Jan 31, 2023

'मुमकिनामि' युगे-युगे


 'मुमकिनामि' युगे-युगे 


रात को बारिश हुई. फसलों को कितना लाभ हुआ, 'सोना बरसा' या कीचड़- यह तो अखबार देखकर ही तय होगा . 

अखबारों को न तो समाचारों  से मतलब है और न ही उनकी प्रामाणिकता से और न ही उनकी पाठकों के लिए उपादेयता से . वे तो  एक दूसरे की देखा-देखी अखबार को चटपटा, रोमांचक, साहित्यिक, स्मार्ट बनाने पर तुले रहते हैं. 

हमारे एक मित्र हैं, एक छोटा, लोकल लेवल का खबर निकालते हैं . एक दिन हमने कहा- इसमें कुछ ठीकठाक सामग्री दिया करो. बोले-- मास्टर जी, हम तो घर घर के लोग ही मिलकर इधर-उधर से कुछ भी जुटाकर डाल देते . किसी तरह हमारी औकात के अनुसार विज्ञापन मिल जाते हैं. क्यों बिना बात की माथा कूट करना .     

जैसे मोदी जी ने विकलांगों को दिव्यांग का दर्ज़ा देकर उनकी विकलता कम कर दी है वैसे ही आवारा सांडों को नंदी और गली के कुत्तों ओ श्वान का तत्सम नाम देकर अखबारों ने भी अपना धर्म निभाया है . किसी भी देवी-देवता के विशेष रंग की पोशाक पहनने और हर ग्रह-नक्षत्र की स्थिति को पुण्य और किसी न किसी खरीददारी का योग बताकर अध्यात्म और समाज के चरित्र निर्माण का काम निबटा दिया जाता है . 

यही हाल विज्ञापन का है . लगता है पहला पेज तो विज्ञापनों के लिए ही सुरक्षित हो गया है . जूते से लेकर, जुआ खेलने के 'ऐप' तक कुछ भी . पैसा मिले तो घोषित अपराधी और बलात्कारी को राष्ट्र संत और जन-मन-हृदय-सम्राट बताते हुए विज्ञापन छाप सकते हैं . कभी पेज बीच में से कटा हुआ, तो कभी किसी विज्ञापन की  अलग से बाहर निकली हुई एक पट्टी जैसे किसी का नाड़ा पेंट की ज़िप से बाहर लटका हुआ हो. कभी समाचारों के बीच में सांप की तरह लहराता कोई विज्ञापन घुसेड़ देंगे . 

उनके होने की सार्थकता अधिक से अधिक विज्ञापन मिलने तक ही है. 

इन अख़बारों से कोई बचे भी तो कैसे ?  सभी अखबार एक से बढ़कर एक कूड़ा. ढेरी के सभी बैंगन काने. लगा दो सारी उम्र छांटने में . वही ढाक के तीन पात जैसे हर महिने किसी ढंग के काम की सूचना की उम्मीद के बीच ज़बरदस्ती चली आती वही 'मन की बात' . 

ठीक एक हफ्ते पहले हमने तोताराम को उसके हर बात में 'मोदी है तो मुमकिन है' के मन्त्र का ऐसा ज़वाब दिया कि अभी तक वह नार्मल नहीं हुआ है. फंस गया . 'मोदी और मुमकिन' का अनुप्रास मिलाये तो 'हिंदुत्व' को 'भाषा ज़िहाद' का खतरा और यदि 'संभव' के साथ 'शाह' की अनुप्रास भिड़ाये तो एकाधिकार को खतरा . इधर पड़े तो कुआं, उधर पड़े तो खाई. 

रात को हलकी मावठ के कारण हुए कीचड़ और कुछ ठंडी हवा के कारण हमें तोताराम के जल्दी आने की उम्मीद नहीं थी . जैसे ही चाय की तरफ हाथ बढ़ाया तो एक तीखा स्वर सुनाई दिया- मिल गया . 

स्वर में गज़ब का आत्मविश्वस था . वैसा ही जैसा एक बार अच्छी तरह बालि से पिटकर, फिर राम की दी हुई माला पहनकर और राम से अभयदान पाकर उत्साह से भरे सुग्रीव के स्वर में था- बाहर निकल बालि ! जैसा ललकारता हुआ गर्जन था .   

हमने चौंक कर पूछा- क्या मिल गया ? राहुल को एक हाफ टी शर्ट में भी ठण्ड न लगने का रहस्य ?

बोला- नहीं, ऐसी छोटी-मोटी बात नहीं है . एक बड़ा धांसू तथ्य, एक ईश्वरीय रहस्य . 'संभव' और 'मुमकिन' के बीच की दुविधा पर तेरे द्वरा फैलाए गए व्यर्थ के विमर्श का उचित उत्तर, माकूल ज़वाब .

