Nov 10, 2021

तू क्या अपने को प्रधानमंत्री समझता है ?


तू क्या अपने को प्रधानमंत्री समझता है ?


पता नहीं,कोरोना का प्रकोप कुछ कम हुआ है या इतने दिन डरते-डरते आदमी का डर निकल गया है. जैसे कि नोटबंदी और जीएसटी से किसी ज़माने में घबराया हुआ आम आदमी अब रोज घरेलू गैस और पेट्रोल-डीज़ल के दाम बढ़ने से मरणान्तक निर्भयता की साहसिक मुद्रा में पहुँच गया है और बड़े से बड़े नेता पर भी हँस सक पा रहा है. इसी प्रकार अब हम भी सामान्य हो चले हैं. 

सवेरे बरामदे में दरी पर बैठकर अपनी पुस्तक की प्रूफ रीडिंग में व्यस्त थे कि किसी ने आवाज़ दी- शास्त्री जी नमस्कार. 

हमें पिताजी ने अति उत्साह में पाँचवीं क्लास के पहले छह महिने इतनी संस्कृत पढ़ाई कि हम अर्द्ध वार्षिक परीक्षा में 'महाजनी बहीखाता' में फेल हो गए. सो पिताजी ने हमें सुसंस्कृत बनाने का अभियान स्थगित कर दिया. उसी के बल पर हम आठवीं तक संस्कृत में पास होते गए. ऐसे में हम शास्त्री जी संबोधन से कैसे संगति बैठा सकते थे ? हम अपने काम में व्यस्त रहे. फिर वही 'शास्त्री जी' संबोधन. हमने बिना सिर उठाये ही कहा- भाई , हम शास्त्री जी नहीं  हैं, हम तो मास्टर जी हैं.

तोताराम ने हमें झकझोरा, बोला- मास्टर कहूँ या शास्त्री जी तेरी भव्यता और वैभव में कोई अंतर आने वाला नहीं है. प्रधानमंत्रियों में जो रुतबा शास्त्री जी का था वही मास्टरों में तेरा है.लेकिन याद रख, बरामदे में दरी पर बैठकर काम की व्यस्तता दिखाने मात्र से ही कोई प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री नहीं बन जाता.

फिर तोताराम ने अपने स्मार्ट फोन में एक फोटो दिखाते हुए कहा- यदि नहीं देखा हो तो देख ले  प्लेन में अपनी पत्नी के साथ इकोनोमी क्लास की सीट पर ठुंस कर बैठे फाइल देखते हुए शास्त्री जी का फोटो. लगता ही नहीं कि कोई प्रधानमंत्री बैठा है. सादगी की भी लिमिट होनी चाहिए.  कहे तो और भी दिखाऊँ. बहुत से प्रधानमंत्री हुए हैं जो प्लेन में काम निबटा लेते थे  लेकिन लगता है, ऐसे ही था कि बस, ठीक है.प्लेन में न तो रैली कर सकते हैं और न ही मोर को दाना डाल सकते हैं. मन की बात का तो सवाल ही नहीं.ऐसे में कुछ काम ही कर लिया जाय लेकिन जो रुतबा मोदी जी का वह कुछ और ही है. 

हमने कहा- तोताराम,  पता नहीं, तू कहाँ-कहाँ पहुँच जाता है. हमने तो ऐसे सोचा ही नहीं था. हालांकि हम भी आडवानी जी की तरह निर्देशक मंडल में हैं. कोई उम्मीद शेष नहीं है. फिर भी ले ही ले एक फोटो. क्या पता, कब काम आ जाए. कब, कौन हमें भी नेहरू-गाँधी जी तुलना में खड़ा करने के लिए इस फोटो का इस्तेमाल कर ले जैसे कि राजनाथ जी ने सावरकर जी के सौ साल पुराने माफीनामे को, काल-दोष का ध्यान न रखते हुए, खींच-खांच कर  गाँधी के मत्थे डाल ही दिया. 

बोला- मतलब तू भी शास्त्री जी की सादगी के बहाने से ही सही, कहीं न कहीं अपने को प्रधानमंत्री समझता है क्या ? लेकिन ध्यान रहे, तू इस लुंगी बनियान में बेशर्मी से जयपुर रोड़ तक चला जाता है जब कि बड़े आदमी सोते भी टाई बांधकर हैं. पता नहीं कब किसी देश के राष्ट्रपति से मिलना हो जाए. बरसात न होने पर भी प्लेन से छाता लेकर उतरते हैं. क्या पता, दस सीढियां उतरते-उतरते बीच में ही बरसात हो जाए तो.



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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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