Nov 5, 2021

अच्छा हुआ जो गाँधी से नहीं मिले

अच्छा हुआ जो गाँधी से नहीं मिले

तोताराम ने बरामदे में सही तरीके से स्थापित होने से पहले ही अपनी प्रतिक्रिया हमारी तरफ उछाल दी, बोला-  अच्छा हुआ जो हम गाँधी से नहीं मिले नहीं. यदि मिले होते तो हमें भी माफ़ी मांगने की सलाह देकर हमारा कैरियर खराब करवा दिया होता. वास्तव में एक सच्चे और आधुनिक वैष्णव जन ने गाँधी का एक 'चतुर बनिए' के रूप में जो मूल्यांकन किया वह सही है. खुद कभी माफ़ी नहीं मांगी लेकिन 'वीर' सावरकर को अंग्रेजों से माफ़ी माँगने की सलाह देकर 'कायर सावरकर' बना दिया और उनका 'भारत रत्न' और 'राष्ट्रपिता' का दर्ज़ा खतरे में डाल दिया. 

हमने कहा- वैसे हमारे ऋषि मुनि तो कहते हैं कि क्षमा मांगना और क्षमा करना दोनों ही वीरों के भूषण हैं. छोटे दिल वाला और दुष्ट न तो कभी सच्चे दिल से क्षमा मांगता है और न ही किसी को क्षमा करता है.  फिर भी यदि गाँधी जी ने क्षमा माँगने के लिए कहा है तो इसके लिए गाँधी स्वयं दोषी हैं. इससे सावरकर जी की वीरता में तो कोई कमी नहीं आती. आजकल तो आत्महत्या के लिए प्रेरित करना भी दंडनीय अपराध माना जाता है. क्या कभी बंदूक या चाकू को जेल की सज़ा या जुर्माना होता है ? इसलिए हम तो सावरकर जी को निर्दोष मानते हैं.

बोला- सावरकर जी को ब्रिटेन से गिरफ्तार करके भारत लाया जा रहा था. हालांकि उन्होंने फ़्रांस के तट के निकट भागने की कोशिश भी की लेकिन पकड़े गए. आरोप था कि उन्होंने एक अंग्रेज अधिकारी की हत्या करने के लिए ब्रिटेन में अपने नाम से खरीदी अपनी लाइसेंसी बंदूक पूना निवासी अपने भाई को उपलब्ध करवाई थी. इसीके फलस्वरूप उन्हें काले पानी की सज़ा भी हुई. इससे भी तुम्हारी बात की पुष्टि होती है.लेकिन यह भी सच है कि गोडसे को गाँधी की हत्या के लिए प्रेरित करने वालों को दण्डित नहीं किया गया.  

हमने कहा- हमारे हिसाब से तो गाँधी जी ने सावरकर जी को हिंसा में लिप्त होने के लिए क्षमा माँगने के लिए कहा होगा. गाँधी जी ने सोचा होगा कि ऐसा करके सावरकर जैसा उत्साही युवक अहिंसक सत्याग्रह में शामिल हो जाएगा. लेकिन वे तो अंग्रेजों के लिए काम करने लगे.

बोला- वैसे मास्टर, एक तरह से देखा जाए तो अच्छा ही हुआ. हमें चालीस साल की नौकरी के बाद सरकार रुला-रुलाकर तीस हजार रुपया महिना पेंशन दे रही है. ऊपर से यह डर लगा रहता है कि पता नहीं, कब मोदी जी को उचंग उठे और नोटबंदी की तरह हमारी पेंशन बंद कर दें. जब कि सावरकार जी को तीन चार माफीनामों के बदले ही साठ रुपये महिने की पेंशन देती थी जो आज के हिसाब से डेढ़ लाख रुपया महिना बैठती है.  

हमने कहा- अब वो ज़माना नहीं रहा. आजकल स्पष्ट बहुमत की सरकार में बड़े से बड़ा गुनाह करके भी माफ़ी न मांगना दृढ़ता माना जाता है. 



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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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