मास्क के भी घूम सकेंगे. यहाँ की तरह नहीं कि वोट दोगे तो फ्री टीका लगेगा. या टीके की कीमत कहीं १५० तो कहीं ६००. 

बोला- क्या बिना मास्क के घूमना ही बड़ी बात है ? क्या अमरीका के लोग इसी के लिए टीका लगवा रहे हैं ? यदि ऐसा है तो हम तो पिछले एक महिने से बंगाल में मोदी जी की ख़ुशी के लिए लाखों-लाख की संख्या में रैली में शामिल हो रहे थे. अकेले कुम्भ में ही कोई तीस-चालीस लाख लोग जमा होकर पुण्य-लाभ कमा चुके.

हमने कहा-  तभी तो बंगाल में संक्रमण बीस गुना बढ़ गया. और शेष राज्यों में कुम्भ में स्नान करके पवित्र होकर पहुंचे लोग अपने-अपने राज्यों में जाकर चमत्कार दिखा ही रहे हैं.   

बोला- फिर भी टीके के महत्त्व से कौन मना कर रहा है ? इसीलिए तो अपने सीकर के एस. के. अस्पताल में आज से १८ वर्ष के ऊपर वालों का टीकाकरण शुरू हो गया है.

हमने कहा- समाचार पूरा पढ़ाकर. अंत में लिखा है कि टीके बहुत कम मात्रा में आए हैं इसलिए प्रतीकात्मक रूप में कुछ लोगों को ही लगाए जायेंगे. अब जब प्रतीकात्मक ही करना है तो यहीं कर लेते हैं. 

बोला- कैसे ?

हमने कहा- हम बंटी की बाँह में सुई घुसाते हुए और तू सोनू की बाँह में सुई घुसाते हुए फोटो खिंचवा लेना. हो गया प्रतीकात्मक टीकाकरण.

बोला- लेकिन इसके फायदा क्या होगा ?

हमने- वही जो गणेश जी को एक इंच के कलावे के 'वस्त्रं समर्पयामि' से होता है, या कोरोना के स्वास्थ्य पर ताली-थाली से जो फर्क पड़ता है या जैसे गोबर के लेप से आणविक विकीरण से बचाव होता है.


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May 14, 2021

३० जून तक तो हो लेंगे


३० जून २०२१ तक हो लेंगे 


जब से कोरोना का विस्फोट हुआ है कोई कुछ बोलने लायक रहा ही नहीं. सबकी दाढ़ी में तिनका है. सबकी कोई न कोई गलती है. फिर चाहे वह सरकार हो, जनता हो. राजस्थानी में कहावत है- क्यूँ तो कुंव्हाड़ भूठी, क्यूँ भाठा चीकणा. मतलब कुछ तो कुल्हाड़ी की धार ज्यादा खराब और कुछ धार लगाने वाला पत्थर चिकना. जनता मंदिर-मस्जिद, हिन्दू-मुसलमान, लव जिहाद, तीन तलाक़ में मज़े लेने वाली और जहां तक सरकारों की बात है तो उन्हें तो जनता को कोई झुनझुना थमाना होता है. और इन भावनात्मक झुनझुनों से बेहतर कोई झुनझुना हो नहीं सकता. जिसकी कभी कोई नाप-जोख नहीं हो सकती कि फायदा हुआ या नहीं. और जहां तक नुकसान की बात है तो वह तो समझदार और निष्पक्ष को ही पता लग सकता है. और निष्पक्ष को तो सरलता से देशद्रोही सिद्ध किया जा सकता है.

जिसका समर्थन किया उसकी गलतियों का ज़िक्र करके लगता है कहीं हम खुद को ही बेवकूफ तो सिद्ध नहीं कर रहे हैं. ऐसे में तोताराम भी कुछ बोलने लायक नहीं रहा. वैसे आजकल बड़ी दार्शनिक बातें करने लग गया है. लगता है, कहीं सिद्ध फकीर की तरह झोली-झंडा उठाकर केदारनाथ की किसी गुफा में न जा बैठे. देश-दुनिया किसी तोताराम जैसे फकीरों या किसी अवतारी या जिल्लेशुभानी के बल पर नहीं चलते. वे तो चलते हैं जनता की अपनी बेवकूफियों से.

