Dec 13, 2025

2025-12-11 कौन सा वन्देमातरम्


2025-12-11 

कौन सा वन्देमातरम  

 

हमारा घर लबे सड़क है । सड़क भी व्यस्त । सीकर जयपुर राजमार्ग से कटकर उसके दक्षिण की तरफ बसी कॉलोनियोंमोहल्लों की तरफ जाने वाली । दिन भर भूँ-भाँ और धूल-धक्कड़ में लिपटी हुई और सुबह-सुबह एक अलग तरह की ‘जागिए रघुनाथ कुँवर पंछी बन चहके’ की तर्ज पर जीवंत ।  

स्वच्छ भारत की ‘गाड़ी वाला आया घर से कचरा निकाल’ से लेकर घूमने निकले ठंड और कुत्तों के भयभीत धार्मिक टाइप लोगों की फ्री में किसी देवी-देवता पर एहसान लादने और बिना कोई सत्कर्म किए स्वर्ग में घुस जाने के लिए भजन टाइप गुनगुनाहट तक । हमें इसकी आदत है और बहुत बार तो हम यहाँ तक बता सकते हैं कि ये फलाँ विभाग से फलाँ सन में रिटायर हुए फलाँ सज्जन है जो पहले अपने पद से माहौल को दबदबाते थे और अब पेंशन के आतंक से कम और भक्ति के आडंबर से अधिक ।  

 

आज इन्हीं सब प्रातःकालीन ध्वनियों में के बीच एक नई ध्वनि सुनाई दी । शब्द तो साफ समझ नहीं आ रहे थे लेकिन  कुछ अंतिम ध्वनियाँ अम,आमईम  जैसा सुनाई दे रहा था । एक बार तो अनसुना करकेएक और झपकी लेने के लिए आँखें बंद कर ली लेकिन अन्य ध्वनियों की तरह यह ध्वनि आगे नहीं चली गई बल्कि लगा कि वह हमारे बरामदे के पास आकर ठहर गई है । जब सुनने से चिढ़ सी होने लगी तो बरामदे में जाकर देखा कि कोई सिकुड़कर बैठी आकृति लगातार वही अमआमईम से समाप्त होने वाले शब्दों में गुनगुनाए चली जा रही है ।  

कुछ देर सुनने के बाद हमने उस से पूछाक्या बड़बड़ा रहे हो भाई ?   

बोलानए वर्ष के लिए सुरक्षा कवच का पाठ कर रहा हूँ ।  

हमने कहालेकिन न तो इसमें राम रक्षा स्तोत्र जैसी ध्वनियाँ हैं और न ही तुलसी के संकटमोचन हनुमानाष्टक जैसा कुछ । 

बोलायह नए संकट के लिए नया संकटमोचन  डिफेंस सिस्टम है ।  

तभी पत्नी बाहर निकली और बोलीदिन निकला नहीं कि यह क्या शुरु हो गए ।सुबह-सुबह तो कुछ देर तो शांति का सामान्य वातावरण बना रहने दिया करो । यह घर है संसद नहीं । क्या हुआकिससे किस विषय पर बहस हो रही है ।  

हमने कहापता नहीं कौन हैऔर जाने किस भाषा में कौन सा भजन गुनगुनाए जा रहा है ?  

हमारी इन्हीं बातों के बीच वह आकृति उठ खड़ी हुई और डरानेे वाले और पिटाई कर देने वालेगाली गलौज वाले अंदाज में दहाड़ी-  यह भारत हैनया भारतकोई देश का विभाजन करवाने वालों का तानाशाही शासन नहीं है । गाएंगे और जोर से गाएंगेजहाँ हमारा मन होगा वहाँ गाएंगेदिन रात गाएंगे । और खंडित नहीं पूरा गाएंगे ।  

अरे यह तो तोताराम है ।  

हमने पीछे हटते हुए कहायह क्या हुआ तोतारामक्या हमारा सिर फोड़ेगा ? हम मास्टर हैं, कोई देश के दुश्मन नहीं ।   

