Nov 12, 2021

कामचोरी और मक्कारी के ६० साल


कामचोरी और मक्कारी  के ६० साल 


हमारे यहाँ शेखावाटी में इस साल ठण्ड दस दिन पहले शुरू हो गई. कल दिन में ठीक-ठाक हवा भी चली. बदलते मौसम में यदि आदमी सावधान न रहे तो जुकाम होने की अधिक संभावना रहती. कहावत है- 

पावक बैरी रोग रिण सपनेहुँ राखिय नाहिं.

ये थोड़े ही बढ़हिं पुनि महा जातन से जाहिं.

सो आती सर्दी में ठण्ड खा जाने की सभी संभावनाओं को निरस्त करने के लिए हम आज बरामदे में नहीं बैठे.

पहले तो तोताराम ने बरामदे के पास से ही आवाज़ दी. कोई उत्तर न मिलने पर अन्दर ही आ गया. बोला- लोग तो आज से सुबह-सुबह कार्तिक स्नान के लिए नदी-तालाबों पर जाने लगे हैं और तू इस पुण्य पुरुषोत्तम मास में कमरे में घुसा पड़ा है. तेरा कैसे उद्धार होगा.

हमने कहा- अगर जुकाम, निमोनिया और फिर कहीं डेंगू हो गया तो हमारा किसी प्रधान मंत्री आयुष्य योजना में इलाज़ होने वाला नहीं है. डेंगू टेस्ट का भी कोई ठिकाना नहीं. कौन, किस टेस्ट का कितना मांग ले. इसलिए यह स्वघोषित लॉक डाउन ही ठीक है. अभी-अभी प्रधानमंत्री जी ने १०० लाख करोड़ के गति-शक्ति वाले प्रोजेक्ट का हिसाब किताब दिया है, उसी को समझ रहे थे.

बोला- कोई बाध्यता तो नहीं थी हिसाब देने ही.  फिर भी मोदी जी हैं कि' मन की बात' की तरह किसी से कुछ छुपाते नहीं.सबको सब कुछ बता देते हैं. एकदम ट्रांसपेरेंट. वैसे तुझसे अपनी पेंशन तो ढंग से गिनी नहीं जाती और बात कर रहा है एक सौ लाख करोड़ की.अगर उनका यह गति-शक्ति प्रोजेक्ट कुछ समझ में आये तो मुझे भी बताना. 

हमने कहा- हमें तो इस उम्र में 'गति' से यही समझ में आता है कि बिना ज्यादा दुर्गति के यथासमय सद्गति हो जाए. यदि प्रेमचंद की कहानी 'सद्गति' जैसा कुछ हो गया तो परलोक का तो पता नहीं लेकिन इस लोक में ज़रूर तमाशा हो जाएगा.वैसे मोदी जी हर काम में 'तीव्र गति' के शौकीन हैं. समय बर्बाद नहीं करना चाहते. हनुमान जी की तरह 'खग को खगराज को वेग लजायो' में विश्वास करते हैं. जिससे देश, दुनिया और आकाश-पाताल सबको एक साथ संभाल सकें.लेकिन क्या किया जाए, 'प्रथम ग्रासे की मक्षिका पातः' हो गया.  देश में कोयले की कमी से बिजली का संकट आ गया. इसीलिए हम सुबह-सुबह लैपटॉप पर नेट का काम निबटा रहे थे. उसके बाद क्या पता कब. कितनी देर की बिजली कटौती हो जाए. खराब हो तो भी बिजली के ८१०/-रुपये के मिनिमम बिल की तरह भले ही कनेक्टिविटी न मिले पर नेट का भी तयशुदा बिल तो आएगा ही.  

बोला- और क्या समाचार हैं ?

हमने कहा- और तो बस, मोदी के सेवा और समर्पण के बीस वर्ष की चर्चा है, १३ वर्ष गुजरात की सेवा और विगत सात वर्षों से देश की सेवा. अब कामना कर कि आगे भी आजीवन समस्त विश्व की सेवा करते रहें. 

बोला- हमने भी तो साठ वर्ष सेवा की है. चालीस साल बच्चों को पढ़ाकर राष्ट्रनिर्माण के रूप में और अब विगत २० वर्षों से  बरामदे में बैठकर विश्वा कल्याण का चिंतन करते हुए. भगवान ने चाहा तो दस-बीस साल और भी समर्पण के साथ सेवा करते रहेंगे. तो क्यों न आज हम भी सेवा और समर्पण के साठ वर्ष सेलेब्रेट कर लें. कुछ मीठा हो जाए. 

हमने कहा- यह सेवा भी कोई सेवा है. सेवा करने वाले जीवन के सभी सुख छोड़कर दिन में १८-१८ घंटे काम करते हैं. तूने क्या सेवा की है ? ४० साल की मास्टरी को कामचोरी माना जाएगा क्योंकि आधा समय चाय पीने में और आधा समय पर-निंदा में बिताया. यदि तुम ही सेवा करते होते तो देश की शिक्षा का यह हाल क्यों होता ? लोग अभी तक यही तय नहीं कर पाए हैं कि देश भक्त गोडसे था या महात्मा गाँधी. दोनों तो एक साथ महान हो नहीं सकते राम और रावण, कंस और कृष्ण, महिषासुर और दुर्गा. 

रही बात रिटायर्मेंट से बाद सरकार पर पेंशन का बोझ डालते हुए बरामदे में बैठकर चाय के साथ परनिंदा करने की तो यह शुद्ध हरामखोरी है. चुपचाप जितनी मिल रही है पेंशन लेता रह. कहीं नोटबंदी की तरह मोदी जी ने पूरी 'शक्ति' से तीव्र 'गति' से पेंशन ख़त्म कर दी तो मोदी जी का फोटो छपे 'अन्नदान महोत्सव' के थैले के लिए लाइन में लगा दिखाई देगा. 

बोला- 'अन्नदान महोत्सव' में अस्सी करोड़ लोगों को पांच-पांच किलो अन्न बांटा जा रहा है मतलब कि देश में इतने लोग भिखमंगे बना दिए गए हैं. तभी तो देश 'हंगर इंडेक्स' में ११६ में से १०१ वें नंबर पर है, पकिस्तान, नेपाल और बांग्लादेश से भी नीचे.

तभी तो कह रहा हूँ- समय रहते मना ही लें अपने 'सेवा और समर्पण के साठ साल'. जब लोग गाँधी और नेहरू के काल को ही देश का अन्धकार युग सिद्ध करने में लगे हुए हैं तो हमारी क्या औकात है. कल किसे पता क्या हो.

ज्यादा भींच मत. तू भी क्या याद करेगा ? ऐश कर, मेरी तरफ से सेलेब्रेट कर.

और तोताराम ने हमारी तरफ सौ का एक नोट उछाल दिया. 



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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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