आज जैसे ही आकर बैठा, नाटक के स्वगत कथन की तरह फुसफुसाया- ३० जून २०२१ तक हो लेंगे.

हमने सुना तो झटका-सा लगा, पूछा- कौन क्या हो लेंगे ? क्या हम-तुम कोरोना संक्रमित हो लेंगे ? क्या देश-दुनिया के कमजोर रोग-प्रतिरोधक क्षमता वाले कोरोना पीड़ित होकर ऑक्सीजन, रेमडेसीवियर, अस्पताल में बेड, वेंटीलेटर के अभाव में निबट लेंगे ? 

बोला- विपक्ष की तरह जनता का मनोबल तोड़ने वाली नकारात्मक बातें मत कर. क्यों निबट लेंगे ? हमारे पास अंतर्राष्ट्रीय स्तर का चमत्कारी नेतृत्त्व है जिसकी एक गुहार पर सारी दुनिया सहायता के लिए दौड़ पड़ी. और उत्तर प्रदेश में कोई कुछ भी कहे लेकिन न तो ऑक्सीजन की कमी है और न ही बेड और वेंटीलेटर की. हो तो कोई एक ट्वीट और अस्पतालों के बाहर 'ऑक्सीजन या खाली बिस्तर नहीं है की सूचना' दिखा दे.   मोदी जी की योजना के अनुसार निर्मला सीतारामन ने १२ नवम्बर २०२० को 'आत्मनिर्भर भारत' की घोषणा कर दी थी जिसे  १ अक्तूबर २०२० से लागू माना गया. मतलब ४२ दिन तो बिना घोषणा के ही भारत को गुपचुप आत्मनिर्भर बनाते रहे. यह योजना ३० जून २०२१ तक चलेगी मतलब तब तक भारत आत्मनिर्भर हो लेगा. तब तक सब सभी क्षेत्रों में आत्मनिर्भर हो लेंगे. 

हमने पूछा- तो क्या ३० जून २०२१ तक देश को दूसरे देशों से वेक्सीन, वेंटिलेटर, ऑक्सीजन, मास्क, पीपीई किट आदि नहीं मंगाने पड़ेंगे ? क्या सभी कोरोना पीड़ितों को अस्पतालों में बिस्तर मिल जाएंगे ?

बोला- तब तक लोग सरकारों से शिकायत करना बंद कर देंगे. अब भी देख नहीं रहे, लोग खुद ही ऑक्सीजन का  आधा खाली सिलेंडर चौगुने पैसों में खरीदकर, कंधे पर रखकर अस्पतालों में पहुंचा रहे हैं या नहीं ? कोरोना से मृत रिश्तेदार को साइकल पर लादकर खुद ही दाह संस्कार करने लगे हैं या नहीं. खुद ही अस्पताल ढूँढ़ रहे हैं या नहीं ? खुद ही बीस-बीस हजार में रेम्डेसीविर के नाम पर ग्लूकोज खरीद रहे हैं या नहीं ? इससे बड़ी आत्मनिर्भरता क्या होगी ? तब तक लोग खुद ही घर पर गौमूत्र गोबर से इलाज करना, अर्थी बनाना, अंतिम संस्कार करना  सभी मामलों में आत्मनिर्भर हो जाएंगे. 

हमने कहा- वैसे ही जैसे मानवेतर प्राणियों में सभी आत्मनिर्भर हैं.

बोला- इन्हें मानवेतर नहीं अलौकिक कहो. आज ही राम जन्मभूमि ट्रस्ट के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष आत्मानंद सरस्वती को रोका गया. वे कोरोना प्रोटोकोल के तहत मास्क नहीं लगाए हुए थे. कारण पूछा गया तो वही वैदिक ज्ञान-विज्ञान वाली तर्क. कहा- मैं तो मोदी जी के आदेशों का पालन कर रहा हूँ. उन्होंने कहा है- अपनी सुरक्षा खुद करो मतलब आत्मनिर्भर बनो. मैं अपनी सुरक्षा खुद आकर रहा हूँ. 

हमने कहा- वैसे ऐसी अलौकिक और वैदिक सुरक्षा से कुम्भ मेले में जाकर दो विशिष्ट संत-महंत परलोक सिधार चुके हैं. लेकिन हमें इनकी नहीं बल्कि इनसे अपनी सुरक्षा करनी है. 


