Dec 6, 2023

2023-12-04 हमारी अपनी पनोती


हमारी अपनी  पनोती 


बड़ा विचित्र संयोग हुआ ।  जैसे ही सुबह पाँच बजे दरवाजे का ताला खोलने को हुए बाहर से किसी ने खटखटाया । वैसे तो यहाँ कौन छत पर सोना सूख रहा है जो कोई खूँख्वार चोर-डाकू आएगा फिर भी एहतियातन पूछ ही लिया- कौन ? 

किसी सामान्य उत्तर की बजाय एक बड़ा ही विचित्र उत्तर दरवाजे की लोहे की चादर को फाड़कर हमारे सामने आ खड़ा हुआ-  मैं ।  पनोती । 

हालांकि हम इन बातों में विश्वास नहीं करते । अगर ऐसा ही होता तो सेना की क्या जरूरत थी । खड़े कर देते हजार-दो हजार राष्ट्रीय स्तर के पनोती सीमा पर ले जाकर और बिगड़ जाता पाकिस्तान-चीन जैसे किसी भी पड़ोसी का गणित । लेकिन सच यह है कि सब अपने कर्मों न का फल होता है । पनोती और भाग्यशाली कुछ नहीं होता । 

फिर भी लोग और कुछ नहीं तो किसी पर अपनी कुंठा निकालने के लिए ही पनोती कह देते हैं । वैसे हमारा कोई पनोती-मनौती क्या बिगाड़ेगी । न हमें चुनाव लड़ना और न ही कोई इंटरव्यू-परीक्षा । करवा चौथ माता से डरेगी कोई सौभाग्यवती । हमारे लिए तो जब तक मोदी जी की कृपा है तब तक डी ए मिलता रहेगा और जिस दिन वे ठान लेंगे तो किसी भी कोविद के टीके के बहाने हमारा डी ए का एरियर खा जाएंगे । उस स्थिति में किसी का बाप उन्हें अपने इस निर्णय से डिगा नहीं सकता ।  

आज तक हमने कोई भूत-प्रेत, देहधारी सौभाग्य-दुर्भाग्य नहीं देखा था । जो हुआ ऐसे ही हो गया ।  नियति चलाती रही और हम चलते रहे । कोरोना, तालाबंदी और नोटबंदी के बावजूद सही सलामत हैं । अब तो इतने वरिष्ठ हो गए हैं कि इस चुनाव में तो सरकार ने पूरी चुनाव पार्टी भेजी और घर से हमारा वोट डलवाया । सो किसी साक्षात पनोती को देखने की उत्सुकतावश हमने दरवाजा खोला तो एक श्वेत केशी मुखाकृति ने अंदर झाँका । चेहरा कुछ जाना पहचाना-सा लगा । उसके मुख से दो शब्द निकले- मेरे प्रियजन । 

हमारे दिमाग में तो एक बिजली सी कौंध गई । ये शब्द ही तो मोदी जी ने इस बार स्वाधीनता दिवस पर लाल किले की प्राचीर से कहे थे- मेरे प्रिय परिवार जनो ! 

हालांकि कुछ संकीर्ण दिमाग के लोगों ने समझा कि यह सम्बोधन देश के लिए नहीं बल्कि नागपुर वाले उनके परिवार के लिए है ।हमारा संविधान कहता है कि कोई व्यक्ति प्रधानमंत्री बनने के बाद किसी संगठन या पार्टी का नहीं बल्कि पूरे देश और 140 चालीस करोड़ जनता का हो जाता है । 

वैसे ही श्वेत श्मश्रु, वैसे ही श्वेत केश । सो इस संबोधन को अपने लिए एक आत्मीय संबोधन मानकर हमने आदर से कहा- आइए मोदी जी । 

आदरपूर्वक उन्हें कुर्सी पर बैठाया । गिलास की बजाय कप-प्लेट में चाय लाकर कहा- आपसे अच्छी चाय कौन बना सकता है ? ओबामा और जिन पिंग तक आपकी चाय के दीवाने हैं । न आपके अनुरूप कोई बैठने की व्यवस्था है । लगता है, शबरी के घर राम आए हैं। सुदामा के तंदुल का द्वारकाधीश भोग लगा रहे हैं । दो चार-दिन बाद आते तो आपको तिल के लड्डू भी खिलाते । पत्नी ने तिल धो करके सुखा रखे हैं। इस रविवार को लड्डू बनाएंगे । 

हम हाथ बांधे खड़े थे । तभी मोदी जी ने कहा- कोई बात नहीं मास्टर, तिल के लड्डू रविवार को खा लेंगे । अभी तो थोड़े से नमकीन ही ले आ । 

हम आवाज पहचान गए। अभी तक संभ्रम में हम न तो उसके मोदी जी के मुखौटे पर ढंग से ध्यान दे पाए थे । न ही उसकी 56 इंची की 1/2 छाती पर शक कर पाए । न ही उसकी मरियल देह यष्टि पर निगाह गई । 

हमने कहा- तोताराम, आज तो बहुत उल्लू बनाया । कुछ सवेरे का धुंधलका और कुछ मोदी जी के नाम का झटका । समझ ही नहीं आए । लेकिन तूने यह सब नाटक क्यों किया ?

बोला- नाटक नहीं । यही आज का सच है । क्या कहीं मोदी जी के चेहरे के अतिरिक्त कुछ दिखाई दे रहा है ?  काशी, मथुरा, अयोध्या में राम मंदिर के शिलापूजन, संसद के उद्घाटन, काशी कॉरीडोर, धरती, आकाश सभी जगह उनका चेहरा ही तो दिखाई दे रहा है ? और तो और  हर रेल को हरी झंडी दिखाने लायक भी क्या इस देश में कोई चेहरा दिखाई देता है ?  प्रह्लाद को तो केवल अपनी भक्ति के कारण खड्ग-खंभ सब जगह राम ही राम दिखाई दे रहे थे लेकिन अब तो सब को सभी जगह मोदी जी का ही चेहरा दिखाई दे रहा है । ऐसे में अगर मैंने मोदी जी का मुखौटा लगा लिया तो क्या हो गया । मैं क्या कोई मोदी जी के नाम से बैंक से लोन लेकर भाग रहा हूँ या मोदी जी के नाम से कश्मीर में वी आई पी गेस्ट बनकर मजे कर रहा हूँ । 

अगर तुझे मेरा मोदी जी का मुखौटा लगाना पसंद नहीं आया तो कोई बात नहीं, तू मुझे पनोती ही समझ ले । 

हमने कहा- नहीं तोताराम, तू पनोती कैसे हो सकता है ? तेरे साथ बतियाते तो इतना लंबा जीवन कट गया । और अगर पनोती है तो हमारी अपनी पनोती है।हमारी जाति की पनोती, हमारे अपने धर्म और देश की पनोती है । हमारी बरामद संसद की स्थायी पनोती है । कोई कटुआ, भड़ुआ पनोती तो है नहीं जिसे नई संसद के शुभारंभ में ही लतिया दिया जाए । 


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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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