Jan 23, 2023

तोताराम की तपस्या


तोताराम की तपस्या 


घर के ठीक सामने एक बिजली का खम्भा है . खम्भा तो तब भी था जब यहाँ खेत था लेकिन तब इस पर कोई लाइट नहीं जलती थी . अब जब विकास हुआ तो बल्ब लगा और फिर एल ई डी भी लेकिन नीयत और नियति अब भी वही है . महंगाई भत्ते के एरियर और आयकर में छूट की सीमा की तरह विशेषज्ञ अनुमान लगते रहते हैं लेकिन स्थिति कुल मिलाकर 'अच्छे दिन' की तरह ही बनी हुई है .

दस दिन से हमारे सामने वाले इस खम्भे नंबर  ४८/३७० पर की लाइट नहीं जल रही है . सोचा शिकायत करें तभी एक दिन हमें लगा कि लाइट ने झपका-सा मारा . आस बंधी. सोचा क्या पता अच्छे दिनों की तरह यह एक असंभव संभावना सच ही हो जाय . लेकिन नहीं . चुनावी वादों की तरह फुस्स. आज तो पक्का शिकायत करेंगे ही . 

लाइट न होने के कारण सुबह-सुबह बरामदे में सावधानी से जाते हैं . आज गए तो लगा जैसे कोई धुंधली-सी आकृति सफ़ेद कमीज पहने हुए बैठी थी . हम तो बनियान, इनर, कमीज, स्वेटर और ऊपर टोपा, मफलर और खादी भण्डार वाला शुद्ध ऊनी गाउन . और यह एक कमीज में . लगता है या तो इतना गरीब है कि पूरे कपड़े नहीं या फिर कोई हठयोगी या आत्महत्या का सस्ता नुस्खा आजमा रहा है .

हमने कहा- क्या बात है भाई, यह ठीक है कि इस बार की भयंकर सर्दी को देखते हुए, जनहित के लिए मोदी जी बसंत पंचमी २६ जनवरी को ही ले आये हैं . मोदी है तो मुमकिन है . फिर भी बसंत पंचमी होने मात्र से तो जीवन में बसंत नहीं आ जाता . ठण्ड खा जाओगे तो मुश्किल हो जायेगी . 

बोला- यह तपस्वियों का देश है .

-अरे, यह तो तोताराम है . 

हमने कहा- है तपस्वियों का देश लेकिन तेरे पास कौनसी ४० हजार की कमीज है जो ठण्ड नहीं लगेगी . 

बोला- जब १५ लाख का सोने के तारों से अपना नाम कढ़ा सूट पहनकर कोई व्यक्ति फकीरी का दावा कर सकता है तो मैं भी इस एक सौ रुपए की कमीज में तपस्या क्यों नहीं कर सकता ? बुद्ध भी तो राजपाट त्याग कर और महावीर सभी वस्त्र त्यागकर महान बने थे .  

हमने कहा- किसे पता है हजारों साल पुरानी बात है . आजकल पहले वाले तपस्वी कहाँ हैं ? अब तो लोग गंगा में डुबकी भी कमर में रस्सा बांधकर लगाते है , न अपने कर्मो पर विश्वास और न ही गंगा के पतित पावनत्व पर भरोसा. गुफा में समाधि लगाने जाते हैं तो भी फोटोग्राफर और कमांडो को साथ ले जाते हैं . अब कहाँ हैं एक टांग पर दस-दस हजार वर्ष तक खड़े होकर तपस्या करने वाले ? 

छोड़ इस तपस्या को . पूजा का सस्ता और सुरक्षित रास्ता अपना . रात को जयपुरी रजाइयां ओढ़, दिन में शाहतूस की शाल, गरम पानी से स्नान कर, तेल-फुलेल लगाकर, तिलक छापा करके बैठ गद्दी पर, भक्तों से पाँव छुआ और माल पेल. और मौका मिल जाए और पट जाए तो भक्तिनों को स्वर्ग की सैर करा . नेताओं के साथ मिलकर वोटों की दलाली कर . तपस्या में क्या रखा है ? बुद्ध, सुकरात, ईसा, गाँधी, लिंकन ने क्या पाया तपस्या से ? 

