शिला पूजन
दो दिन धूप निकलने से मौसम ठीक ठाक हो गया था लेकिन कल शाम कुछ हल्की बादलवाई हो गई और सुबह होते न होते हवा भी चलने लगी । वैसे भी बरामदे में बैठने का कार्यक्रम संक्रांति के बाद सोचा जाएगा । चाय प्रायः कमरे में ही पीते हैं । लेकिन सड़क पर रेहड़ियों, मंडी में सब्जी ले जाने और दूध वालों की मोटर साइकलों का प्रवाह बदस्तूर चालू रहता है ।
इसी दैनंदिन हलचल के बीच बरामदे में कुछ खटर-पटर हुई तो बाहर निकले । देखा तोताराम एक सब्जी वाले की रेहड़ी से कुछ ईंटें उतार रहा है । ईंटों के पास ही मसाले का एक तसला रखा हुआ है । पूछा तो बोला- जल्दी से हाथ-मुँह धोकर आ जा । भाभी को भी बुला ला । पूजा में सपत्नीक बैठना होता है । आज का यजमान तू ही है । जल्दी कर मुहूर्त निकल न जाए । देर करेगा तो यह मसाला भी तसले में ही जमकर खराब हो सकता है ।
हमने कहा- तेरी भाभी को रात हल्का सा बुखार हो गया था सो वह तो नहीं आएगी लेकिन कार्यक्रम क्या है ? कैसा मुहूर्त ?
बोला- हनुमान लला के मंदिर का शिलापूजन करना है ।
हमने कहा- एक तो अभी मल मास चल रहा है जिसमें कोई शुभ काम नहीं किए जाते, दूसरे ऐसे काम सपत्नीक होते हैं ।तीसरे एक 5 बाई 9 फुट के बरामदे में मंदिर कैसे बन सकता है ।
बोला- महाजनो येन गतः सः पन्थाः । मोदी जी ने अकेले ही राम मंदिर का शिलान्यास कर दिया था और वह भी पंचक में । सो इन दोनों शंकाओं का कोई अर्थ नहीं रह जाता । रही बात जगह की तो अगर धंधा चल निकला तो किसी बड़ी जगह में शिफ्ट कर लेंगे । फिलहाल एक बार पैर टिकाने को जगह तो मिले । फिर तो काशी कॉरीडोर और अयोध्या की तरह इधर-उधर पैर फैला लेंगे ।
हमने कहा- मोदी जी ने तो हमें नहीं बुलाया लेकिन हम ऐसा कैसे कर सकते हैं ?
बोला- मोदी जी ने तो मंदिर के शिलान्यास, प्राणप्रतिष्ठा और संसद के उद्घाटन तक में रामनाथ कोविन्द और द्रौपदी मुर्मू तक को नहीं बुलाया तो क्या फरक पड़ता है ? वैसे इस समय मोदी जी दिल्ली में केजरीवाल नामक ‘आपदा’ के प्रबंधन में लगे हुए हैं । उसके 50 करोड़ के ‘शीशमहल’ की जगह मात्र 2000 करोड़ की ‘प्रधान सेवक कुटिया’ बनवाकर ही छोड़ेंगे । बुलाया तो भी आ नहीं पाएंगे ।
हमने कहा- वैसे तोताराम, देश में पहले से ही जरूरत से ज्यादा मंदिर बने हुए हैं । विकास के लिए जरूरत तो अच्छे और सस्ते स्कूलों, अस्पतालों और रोजगार की है । इस लोक को उपेक्षित करके परलोक में जनता को उलझाने की क्या जरूरत है । हमें कौनसा चुनाव लड़ना है, कौनसा हिन्दू वोटों का ध्रुवीकरण करना है जो जगह-जगह मूर्तियाँ, कॉरीडोर और दीये जलवाने का विश्व रिकार्ड बनाते फिरें ।
बोला- ठीक है, मेरा भी ऐसा कोई एजेंडा नहीं है । मैं तो उस रेवड़िए केजरीवाल के एजेंडे के हिसाब से सोच रहा हूँ । उसने पुजारियों को 18-18 हजार रुपए मासिक देने की घोषणा की है ।
हमने कहा- लेकिन अपने यहाँ तो रेवड़ी कल्चर वाली सरकार नहीं है ।
बोला- ये सब एक दूसरे की आलोचना करते हैं, गालियाँ निकालते हैं लेकिन हैं सभी एक ही माजणे के । किसी के पास कोई कार्यक्रम नहीं है । सब किसी न किसी प्रकार वोट खरीदते हैं और उसके बाद महँगाई बढ़ाकर, विकास के नाम पर दलालों और पूँजीपतियों से मिलकर उलटे-सीधे काम करके सब अपनी जेबें भरते हैं ।
हमने कहा- ऐसा नहीं है, मोदी जी तो केजरीवाल की इस रेवड़ी कल्चर के सख्त खिलाफ हैं ।
बोला- फिर यह महाराष्ट्र में ‘लाड़की बहना’ क्या था ?
देख लेना अगले चुनावों तक राजस्थान में भी पुजारियों के लिए कोई न कोई योजना जरूर आ जाएगी ।
हमने कहा- लेकिन अभी तो पेंशन में कोई गुंजाइश निकल नहीं सकती । हाँ, अगर मोदी जी 18 महिने का डीए का एरियर दे दें तो कुछ किया जा सकता है । मूर्ति ही हजारों की आएगी ।
बोला- हनुमान जी और शिवजी का यही तो फायदा है । किसी तिकोने पत्थर पर सिंदूर लगा दो तो हनुमान जी और किसी गोल पत्थर पर पानी डाल दो तो भोले बाबा । एक मंदिर मेरे बरामदे में भी बना लेंगे । दोनों में से यदि किसी एक का भी जुगाड़ भिड़ गया तो मजे ही मजे । रोज सुबह चाय के साथ कभी गाजर का हलवा, कभी बरफी, कभी पेड़े, कभी समोसे, कभी कचौरी ।
समझ अच्छे दिन ही अच्छे दिन ।
हमने कहा- और तो कोई ढंग का काम होना नहीं । हम संविधान की बजाय कुम्भ में एकता और कारखानों की बजाय मंदिरों में रोजगार तलाश रहे हैं । इस देश की किस्मत अब ऐसे अच्छे दिन ही लिखे हैं ।
तुझे पता होना चाहिए कि आज भी योरप और अमरीका दुनिया को लीड कर रहे हैं क्योंकि उन्होंने शिक्षा और विज्ञान के क्षेत्र में निवेश किया ।
-रमेश जोशी
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