Feb 1, 2024

चलो अपन तो बचे


चलो अपन तो बचे

आज तोताराम ने आते ही हमारी बजाय हमारी पत्नी को संबोधित करते हुए कहा- भाभी, बहुत दिन हो गए वही चाय, वही गिलास, वही बरामदा । कोई परिवर्तन नहीं । बहुत बोरियत होती है । देअर शुड बी सम चेंज ।

हमें बड़ा अजीब लगा । कहा- अब क्या चेंज होगा । तू भी वही, हम भी वही, तेरी  भाभी भी वही । सब आजादी से पहले वाले ।

बोला- अब देश बदल रहा है । अब बता कौन बचा है आजादी से पहले का ? आडवाणी जी का नाम लेते ही लगता है जैसे मोहनजोदाड़ो-हड़प्पा का जिक्र हो रहा हो ।

हमने कहा- लेकिन गिलास और चाय में क्या बदलें ? दूध का दही बन सकता है ।गिलास का लोटा थाली किया जा सकता है वैसे ही जैसे नीतीश का जे डी एस कर लो या एन डी ए या भाजपा, कपिल मिश्र कांग्रेस में रहे या भाजपा में लेकिन फ़र्क पड़ता है कर्म और चरित्र बदलने वाले नहीं हैं ।

बोला- तो मैं कौन ब्रह्मांड परिवर्तन की बात कर रहा हूँ । अरे, थोड़ा सा परिवर्तन करने से कुछ समय के लिए ही सही कुछ मनोवैज्ञानिक प्रभाव तो पड़ता ही है ।झूठा ही सही.... पल भर के लिए कोई .... वाली बात है ।  जैसे इलाहाबाद को प्रयाग कहने से कुछ दिन तो कुछ चेंज लगता है कि नहीं ? पुरानी पेंट रंगवाने के एक बार तो कुछ भ्रम बनता है । बाल रंगने से भले ही मौत से नहीं बचा जा सकता लेकिन एक बार तो आदमी खुद को जवान सा अनुभव करता ही है ।

हमने कहा- तो बता, आज बिना किसी अतिरिक्त खर्चे के क्या परिवर्तन किया जा सकते हैं ?

बोला- आज हम ‘नमो कॉरीडोर’ में बैठकर ‘नमो गिलास’ में ‘नमो चाय’ पियेंगे । ‘नमो’ कहने से सड़ियल चाय भी गले के नीचे उतर जाएगी ।

हमने कहा- अच्छा है यह नमो कॉरीडोर है अगर  ‘राम कॉरीडोर’ होता तो अयोध्याधाम की पार्किंग वाले ‘शबरी रेस्टोरेंट’ की तरह हम भी तुझसे एक चाय के 55/- रुपए रखवा लेते ।लेकिन यह नमो नमो का संपुट किस लिए ?

बोला- यह आज का ‘द्वादश अक्षरी वैष्णव महामंत्र’ है ।

हमें तत्काल स्पष्ट नहीं हुआ तो पूछ लिया- क्या ? ‘नमो भगवते वासुदेवाय’ ।

बोला- वैसे तो ‘नमो’ से मेरा मतलब ‘नरेंद्र मोदी’ से था लेकिन यदि तू इसे ‘नमो भगवते वासुदेवाय’ माने तो भी कोई फ़र्क नहीं पड़ता क्योंकि अब दोनों एक दूसरे के पर्याय हो गए हैं । देखा नहीं, पहली बार वोट डालने जाने वाले मतदाताओं को प्रधानमंत्री द्वारा डिजिटली संबोधित सम्मेलन के नाम से पहले ‘नमो’ लगाकर ‘नमो नवमतदाता सम्मेलन’ कर दिया । ‘प्राणप्रतिष्ठा’ को भी ‘नमो प्राणप्रतिष्ठा’ ही समझो ।

हमने कहा- लेकिन यह ‘नमो’ नए मतदाताओं के लिए प्रधानसेवक का विनम्र प्रणाम भी तो हो सकता है ।

बोला- उनकी विनम्रता में कहीं, कभी कोई शक नहीं है फिर भी वे विश्व विधाता के सामने भी अपना ‘नरेंद्रत्व’ नहीं छोड़ते ।

हमने कहा- ठीक - मतदाता तो हम भी हैं । क्या हमारे लिए इस मतदाता सम्मेलन में नमो जी का कोई संदेश नहीं है ?

बोला- मोदी जी स्वयं चिरयुवा हैं । तुम जैसी ‘बाँची हुई पुरानी चिट्ठियों’ से उन्हें कोई मतलब नहीं। तुम लोग अपने उनसे उम्र में बड़े होने का उन पर नाजायज दबाव बनाते हो । अभी तक तो आडवाणी जी ही उनके पीछे पड़े थे और अब तुम भी । वे तुम्हें इस देश के इतिहास से ही निकाल चुके हैं  ।

हमने पूछा- मतलब ?

बोला- मतलब उन्होंने कहा है कि जिस तरह 1947 से 25 साल पहले भारत के नौजवानों पर देश को स्वतंत्र कराने का दारोमदार था, उसी तरह 2047 तक यानी आने वाले करीब 25 सालों में युवाओं पर विकसित भारत के निर्माण की जिम्मेदारी है।

हमने कहा- इसका मतलब हम तो किसी गिनती में ही नहीं हैं । 1947 में 5 साल के थे और अब 82 साल नाकारा बूढ़े । हमने तो ऐसे ही इस देश में जन्म लिया और ऐसे ही अनदेखे-अनसुने विदा हो जाएंगे । इस हिसाब से तो मोदी जी का भी देश के लिए क्या योगदान है ? आजादी के समय तक पैदा नहीं हुए थे और अब 74 में चल रहे हैं ।

बोला- उनकी क्या बात करते हो । हो सकता है जैसे उन्होंने बांग्लादेश के स्वाधीनता संग्राम में योगदान दिया वैसे ही हो सकता है कि इन्होंने पिछले जनम में नेताजी सुभाष के रूप में अंडमान निकोबार की राजधानी पोर्ट ब्लेयर के टाउन हाल में  तिरंगा फहराया हो ।

हमने कहा- लेकिन एक बात अच्छी हुई कि मोदी जी की इस क्रोनोलॉजी के हिसाब से देश का सत्यानाश करने का दोष हमारे सिर नहीं है और अब आगे देश के निर्माण की जिम्मेदारी से भी बचे । अब मोदी जी जानें, युवा जानें और देश जाने ।

बोला- उसकी चिंता मत कर । अब प्राणप्रतिष्ठा के बाद अगले एक हजार साल का एजेंडा तैयार हो गया है । और जहां तक देश का सत्यानाश करने के दोषारोपण की बात है तो उसके लिए केवल दो लोग हमेशा के लिए जिम्मेदार है - नेहरू और गांधी ।

 -रमेश जोशी



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