Feb 2, 2024

ब्रांडिंग बरामदा बार बार


ब्रांडिंग बरामदा बार बार 


आज तोताराम ने अंदर आने की बजाय बाहर से ही आवाज दी- मास्टर, इतनी ज्यादा भी नहीं है सर्दी कि बाहर ही न निकले । 


हमने कहा- बीच का पीरियड तो फिर भी कुछ शांति से निकल जाता है लेकिन जैसे आती-जाती सरकार और अधिकारी ज्यादा उछल कूद करते हैं और कुछ न कुछ उलटा सीधा भी; वैसे ही सर्दी का भी यही स्वभाव होता है ।जब भी थानेदार नया नया आता है तो शराब, जुआ और चोरी-जेबकतरी करने वालों पर सख्ती और धरपकड़ करता है । जब सबसे मुलाकात हो जाती है, हफ्ता तय हो जाता है तो सब सामान्य रूप से चलने लगता है , कानून व्यवस्था कायम हो जाते हैं ।  अब देख नहीं रहा लोकसभा का चुनाव आने वाला है तो कैसे बेचैन हो रहे हैं चाहे जिसको पकड़ने के लिए । गुलकंद के चक्कर में गोबर तक खाने लग रहे हैं । काम होने पर छिटका दिये चिराग को फिर ढूंढकर तेल-बत्ती फिट कर रहे हैं ।इसी तरह हम सर्दी को हलके में लेकर रिस्क नहीं लेना चाहते ।

 

बोला- ज्यादा देर का काम नहीं है । बस, दो चार फ़ोटो लेने हैं । 


हम अनखाते से बरामदे में गए तो देखा दीवार पर कभी विज्ञापन के रूप में छपा मोदी जी के फ़ोटो वाला किसी अखबार का एक पन्ना चिपका हुआ है और उसके नीचे  ‘बरामदा-मंदिर’ लिखा हुआ एक सफेद कागज पर शोभा बढ़ा रहा था । 


हमने पूछा- यह क्या है ? 


बोला-  बार बार बरामदा ब्रांडिंग । 


हमने कहा- ऐ अंग्रेजी की दुम, इसे ‘रीब्रान्डिग’ कहते हैं । यह बार बार लगाने की क्या जरूरत है ? 


बोला- इस तरह से मोदी जी वाले स्टाइल की तरह एक प्रकार का अनुप्रासात्मक सौन्दर्य आ जाता है । 


हमने कहा- रहेगा तो बरामदा ही । जैसा कल था वैसा आज है । जैसे कल बैठते थे वैसे ही आज, अब भी बैठेंगे । 


बोला- तुझे पता नहीं, ब्रांडिंग से भाव जागृत होते हैं । बाजरे, ज्वार और मक्का को मोटा अनाज की बजाय  ‘ऋषि अन्न’ या ‘श्री अन्न’  कहने से एक अलौकिकता आ जाती है। फिर वह किसी को भी महंगे दामों में टिकाया जा सकता है ।  किसी लंगड़े को दिव्याङ्ग, किसी अंधे को प्रज्ञा चक्षु या सूरदास कहने से बुरा नहीं लगता । वैसे ही जैसे मुख्यमंत्री पद के लिए नौ-नौ बार दलबदल का गू खाने को ‘आत्मा की आवाज’ या कहीं दाल न गलने पर ‘खुद को पार्टी का अनुशासित सिपाही’ बताने से कुछ तो झेंप मिट ही जाती है । जैसे किसी चाय पत्ती का नाम ‘मोदी चाय’ रख दिया जाए तो फिर वह पत्ती   विदेश से आया लाभहीन पेय नहीं रह जाती बल्कि उसकी तुलना लक्ष्मण के प्राण बचाने के लिए हनुमान द्वारा लाई गई संजीवनी बूटी से की जाने लगती है । उसे पीना हर राष्ट्रभक्त का कर्तव्य हो जाता है । फिर उसमें मिलावट की शिकायत करना राष्ट्रद्रोह से कम नहीं माना जाता ।  


हमने पूछा- क्या बरामदे का नाम ‘बरामदा-मंदिर’ कर देने से इसमें किसी दैवी शक्ति की प्रतिष्ठा हो जाएगी ? क्या मल-मूत्रालय, पाखाने का नाम ‘स्वच्छता मंदिर’ कर देने से उसमें बदबू की जगह चंदन की खुशबू आने लगेगी ?


बोला- कुछ तो फ़र्क पड़ता ही होगा । तभी तो आजकल लोग प्याऊ को ‘जल-मंदिर’, शिक्षा की दुकान को ‘शिक्षा-मंदिर’, जहां अनाप-शनाप फीस लेकर, बच्चों पीट पीटकर गलत सलत सूचनाएं रटाई जाती हैं उसका नाम ‘शिशु-मंदिर’, इस उस टेस्ट और सुविधा के नाम पर मरीज के परिवार वालों की खाल उतार लेने वाले अस्पतालों को ‘आरोग्य-मंदिर’ कहते हैं । इससे पापों पर  कुछ तो पर्दा पड़ता ही होगा ?


हमने कहा- कोई पर्दा नहीं पड़ता । सब समझते हैं लेकिन किसके आगे रोयें । लोग डर या सौ-पचास रुपए के लिए रैली या रोड़ शो में चले जाते हैं लेकिन वे राजसी ठाठ वाले उस नेता की सब सचाई जानते हैं जो खुद को गरीब और सेवक कहता है और पुराने अय्याश और विलासी राजाओं से भी अधिक शान से रहता है । 


बोला- तो फिर इस समाचार का क्या मतलब है ? ऐसा कहते हुए तोताराम ने हमारे सामने समाचार की एक कटिंग रख दी-

पिछले साल नवंबर में केन्द्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने लद्दाख के आयुष्मान भरत स्वास्थ्य और कल्याण का नाम बदलकर ‘आयुष्मान आरोग्य मंदिर’ करने का फैसला किया था । और 31 दिसंबर 2023 तक नए नाम के साथ इन केंद्रों ( ‘मंदिरों’ ) के फ़ोटो भी भेजने को कहा था । इस रीब्रान्डिंग के लिए प्रति ‘मंदिर’  3000 हजार रुपए भी निर्धारित किए थे ।


हमने पूछा- तो फिर अपने इस 8 गुणा 4 फुट के नाप वाले भव्य बरामदे का क्या नाम रहेगा ? 


बोला- ‘मोदी जी चाय-चर्चा बरामदा मंदिर’ । 


हमने कहा- और अगर इसमें राष्ट्र, अमृत, भव्य और जोड़ दें तो ?


बोला- फिर तो प्राणप्रतिष्ठा ही हो गई समझ ले । 


हमने फिर पूछा- और लाभ ?  


बोला- वही जो भाजपा को राममंदिर से होने की आशा है । अपने लिए तो ब्रांडिंग के 3000 हजार रुपए ही बहुत हैं ।  साल भर रोज चाय के साथ एक एक फंकी नमकीन । 


हमने कहा- तो फिर खींच  ‘मोदी जी चाय-चर्चा बरामदा मंदिर’ के साथ हमारा फ़ोटो और दे आ किसी अखबार में । अखबार वालों को आजकल मंदिर के अलावा और कुछ छापने की फुरसत ही कहाँ है ? 



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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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