किधर से चलना है ?
आज तोताराम ने आते ही हमारे सामने एक आदेशात्मक विकल्प फेंका- किधर से चलेगा ?
हमने कहा- यह कोई विकल्प नहीं है । यह विकल्प की आड़ में आदेश है मतलब चलना तो पड़ेगा । हाँ, रूट चुनने की छूट है । जैसे मोदी जी ने कोरोना से बचने का विकल्प दिया था- ताली-थाली बजाओगे या दीये जलाओगे ? या कोरोना के लिए कौनसा टीका लगवाओगे ? कोवेक्सीन या कोवीशील्ड । मतलब टीका तो लगवाना पड़ेगा । नहीं लगवाओगे तो वैसे ही एंट्री कर दी जाएगी और उसके बदले 18 महिने का डीए का एरियर खा जाएँगे । या कोई बॉस पूछे कि इस्तीफा दोगे या टर्मिनेट होना चाहोगे ?
जब हम चलने की स्वीकृति दें तब पूछना- कि किधर से चलेंगे, कब चलेंगे ?
बोला- चलना तो है । बस, यही तय करना बाकी है कि जयपुर से सीधी बस पकड़ेंगे या सीकर से सीधी बस की घोषणा का इंतजार करना है ।
हमने कहा- सीधी बस तो सीकर से भी जाती है हरिद्वार, मृतकों की अस्थियाँ विसर्जित करने वालों के लिए ।
बोला- अभी अस्थि विसर्जन कहाँ ? अभी तो प्रयागराज में महाकुंभ स्नान करेंगे । पाप-प्रक्षालन करके, पाक-साफ होकर फिर चलेंगे हरिद्वार किसी मिट्टी के कुम्भ में भस्मीभूत रूप में पैक होकर ।
हमने कहा- जिस प्रकार धर्म की धमाका सेल हो रही है उस हिसाब से इंतजार करने में कोई नुकसान नहीं है ।भले ही स्कूल, अस्पताल न हों, बहुत रूटों पर कोई बस उपलब्ध न हो लेकिन प्रयाग, अयोध्या, हरिद्वार के लिए स्पेशल बसें जरूर लगाई जाएंगी । भले ही बुढ़ापे में इलाज, भोजन, सेवा-सँभाल न मिले लेकिन हो सकता है अगले कुम्भ तक रिकार्ड बनाने के लिए, हिन्दुत्व की रक्षा करने के लिए हर हिन्दू के लिए कुम्भ-स्नान अनिवार्य कर दिया जाए । जो न जाएगा उसे सरकारी योजनाओं का लाभ बंद कर दिया जाएगा या सरकारी कर्मचारियों की वेतन-वृद्धि रोक दी जाएगी ।
बोला- लोक कितना ही बिगड़ जाए लेकिन परलोक सुधारने के लिए मुसलमानों को भी तो हज के लिए सबसीडी दी जाती है ।
हमने कहा- वह भी इतना ही गलत है । सभी धर्म उस अज्ञात और अप्रामाणिक स्वर्ग-नर्क के भय और लालच की बात करके या फिर बीत चुके और कभी लौटकर न आने वाले भूतकाल की बात करके अपना धंधा करना चाहते हैं । जिम्मेदारी के बचने का इससे बड़ा गैरजिम्मेदार तरीका और कुछ नहीं हो सकता ।
एक और कारण ही कुम्भ स्नान के लिए न जाने का ।
बोला- क्या ?
हमने कहा- पहले इसका प्रबंधन आज़म खान के पास हुआ करता था । उसने गंगा को बहुत गंदा कर दिया था और अब फिर योगी जी ने गंगा की पवित्रता की जिम्मेदारी एक मुसलमान को दे दी है। किसी मुंतशिर को ।
बोला- नहीं, वह मुसलमान नहीं है । शुक्ला है, पक्का ब्राह्मण । मुंतशिर तखल्लुस अर्थात उपनाम तो उसने मुशायरों में घुसने के लिए रख लिया है ।
हमने कहा- तो फिर सबसे पहले तो योगी जी को अलीगढ़ से हरिगढ़, पोर्टब्लेयर से श्री विजयनगरम, कश्मीर से कश्यप की तरह मनोज शुक्ला को मुंतशिर से बदलकर मनोज मंगल कर देना चाहिए ।
बोला- वह भी हो जाएगा फिलहाल तो तू उसके तेवर देख । नए मुल्ला की तरह प्याज खाए जा रहा है । कह रहा है- अगर मुसलमान हमारी विनती न मानकर कुम्भ में आएंगे तो हम शिवाजी के वंशजों के हाथ खुल जाएंगे तो कोई औरंगजेब नहीं बचेगा । गंगा और कुम्भ की पवित्रता के लिए यह जरूरी भी है ।
हमने कहा- कुम्भ पवित्रता-ववित्रता कुछ नहीं है । यह कुमार और हिमांत बिस्वास की तरह भाजपा की सीमा हैदर बना हुआ है । आज की राजनीति में सत्ता की मलाई खाने का यही नया शॉर्टकट है ।
जहाँ तक गंगा की पवित्रता की बात है तो उसका स्वच्छता से कोई लेना-देना नहीं है । पवित्रता स्वर्ग-नर्क की तरह अंधविश्वास का मामला है और शुद्धता एक वैज्ञानिक बात है । गंगा पवित्र हो सकती है लेकिन शुद्ध नहीं । जल्दी ही गंगा भी यमुना की तरह एक गंदा नाला बनने वाली है ।
हम गाय और गंगा मानकर दुनिया में विश्वगुरु बने फिरें लेकिन हमारी नदियां योरप और अमेरिका की नदियों से हजार गुणा गंदी हैं । कोई मनोज शुक्ला या तिवारी गंगा में गिरने वाले गटरों पर ऐसा फ़िल्टर नहीं लगा सकता जिससे हिन्दू और मुसलमान के गू को अलग-लगा किया जा सके । और फिर गू तो गू होता है । चाहे विश्व सुंदरी का हो या मंथरा का, प्रधान सेवक का हो या प्रधान चोर का, साधु का हो या शैतान का । किसी में चंदन की खुशबू नहीं आती ।
हम विषाक्त प्रसाद खाकर मरने की बजाय जैनियों की तरह ‘संथारा’ करके मरना बेहतर समझते हैं ।
और हाँ क्या पता, कहीं मनोज मुंतशिर की कुम्भ को मुसलमानों से बचाने योजना के तहत वहाँ जाने वालों का खतना चेक किया जा रहा हो तो बिना बात बुढ़ापे में तमाशा बनेंगे ।
-रमेश जोशी
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