Nov 23, 2021

जो चाहसि उजियार....

जो चाहसि उजियार....    


खाना खाकर थोड़ा लेटे ही थे कि तोताराम ने हांक लगाई- अरे मास्टर, आज भी कम्बल में घुसा हुआ है. 

हमने कम्बल से मुंह बाहर निकाला तो बोला- आज तो कम से कम दाढ़ी बना लेता. अब तो मोदी जी ने भी ट्रिम करा ली. 

हमने कहा- ठीक है कि संसद में हमारा बहुमत नहीं है लेकिन क्या लोकतंत्र में इतनी भी स्वतंत्रता नहीं कि हम अपनी दाढ़ी को जिस आकार-फैशन की रखना चाहें, रख सकें.

बोला- आज तो रूप चौदस है. दाढ़ी बना, ढंग के कपड़े पहन और बाज़ार चलकर अपने रूप की छटा बिखेर.

हमने कहा- यस्य पार्श्वे टका नास्ति हाटके टकटकायते. जिसके पास में टका (रुपया) नहीं होता, वह बाज़ार में व्यर्थ में ताकता फिरता है. हम वहाँ जाकर अपनी तपस्या भंग नहीं करना चाहते. 

बोला- मुझे भी कौन बड़ी खरीददारी करनी है. बस,पच्चीस छोटे और दो बड़े दीये लाने हैं.

हमने कहा-हमारे पास तो पिछली दिवाली का एक दीया रखा है उसी को जला लेंगे.

बोला- कंजूस, अधार्मिक, राष्ट्रद्रोही, नास्तिक ! आज के दिन भी ! अरे, जिन राम को गाँधी नेहरू ने अयोध्या में घुसने नहीं दिया उसे योगी जी हेलिकोप्टर में बैठाकर सरयू तट लाये हैं. नाथपंथ तो निर्गुण भक्ति का ही एक रूप है फिर भी योगी जी ने अपने पंथ की कट्टरता को त्याग क,र जनता की भावनाओं का ख़याल रखते हुए राम के स्वागत में ९ लाख ५१ हजार दीयों का विश्व रिकार्ड बनाने का संकल्प किया है. और तू सनातनी, गृहस्थ, ब्राह्मण होकर भी राम के स्वागत से इतना उदासीन ! 

हमने कहा- तेल दो सौ के पार और घी पांच से ऊपर. सर्दी में मालिश भी लगता है सूखी ही करनी पड़ेगी. जब फोटो खिंच जायेंगे, उत्सव समाप्त हो जाएगा, रिकार्ड वाले संतुष्ट होकर चले जायेंगे तब देखना हजारों लोग इन दीयों के बचे हुए तेल के लिए लड़ते नज़र आयेंगे. ऐसी स्थिति में राम होते तो वे दीयों की बजाय अपनी प्रजा की आँतों के लिए तेल का इंतज़ाम करते. 

बोला- फिर भी ..

हमने कहा- फिर भी क्या ?  कौन योगी जी अपनी तनख्वाह या मठ के कोष में से खर्च कर रहे हैं. और खर्च करेंगे तो वोट प्राप्त करके सर्व सिद्धि कारक सत्ता प्राप्त करेंगे. सत्ता प्राप्त करने के बाद उसे कायम रखने के लिए शक्ति का प्रदर्शन ज़रूरी होता है. अब वे योगी नहीं, राजा हैं. वैसे भी मठाधीश एक प्रकार का राजा ही होता है. उसके पास अस्त्र-शस्त्रधारी चेले-भक्त होते हैं.हाथी-घोड़े-ऊंट, नौकर-चाकर होते हैं.हम तो सामान्य आदमी हैं तुलसी बाबा के अनुयायी.

बोला- भगवान राम के स्वागत में दीये जलाने का चार सौ साल का बैकलॉग है. उसे पूरा करने के लिए इतने दीये जलाने ज़रूरी है. और क्या तुलसी बाबा होते तो वे दीये नहीं जलाते ?

हमने कहा- जलाते क्यों नहीं. लेकिन वे भी हमारी तरह एक दीये से ही काम चला लेते. उन्होंने तो साफ़ कहा है-

राम नाम मनि दीप धरु जीह देहरी द्वार  

तुलसी भीतर बाहरहि जो चाहसि उजियार 

अर्थात यदि भीतर-बाहर ज्ञान और आचरण का उजाला चाहते हो तो जीभ रूपी द्वार की देहरी पर राम नाम की मणि का दीया धरो. एक ही दीये से अन्दर-बाहर आलोकित हो जाएगा. और यह दीया तेल का नहीं बल्कि एक चिंतामणि का प्रकाश है जो न तो किसी मोह-माया की आंधी से बुझेगा और न ही बार-बार तेल भरने का झंझट. 

याद रख, ज्यादा रोशनी अहंकार का प्रदर्शन है, जिसमें कुछ ढंग से नहीं दीखता. चकाचौंध में जो अपनी सामान्य दृष्टि  है वह भी ढंग से काम नहीं कर पाती. 

रामराज्य तेल के दीयों से नहीं, छोटे-बड़े सबके कल्याण से आएगा, नीरज भी तो कहते हैं- 

दिए से मिटेगा न मन का अँधेरा

धरा को उठाओ गगन को झुकाओ   





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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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