और क्या ? रहीम जी ने भी तो यही कहा है-

रहिमन बहु भेषज करत व्याधि न छाँडत साथ |

खग-मृग बसत अरोग बन हरि अनाथ के नाथ ||


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May 13, 2021

नोट बैड


नोट बैड


तीन दिन से खाँसी-ज़ुकाम है लेकिन हम विश्वगुरुओं, राष्ट्र की छवि निर्माताओं की तरह सकारात्मक बने हुए हैं. करने  को तो हम कोरोना की आशंका भी कर सकते हैं लेकिन जब तक साँस चल रही है तो क्यों मरने से पहले मरने की पीड़ा भुगतें. वैसे खाँसी सूखी नहीं है. तीन-चार बार खांसने से थोड़ा कफ निकल जाता है और सब ठीक.

चाय आई और तभी हमें खाँसी. तब तक तोताराम चाय का एक घूँट ले चुका था. हमने मार्क किया कि उसने कुछ मुँह बनाया लेकिन यह तय नहीं कर पाए कि मुँह हमारी खाँसी पर बनाया या चाय पर. हम थूक कर आए और पूछा- क्या बात है ? क्या चाय ठीक नहीं बनी ?

अमरीकन स्टाइल में बोला- नोट बैड. 

हमने कहा- यह कैसा कमेन्ट है ? पीने लायक बनी है तो आराम से पी नहीं तो साफ़-साफ़ बोल. 

बोला- जो हुआ वह अच्छा हुआ, जो हो रहा है वह अच्छा हो रहा है, जो होगा वह भी अच्छा ही होगा. तू अपनी बता. 

हमने कहा- हमें क्या हुआ है ? बदलते मौसम की खाँसी है दो-पाँच दिन में ठीक हो जाएगी.

बोला- फिर भी किसी अच्छे अस्पताल में एडमीशन की बात तो करके रख. पता नहीं कब क्या ज़रूरत पड़ जाए.

हमने अस्पतालों के नंबर देखकर ऐसे ही किसी एक नम्बर लगा दिया.

उधर से उत्तर आया- जय श्रीराम.

लगता है किसी मंदिर का नंबर लग गया. वैसे तो आजकल सब कुछ 'मंदिर' ही हो गया है. प्याऊ नहीं जल-मंदिर कहेंगे, गाइड से प्रश्नोत्तर रटाने की दुकान का नाम होगा- विद्या मंदिर. हो सकता है कोरोना के नाम पर दस दिन घर वालों की आँखों से दूर रखकर लाखों रुपए वसूल करके एक दिन शव संभला देंगे या हाथरस वाली लड़की की तरह आधी रात को जलाकर हिसाब-किताब बराबर कर दिया जाएगा. 

खैर, हमने फिर फोन लगाया. अबकी बार उत्तर आया- भारत माता की जय.

हमने कहा- तोताराम, आज तो बड़ा राष्ट्रीय मामला हो रहा है. पहले 'जय श्री राम' और अब 'भारत माता की जय'. कहाँ लग रहा है यह फोन. 

बोला- लगता है उत्तर प्रदेश के किसी अस्पताल का लग रहा है. 

हमने पूछा- तो ढंग से बात क्यों नहीं कर रहे हैं ? 

बोला- यही है बात करने का सुरक्षित तरीका. तुझे पता होना चाहिए उत्तर प्रदेश में योगी जी ने यह आदेश दिया है कि अस्पताल ऑक्सीजन की कमी की सूचना न लगाएं. ऑक्सीजन की कमी के कारण मरीजों को अस्पताल से डिस्चार्ज न करें और ऐसे मामलों में मीडया से बात न करें अन्यथा उनके खिलाफ कार्यवाही की जाएगी. हो सकता है सरकार की छवि बचाने के लिए दिए गए आदेशों के तहत अपनी खाल बचाने के लिए अस्पताल वाले किसी भी फोन के उत्तर में शायद ये दो सुरक्षित 'नारे' लगा रहे हों. 

हमने कहा- क्या इसी सन्दर्भ में तूने चाय के बारे में साफ़ नहीं कहा ?

बोला- मे बी. 