बोलादो दिन से सम्पूर्ण वन्दे मातरम गाने का अभ्यास कर रहा हूँ । और लोग हैं कि बीच बीच में डिस्टर्ब करके भुला देते हैं ।  

हमने कहाहम तो 1947 से वन्दे मातरमजन गण मन और सारे जहाँ से अच्छा गाते आ रहे हैं । खड़गे को छोड़कर संसद में बैठे सभी माननीयों के जन्म के पहले से ही । और ये तीनों ही अभी तक थोड़े बहुत याद हैं । तुझे कौन सी किसी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करनी है ?  

बोलापरीक्षा और चयन के लिए कुछ याद करने की बजाय लेटरल एंट्री जैसे और कई चेनल हैं । मैं तो अपनी निजी सुरक्षा के लिए पूरा वन्दे मातरम रट रहा हूँ ।  

 

हमने कहाइस गीत में बंकिम बाबू ने संस्कृत में केवल दो बंद ही लिखे थे । बाद में मुसलमान शासक और बंगाल के सन्यासियों के धार्मिक संघर्ष के कथानक वाले अपने उपन्यास आनंद मठ के लिए इसमें बांग्ला के कुछ बंद और जोड़ दिए जो युद्ध और देवियों से संबंधित हैं । मूल रूप से तो यह किसी भी पुत्र की आत्मा से निकली अपनी अधेड़ उम्र की स्नेहिलउदार और प्रेममयी माँ के लिए कोमल भावनाएं हैं । इसी संबंध को वासुदेवशरण अग्रवाल अपने निबंध ‘माता पृथिवी पुत्रोंहम्’  में बताते चित्रित करते हैं ।  

बोलामुझे पता है सब लेकिन आज के कुपढ़ सेवकों और उनके मूढ़ अनुयायियों को इससे कोई मतलब नहीं है । वे तो बस अब अगले चुनाव की तैयारी के रूप में निकलने वाले हैं पूरे वन्देमातरम के कैसेट जोर जोर से किसी विधर्मी के पूजा स्थल के सामने प्रसारित करने के लिए ।  

हमने कहालेकिन असली मज़ा और लाभ तो डी जे पर बजाने की बजाय खुद गाने में ही होता है ।  

बोलापूरा वन्दे मातरम तो इस बहाने देश भक्ति दिखाने वाले तो दूरखुद को असली देशभक्त कहने वाले ही क्याबंकिम बाबू और टैगोर के वंशज तक नहीं जानते । यह नाटक तो वोट कबाड़ने और किसी धर्म और पार्टी वालों को गरियाने और राजनीतिक लाभ उठाने के लिए है ।  

हमने कहातो फिर तू क्यों परेशान हो रहा है । चल अंदर चाय पी । यहाँ बैठा बैठा ठंड खा जाएगा ।  

बोलाऔर किसी को याद हो या नहीं लेकिन मेरे जैसे निरीह प्राणी के लिए याद करना बहुत जरूरी है । क्या पता कल गौरक्षक दल की तरह सुबह सुबह रास्ते में कोई ‘वन्दे मातरम ब्रिगेड’ मिल जाए और पूरा वन्दे मातरम न गा सकने के कारण मेरे हाथ-पैर तोड़ दे ।  

हमने कहायह बात तो सच है । अभी तो अंदर चल । कल से हम भी तेरे साथ पूरे वन्दे मातरम को कंठस्थ करने के अभियान में लगेंगे और बरामदे में बैनर लगा देंगे- 

राष्ट्रीय सम्पूर्ण वन्दे मातरम अखंड पाठ महायज्ञ ।  

फिर देख कैसे सारे भूत-पिशाच वश में हो जाते हैं । और क्या पता नजर में चढ़ गए तो किसी विश्वविद्यालय का कुलगुरु पद भी असंभव नहीं है ।  

 

-रमेश जोशी    


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