हमने पूछा- क्या ? 

बोला-  सभी किन्तु-परन्तु, मुमकिन-संभव के बीच मोदी जी के ईश्वरतत्व की स्थापना का रहस्य. 'मुमकिनामि युगे-युगे' . 

हमने कहा- तोताराम आज तो तूने देश की गंगा-जमनी तकज़ीब के मेल को एक कालजयी, हिन्दुस्तानी नाम दे दिया और मेल भी ऐसा मेलदार कि कहीं से भी बेमेल नहीं लगता . काश, योगी जी भी अपने नाम-परिवर्तन-यज्ञ में इसी 'हिंदुस्तानियत' को अपनाएं . लगता है जैसे गीता में कृष्ण उद्घोष कर रहे हों- 

'मुमकिनामि युगे-युगे' . 

बोला- ज़र्रा नवाजी का शुक्रिया . वैसे बिना कारण जाने हर बात पर प्रशंसा करना बहुत ही घटिया चमचागीरी का लक्षण है . 

कारण साफ़ है कि तूने 'मोदी है तो कुछ भी मुमकिन नहीं' का बहुत ही सटीक उत्तर दे दिया .  

बोला- यह आजकल कोई काम न करने की बजाय हर बात पर, केवल हिंदुत्व के एजेंडे की गोदी मीडिया की मुर्गा लड़ाऊ और कपड़ा फाडू  'हिंदू-मुसलमान' बहस वाला सामान्य उत्तर नहीं है . यह बहुत तार्किक, सप्रमाण और ऐतिहासिक तथ्यों से युक्त उत्तर है .  

हमने कहा- तो फिर स्पष्ट किया जाए . 

बोला- कृष्ण ने बचपन में अपनी छोटी अंगुली पर कुछ दिनों के लिए गोवर्धन पहाड़ उठा लिया, हनुमान जी एक बार पहाड़ उठाके ले आये तो अब तक दुनिया उन्हें गीतों में गा रही है . लेकिन आज मोदी जी ने समस्त ब्रह्माण्ड को अपने बुजाओं में बांध और तौल रखा है . 

तुझे पता है आज तक २६ जनवरी (गणतंत्र दिवस ) पर कब-कब बसंत पंचमी आई ?

हमने कहा- पता नहीं .

बोला- १९४७ से अब तक इन ७५ वर्षों में १९८५ और २००४ में बसंत पंचमी गणतंत्र-दिवस (२६ जनवरी) को आई. 

हमने कहा- इसमें क्या है ? संयोग है . क्या किसी के प्रयत्नों से ऐसा होता है  ? 

बोला-  संयोग नहीं होता है तो महापुरुष बना लेते हैं . नेहरू महान थे .  इंदिरा गाँधी बहुत शक्तिशाली थीं लेकिन बहुत बार कोशिश करने पर भी अपने जीते जी ऐसा नहीं कर सकीं .  राजीव के समय में यह शुभ संयोग २६ जनवरी १९८५ को बना . अटल जी के समय में २००४ में यह संयोग बना तो सही लेकिन उसके बाद उनकी सरकार चली गई . और मज़े की बात यह भी कि राजीव को भी दूसरी टर्म नहीं मिली . 

अब उनके बाद, देश को ठण्ड में ठिठुरता देखकर किसी तरह मोदी जी २६ जनवरी को यह संयोग बनाने में सफल हो सके हैं . बहुत मुश्किल होता है . जाने कैसे-कैसे अंतरिक्ष में इतनी तेजी से घूमते ग्रह-नक्षत्रों को कभी रोकना तो कभी किसी को सामान्य से तेज गति से चलाना पड़ता है . कृष्ण को तो केवल एक बार बड़ी मुश्किल से जयद्रथ को मरवाने के लिए सूर्य को थोड़ी देर के लिए बादलों में छिपाना पड़ा था . 

क्या मोदी जी की इस अद्भुत क्षमता का कोई समतुल्य इस दुनिया के इतिहास में है जो गृह-नक्षत्रों की चाल को नियंत्रित कर सके ? 

हमने कहा- नहीं . 

बोला- तभी तो कृष्ण ने महाभारत में अर्जुन को गीता का उपदेश देते हुए कहा था- 

यदा यदा हि जिज्ञासा जाग्रत भवति हे तोता 

अन्धास्था स्थापनार्थाय 'मुमकिनामि युगे-युगे 

हमने कहा- तोताराम, इस बार भी बसंत पंचमी २६ जनवरी को है और अगले साल चुनाव .हमारी तो बाईं आँख भी  फड़क रही है .  कहीं...... 


पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)

(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

No comments:

Post a Comment