तभी पत्नी ने कहा- आज पता नहीं चाय में चीनी की जगह नमक कैसे डल गया. थोड़ा रुको, दूसरी बनी जाती है.


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May 8, 2021

ते ते पाँव पसारिये.....


ते ते पाँव पसारिये ........


राष्ट्रवादी नेता दूसरों को धैर्य, संतोष के साथ साथ गोबर, गोमूत्र, गंगाजल और गंडा-ताबीज से सभी बीमारियों का इलाज़ बताते हैं लेकिन खुद या अपने परिवार के किसी सदस्य के बीमार होने पर विदेश या एम्स भागते हैं. हमारे पास इतनी हिप्पोक्रेसी की तो गुंजाइश नहीं है फिर भी जब तक कोई खतरा न हो तो हम भी राष्ट्रवादी और वैदिक विज्ञान प्रेमी हो लेते हैं. जब कोरोना होगा तब की तब देखी जाएगी लेकिन फिलहाल हम वैकल्पिक थेरेपियाँ भी आजमा लेते हैं जैसे बैठकर पानी पीना, घूँट-घूँट धीरे-धीरे पीना. कुछ लोग कहते हैं कि यदि सांस को साध लिया जाए तो २५ लाख बीमारियों का इलाज़ हो सकता है. २५ लाख तो शब्द ही नहीं होंगे हिंदी में लेकिन फ्री में और बिना खतरे के जो हो जाए उसमें क्या बुराई है. 

आजकल देश में ऑक्सीजन की बहुत कमी चल रही है. इसका एक कारण तो कोरोना बताया जा रहा है लेकिन हमारे अनुसार तो आजकल नेता लोग चुनावों के चक्कर में जो बदबू वाले भाषण दे रहे हैं उनसे इतना कार्बन उत्सर्जन हो रहा है कि कोरोना पीड़ितों का ही क्या, अच्छे भले लोगों का दम घुटने लगा है. किसी ने कहा सुबह-सुबह अनुलोम-विलोम करने से फ्री में अतिरिक्त ऑक्सीजन मिल जाती है. 

सो बरामदे में वही फेफड़ों की धौंकनी चला रहे थे कि तोताराम ने ध्यान भंग किया. बोला- क्या सारे देश की ऑक्सीजन तू ही खींच लेगा ? 

हमने कहा-  अभी तो साढ़े छह बजे हैं. रामदेव और उनके भक्तों ने चार बजे उठकर सारी ऑक्सीजन खींच ली. अब जो थोड़ी बहुत बची है उसमें तू टांग अड़ा रहा है. हम कौन सी हर्षवर्द्धन से ऑक्सीजन मांग रहे हैं. 

बोला-  पीयूष गोयल ने कहा है कि ऑक्सीजन का थोड़ा मितव्ययिता से उपभोग करो. और तू है कि खींचे ही जा रहा है. 

हमने कहा- सब चीजों का कंट्रोल तो अब सरकार के पास है. पिछले तीस बरसों बाद किसी सरकर को स्पष्ट बहुमत मिला है. ३०३. समझ ले थ्री नोट थ्री बंदूक की तरह. पुलिस से रिटायर कर दी गई तो क्या, राजनीति में तो धड़ल्ले से चल रही है. चाहे जिस का एन्काउन्टर कर दे रही है.  गोयल जी जब चाहे रिमोट से रेगुलेटर घुमा कर कम कर देंगे. 

बोला- राष्ट्रीय ज्ञान-विज्ञान की नई नई पीएचडी कंगना रानावत ने कहा है कि ज्यादा पेड़ लगाने चाहियें जिससे ऑक्सीजन की कमी न पड़े. 

हमने कहा- तो फिर जब तक कोरोना का प्रकोप है तब तक जयपुर रोड़ पर हनुमान जी वाले मंदिर में पीपल के पेड़ के नीचे अड्डा जमा लेते हैं. कोरोना या तो होगा नहीं और हो गया तो दिन रात फुल ऑक्सीजन. कहते हैं पीपल दिन रात ऑक्सीजन ही छोड़ता है. 

