May 14, 2021

३० जून तक तो हो लेंगे


३० जून २०२१ तक हो लेंगे 


जब से कोरोना का विस्फोट हुआ है कोई कुछ बोलने लायक रहा ही नहीं. सबकी दाढ़ी में तिनका है. सबकी कोई न कोई गलती है. फिर चाहे वह सरकार हो, जनता हो. राजस्थानी में कहावत है- क्यूँ तो कुंव्हाड़ भूठी, क्यूँ भाठा चीकणा. मतलब कुछ तो कुल्हाड़ी की धार ज्यादा खराब और कुछ धार लगाने वाला पत्थर चिकना. जनता मंदिर-मस्जिद, हिन्दू-मुसलमान, लव जिहाद, तीन तलाक़ में मज़े लेने वाली और जहां तक सरकारों की बात है तो उन्हें तो जनता को कोई झुनझुना थमाना होता है. और इन भावनात्मक झुनझुनों से बेहतर कोई झुनझुना हो नहीं सकता. जिसकी कभी कोई नाप-जोख नहीं हो सकती कि फायदा हुआ या नहीं. और जहां तक नुकसान की बात है तो वह तो समझदार और निष्पक्ष को ही पता लग सकता है. और निष्पक्ष को तो सरलता से देशद्रोही सिद्ध किया जा सकता है.

जिसका समर्थन किया उसकी गलतियों का ज़िक्र करके लगता है कहीं हम खुद को ही बेवकूफ तो सिद्ध नहीं कर रहे हैं. ऐसे में तोताराम भी कुछ बोलने लायक नहीं रहा. वैसे आजकल बड़ी दार्शनिक बातें करने लग गया है. लगता है, कहीं सिद्ध फकीर की तरह झोली-झंडा उठाकर केदारनाथ की किसी गुफा में न जा बैठे. देश-दुनिया किसी तोताराम जैसे फकीरों या किसी अवतारी या जिल्लेशुभानी के बल पर नहीं चलते. वे तो चलते हैं जनता की अपनी बेवकूफियों से.

आज जैसे ही आकर बैठा, नाटक के स्वगत कथन की तरह फुसफुसाया- ३० जून २०२१ तक हो लेंगे.

हमने सुना तो झटका-सा लगा, पूछा- कौन क्या हो लेंगे ? क्या हम-तुम कोरोना संक्रमित हो लेंगे ? क्या देश-दुनिया के कमजोर रोग-प्रतिरोधक क्षमता वाले कोरोना पीड़ित होकर ऑक्सीजन, रेमडेसीवियर, अस्पताल में बेड, वेंटीलेटर के अभाव में निबट लेंगे ? 

बोला- विपक्ष की तरह जनता का मनोबल तोड़ने वाली नकारात्मक बातें मत कर. क्यों निबट लेंगे ? हमारे पास अंतर्राष्ट्रीय स्तर का चमत्कारी नेतृत्त्व है जिसकी एक गुहार पर सारी दुनिया सहायता के लिए दौड़ पड़ी. और उत्तर प्रदेश में कोई कुछ भी कहे लेकिन न तो ऑक्सीजन की कमी है और न ही बेड और वेंटीलेटर की. हो तो कोई एक ट्वीट और अस्पतालों के बाहर 'ऑक्सीजन या खाली बिस्तर नहीं है की सूचना' दिखा दे.   मोदी जी की योजना के अनुसार निर्मला सीतारामन ने १२ नवम्बर २०२० को 'आत्मनिर्भर भारत' की घोषणा कर दी थी जिसे  १ अक्तूबर २०२० से लागू माना गया. मतलब ४२ दिन तो बिना घोषणा के ही भारत को गुपचुप आत्मनिर्भर बनाते रहे. यह योजना ३० जून २०२१ तक चलेगी मतलब तब तक भारत आत्मनिर्भर हो लेगा. तब तक सब सभी क्षेत्रों में आत्मनिर्भर हो लेंगे. 

हमने पूछा- तो क्या ३० जून २०२१ तक देश को दूसरे देशों से वेक्सीन, वेंटिलेटर, ऑक्सीजन, मास्क, पीपीई किट आदि नहीं मंगाने पड़ेंगे ? क्या सभी कोरोना पीड़ितों को अस्पतालों में बिस्तर मिल जाएंगे ?

बोला- तब तक लोग सरकारों से शिकायत करना बंद कर देंगे. अब भी देख नहीं रहे, लोग खुद ही ऑक्सीजन का  आधा खाली सिलेंडर चौगुने पैसों में खरीदकर, कंधे पर रखकर अस्पतालों में पहुंचा रहे हैं या नहीं ? कोरोना से मृत रिश्तेदार को साइकल पर लादकर खुद ही दाह संस्कार करने लगे हैं या नहीं. खुद ही अस्पताल ढूँढ़ रहे हैं या नहीं ? खुद ही बीस-बीस हजार में रेम्डेसीविर के नाम पर ग्लूकोज खरीद रहे हैं या नहीं ? इससे बड़ी आत्मनिर्भरता क्या होगी ? तब तक लोग खुद ही घर पर गौमूत्र गोबर से इलाज करना, अर्थी बनाना, अंतिम संस्कार करना  सभी मामलों में आत्मनिर्भर हो जाएंगे. 

हमने कहा- वैसे ही जैसे मानवेतर प्राणियों में सभी आत्मनिर्भर हैं.

बोला- इन्हें मानवेतर नहीं अलौकिक कहो. आज ही राम जन्मभूमि ट्रस्ट के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष आत्मानंद सरस्वती को रोका गया. वे कोरोना प्रोटोकोल के तहत मास्क नहीं लगाए हुए थे. कारण पूछा गया तो वही वैदिक ज्ञान-विज्ञान वाली तर्क. कहा- मैं तो मोदी जी के आदेशों का पालन कर रहा हूँ. उन्होंने कहा है- अपनी सुरक्षा खुद करो मतलब आत्मनिर्भर बनो. मैं अपनी सुरक्षा खुद आकर रहा हूँ. 

हमने कहा- वैसे ऐसी अलौकिक और वैदिक सुरक्षा से कुम्भ मेले में जाकर दो विशिष्ट संत-महंत परलोक सिधार चुके हैं. लेकिन हमें इनकी नहीं बल्कि इनसे अपनी सुरक्षा करनी है. 


और क्या ? रहीम जी ने भी तो यही कहा है-

रहिमन बहु भेषज करत व्याधि न छाँडत साथ |

खग-मृग बसत अरोग बन हरि अनाथ के नाथ ||


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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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