Mar 26, 2016

तोताराम और टी. ट्वंटी की ट्राफी

  तोताराम और टी ट्वंटी की ट्रॉफी 

सुबह-सुबह विपरीत दिशा अर्थात जयपुर रोड़ की तरफ से कंधे पर एक बड़ा-सा थैला उठाए तोताराम आता दिखाई दिया |हमने पूछा- क्यों, 'स्वच्छ भारत : स्वस्थ भारत' कार्यक्रम के तहत प्लास्टिक की थैलियाँ बीनने गया था क्या ?वैसे सफाई योजना के ठेकेदारों के लिए मार्च का महिना कूड़े की नहीं बल्कि बजट की सफाई का महिना होता है |रात-रात भर जागकर एडवांस भुगतान के बिल बनाने का होता है |

बोला- इस राष्ट्रीय महत्त्व की योजना का मज़ाक उड़ाकर क्यों देशभक्तों के निशाने पर आना चाहता है ? वैसे ये दूध की थैलियाँ, इधर-उधर सूने कोनों और प्लाटों में पड़ी बीयर की बोतलें, नशे के लिए पी गई खाँसी की दवा की शीशियाँ और गुटखे के रैपर ही हमारी समृद्धि की ध्वजाएँ हैं |ये न हों तो पता ही नहीं लगे कि देशवासी कुछ खा पी भी रहे हैं या एकादशी ही कर रहे हैं |वैसे ये तीनों पदार्थ एकादशी में भी वर्जित नहीं हैं |
वैसे तो मैं तुझे स्वच्छ भारत में ही पाँच साल उलझाए रख सकता हूँ लेकिन मुझे कौन सरकार बनाए रखना है | सुन, इसमें कोई प्लास्टिक की थैलियाँ नहीं हैं |इसमें टी. ट्वंटी वर्ल्ड कप २०१६ की ट्राफी है |

अब चौंकने की बारी हमारी थी |अभी तो बहुत से मैच बाकी हैं और तू अभी से ट्राफी उठा लाया |वैसे हमने ट्राफी चोरी होने का कोई समाचार तो नहीं सुना | ठीक भी है, ट्राफी चोरी होने की खबर से देश की बड़ी बेइज्ज़ती होती |चुपचाप दूसरी बनवा कर रख दी होगी |लेकिन ट्राफी चुरा लाने में और जीतने में बहुत फर्क है |जीतते तो बात और होती |चोरी की ट्राफी किसी को दिखाएँ भी क्या |और दिखाएँ नहीं तो मज़ा क्या ? जीत तो होती ही दुश्मनों और पड़ोसियों को जलाने के लिए |फिर भी खैर, दिखा तो सही |
तोताराम ने थैला उलट दिया लेकिन निकला कुछ नहीं |हमने कहा-यह क्या तमाशा है ?

बोला-यह तमाशा नहीं | यह वर्चुअल ट्राफी है, एक मनोवैज्ञानिक ट्राफी है |

हमने कहा- तोताराम, ये मन बहलाने की बातें हैं |टी.वी. पर और भाषणों में रोटियों और विकास की बातों से पेट नहीं भरता |

तोताराम ने हमारा हाथ पकड़ कर बैठाया, बोला- शांत चित्त से समझने की कोशिश कर |हमारा वर्ल्ड कप श्री लंका, बांग्लादेश और पाकिस्तान तक सीमित होता है | श्री लंका से जीत जाओ तो क्वार्टर फाइनल, बंगला देश से जीत जाओ तो सेमी फाइनल और पाकिस्तान से जीत जाओ तो फाइनल | सो लंका हमारे ग्रुप में है नहीं और वैसे भी वह बाहर हो चुका है, बंगला देश से हम हारते-हारते बचे और पाकिस्तान को हारा दिया |अब वर्ल्ड कप में बचा ही क्या है ? अब कोई भी ले जाए कोई फर्क नहीं पड़ता |

हमने कहा- तभी शिव उमा को उसके पिता के यहाँ यज्ञ में जाने से मना कर रहे थे क्योंकि वे जानते थे कि उनके ससुर दक्ष प्रजापति उनसे खुन्नस खाते हैं |हो सकता है उमा वहाँ उनका अपमान सहन न करे सके, क्योंकि 
'सब ते कठिन जाति अवमाना'   और हुआ भी वही |

बोला- इस उपमहाद्वीप की यही विडंबना है | सैंकड़ों वर्षों तक अंग्रेजों ने इसी मनोविज्ञान के आधार पर यहाँ राज किया |और अब भी योरप,अमरीका और चीन इनकी इसी मानसिकता का लाभ उठाकर हथियार बेचकर कमाई कर रहे हैं |दूसरे देशों को क्या कहें, भारत और पकिस्तान के नेता भी तो इस शत्रुता को वास्तव में मिटाना नहीं चाहते क्योंकि उनके लिए भी यह सत्ता में आने या बने रहने का एक मुद्दा है |वियतनाम, जर्मनी एक हो सकते हैं लेकिन एक ही पूर्वजों की संतानें और एक ही साझा संस्कृति के वारिस ये देश पता नहीं, कब समझेंगे ? 

हमने कहा- यदि यही समझ जाएँ तो हाकी और क्रिकेट के वर्ल्ड कप ही क्या, यह इलाका फिर सोने की चिड़िया हो सकता है |

बोला- बन्धु, मैं तो तुम्हारी इस बात पर केवल आमीन कह सकता हूँ |आगे ईश्वर जाने |



No comments:

Post a Comment