बोला- थोड़े दिन बाद तो देश में न ऑक्सीजन की कोई कमी नहीं रहेगी और न कोरोना का प्रकोप. सुना है मंगल ग्रह पर ऑक्सीजन बना ली गई है. बंगाल वाला चुनाव निबट जाने फिर मोदी जी वहाँ एक बड़ा ऑक्सीजन प्लांट लगवा देंगे और कोरोना को भी 'मन की बात' सुना सुनाकर अधमरा कर देंगे.


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May 2, 2021

प्रतीकात्मक चाय


प्रतीकात्मक चाय 


आज तोताराम पर बड़ी खुन्नस आ रही थी. हम तो उसे अपने मन की छोटी से छोटी बात भी बता देते हैं  लेकिन वह 'मन की बात' करने का नाटक तो करता है लेकिन वास्तव में है बहुत  घुन्ना. असली बात कभी नहीं बताता. जैसे मोदी जी आम खाने के तरीके से लेकर मोरिंगा के परांठे के गुणों जैसे रहस्यमय विषयों तक के बारे में खुली चर्चा कर लेंगे लेकिन यह किसी को नहीं बताएँगे कि नोटबंदी और लॉकडाउन कब करेंगे. गैस के दाम कब, कितने, क्यों बढायेंगे. गैस सब्सीडी क्यों बंद कर दी ?

हुआ यह कि आज तोताराम समय पर नहीं आया. चाय हमने अकेले ही पी. मन नहीं माना तो फोन किया. फोन उसके पोते बंटी ने उठाया. बोला- दादाजी तो कुम्भ-स्नान के लिए जा चुके.

अगर किसी लेखक की मौत आती है तो वह पत्रिका निकालता है. बुढ़ापा बिगड़ना होता है तो आदमी के दिमाग में प्रौढावस्था में शादी करने का आइडिया आता है. किसी छोटी पार्टी का अस्तित्व मिटने का शुभारम्भ होना होता है तो वह रामविलास पासवान या नीतीश कुमार की तरह भाजपा से गठबंधन करता है. वैसे ही आजकल अगर किसी श्रद्धालु की मौत आती है तो वह कुम्भ के मेले की ओर भागता है. कई महंतों और अंध श्रद्धालु  गए तो थे पाप धोने और धो बैठे जान से हाथ. लोकतंत्र की रक्षा के लिए अपनी ओर से अंध भक्तों की जान खतरे में डालकर भी रैलियाँ करने को मज़बूर प्रधानमंत्री मोदी जी तक ने अखाड़े के महंत जी के माध्यम से कुम्भ को प्रतीकात्मक रखने की प्रार्थना कर दी. चाहते तो नोटबंदी की तरह चार घंटे के नोटिस पर आदेश दे सकते थे लेकिन बिना बात क्यों हिन्दू वोट बैंक को दुष्प्रभावित किया जाए.जैसे प्रज्ञा ठाकुर के गोडसे को देशभक्त बताकर गाँधी की हत्या को जायज़ ठहराने वाले बयान पर दिल से माफ़ न करने और अनुराग ठाकुर 'सालों को गोली मारने के बयान पर मोदी जी ने  चुप रहना ही उचित समझा.  

हमें तोताराम की चिंता तो हुई लेकिन क्या कर सकते थे. हमारे सीकर से अपने मृत परिजनों की भस्म हरिद्वार ले जाने वालों के लिए नियमित रूप से एक सीधी बस चलती है. सो अब तक पहुँच तो गया होगा लेकिन यदि उमा भारती द्वारा कुम्भ की विधिवत घोषणा को गलत बताने के बावजूद मेला समाप्त हो गया होगा तो बेचारे का जाना व्यर्थ हो जाएगा. 

खैर, हम चाय पीकर अन्दर आकर अखबार देख ही रहे थे कि तोताराम एक छोटी की नई मटकी लिए कमरे में दाखिल हुआ और दूब से हमारे मुंह पर छींटे मारते हुए उलटे-सीधे मन्त्र बड़बड़ाने लगा- कुम्भं समर्पयामि, स्नानं समर्पयामि, कोरोना भगायामि, राष्ट्रं रक्षयामि.

हमने कहा- यह क्या पेट के लिए भगवा पहनने वाले लंठ साधुओं की तरह गलत-सलत संस्कृत बोल रहा है.