बोला- लेकिन यह दुनिया तपस्या से ही आगे बढ़ती है . तपस्या से ही इसके विकारों को दूर किया जा सकता है जैसे उपवास से शरीर की अशुद्धियों का दहन . 

हमने कहा- ठीक है, कर तपस्या लेकिन एक कमीज में ठण्ड से मरने से क्या फायदा ? कोई कम्बल ही डाल ले . ला दें ? 

बोला- जब राहुल एक टी शर्ट में देश को दक्षिण से उत्तर तक नाप सकता है तो क्या मैं शर्ट में घर से तेरे बरामदे तक नहीं आ सकता ? कम्बल देखकर स्वर्ग में ऐश करने वाले देवता और चढ़ावा खाने देवतुल्य पुजारी भड़क जायेंगे . वे यही मौका देखते रहते हैं. ये ही तो किसी की तपस्या भंग करने के लिए अप्सराएं भेजते हैं . अप्सराएं भी बेचारी क्या करें, नौकरी जो ठहरी . बदनाम खुद होती है और काम देवताओं का होता है . राहुल ने कश्मीर में बूंदाबांदी से बचने के लिए थोड़ी देर के लिए एक रेनकोट जैसा क्या डाल लिया; लगे लोग चिल्लाने - 'हो गई तपस्या भंग . पहन लिया जैकेट' . 

कुछ पहनो तो कहते हैं - ऐश , न पहनो तो नाटक, हो सकता है नीचे कुछ पहन रखा हो . मैं तेरे चक्कर में अपनी तपस्या भंग नहीं करूंगा . 

हमने कहा- राहुल तो यह तपस्या इसलिए कर रहे हैं कि स्वतंत्रता संग्राम के दौरान की गई तपस्या का लाभ कांग्रेस को मिला लेकिन धीरे-धीरे सत्ता सुख भोगने वालों की भीड़ ने उसके तपस्या के सारे पुण्य खर्च कर दिए . अब जब बैंक बेलेंस ख़त्म हो गया तो यह सब आवश्यक ही था .

बोला- इसीलिए तो कहता हूँ तपस्या बहुत ज़रूरी है किसी भी दल, देश, समाज के लिए . सिद्धि तपस्या के बिना नहीं मिलती. हाँ, बुद्ध, महाबीर, नानक,गाँधी की तपस्या दुनिया के हित के लिए थी तो भस्मासुर, रावण आदि की तपस्या अपनी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए थी . आज भी जिन्होंने तपस्या की है उसका फल उन्हें मिल रहा है और अपनी सिद्धियों के दुरुपयोग के कारण उनके भी पुण्य क्षीण हो जायेंगे तो वे ज़मीन पर आ जायेंगे . फिर उनकी हालत भी उस तपस्वी जैसी हो जायेगी जिसकी धोती आसमान में सूखती थी . और जिसने एक बगुले को श्राप देकर  अपनी तपस्या गँवा दी . 

हमने तोताराम को अन्दर लेते हुए कहा- तू न तो भस्मासुर की तरह दुष्ट तपस्वी है और न ही किसी महापुरुष के सिद्धांतों की हत्या करके उसका मंदिर बनाकर धंधा करने वाला धूर्त पुजारी .

यह भी सच है कि इस दुनिया में किसी और की तपस्या पर कर्मकांड का धंधा करने वाले आपस में धर्मों के नाम पर झगड़ते हैं. हमने तो कभी दो दार्शनिकों को एक दूसरे का दुश्मन नहीं पाया . वे सब तो एक दूसरे का आदर करते हैं क्योंकि दर्शन धन्धा नहीं है . इसीलिए वे न तो चेले मूंडते हैं और न ही जादू के तमाशे दिखाते हैं और न ही प्रश्नों से घबराते हैं . दर्शन तो विवेक और ज्ञान का विकास है .जब कि तथाकथित आस्था के अड्डे अंधविश्वास के स्रोत और  धोखे की दुकानें हैं . 

खैर, आज तेरी इस तपस्या की सिद्धि स्वरूप चाय के साथ गाजर का हलवा भी है . चल अन्दर . 



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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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