बोला-  जहां चाहे विसर्ग, हलंत म, न लगा दो, हो गई संस्कृत. जहां चाहे नुक्ता लगा दो हो गई उर्दू, अरबी, फारसी. बिना बात भारत माता की जय या गोली मारो सालों को बोल दो तो गई देशभक्ति. बिना किसी प्रसंग-सन्दर्भ के 'जैश्रीराम' चिल्ला दो हो गए राम की तरह मर्यादा-पुरुष और सच्चे हिन्दू.

हमने पूछा- लेकिन तू इतनी जल्दी आ कैसे गया ?  लगता है कोरोना कर्फ्यू के चक्कर में निगेटिक प्रमाणपत्र के अभाव में या मास्क न लगाने के नाम पर सौ-दो सौ रुपए झटककर तुझे भगा दिया गया है अन्यथा इस समय तो तुझे हरिद्वार में होना चाहिए था. 

बोल- हरिद्वार गया ही कौन था. 

हमने कहा- बंटी ने तो यही कहा था कि दादाजी कुम्भ स्नान के लिए गए हुए हैं.

बोला- क्या गलत कहा ? मैं तो इस कुम्भ के जल से प्रतीकात्मक 'कुम्भ-स्नान' करने के लिए बाथरूम गया था.

हमने कहा- स्नान तो स्नान होता है. 'प्रतीकात्मक स्नान' क्या होता है ? प्रतीकात्मकता से तो देवताओं और भोली जनता को मूर्ख बनाया जाता है. जैसे कोई चरखा चलाकर गाँधी दिखना चाहे या दाढ़ी बढाकर रबीन्द्रनाथ ठाकुर. 

बोला- मोदी जी ने कल कुम्भ मेले को समाप्त करके प्रतीकात्मक कुम्भ-स्नान के बारे में जो संकेत दिया था, यह वही है. 

हमने कहा- उन्होंने इस प्रतीकात्मक स्नान की कोई विधि तो नहीं बताई.

बोला- तू ब्राह्मण है, भारतीय है फिर भी प्रतीकात्मकता नहीं समझता. प्रतीकात्मकता का मतलब है करना-धरना कुछ नहीं. बस, सस्ते में नाटक करके निबटा देना. जैसे आजकल मृतात्मा के नाम से गौदान का मतलब है- एक  गाय प्रतीकात्मक रूप से दस मिनट के लिए लाते हैं, परिजन गाय की पूंछ पकड़ते हैं, पंडित जी को सौ-पचास रुपए दक्षिणा के दे देते हैं. बस, हो गया गौदान. गौभक्त गौपाष्टमी को अपनी या पड़ोसी की गाय को हलवा खिला देते हैं. हो गई गौसेवा. उसके बाद गाय ३६४ दिन गलियों में धक्के खाए. चुनावी गणित के अनुसार यदि राहुल किसी दलित के घर खाना खाएं, यदि योगी जी सरकारी अधिकारियों द्वारा बिछाए गए कारपेट पर चल कर, कुछ देर के लिए उस पीड़ित के घर पर कुछ देर के लिए लगाये गए सोफों पर बैठकर उससे बात करते हुए फोटो खिंचवा लें, यदि अमित शाह वोट के लिए चुनाव के दिनों में अपने निजी स्टाफ द्वारा साथ लाया गया खाना किसी बाउल गायक के साथ बैठकर खाते हुए फोटो खिंचा लें, मोदी जी कुम्भ मेले के पांच सफाई कर्मचारियों के पैर धोते हुए दिखें, बाग्लादेश में मातुआ समुदाय के मंदिर में नामशूद्रों के गुरु की मूर्ति को पंखा झल दें, किसी मुसलमान को अपने कान के पास तक मुंह ले आने दें,  किसी एम्बुलेंस दादा करीमुल हक को हग करें तो यह सब प्रतीकात्मक हीता है. कोरोना वारियर्स को समय पर वेतन और सेफ्टी किट न देकर उन पर हेलिकोप्टर से 'पुष्प-वर्षा' करना भी तो प्रतीकात्मकता ही है. मतलब फोटो खिंची, काम निकला. खेल ख़त्म, पैसा हजम.

हमने तोताराम के हाथ में कप सौंपते हुए कहा- ले चाय पी.

बोला- लेकिन यह तो खाली है. चाय कहाँ है?

हमने कहा- यह प्रतीकात्मक चाय है.


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