चौपट नगरी में वीकएंड की रात का दूसरा पहर बीत चुका है । चौपट महल के रखवाले ऊँघने लगे हैं । पर महाराज की आँखों में नींद नहीं । सारे सुखों को त्याग कर महाराज कक्ष से बाहर निकले । दबे पाँव चारदीवारी फाँदकर कर जनपथ पर आ गए और छुपते-छुपाते संसद के पिछवाड़े को जाने वाली पगडंडी पकड़ ली । दीवार तक पहुँचने पर चार ईंटें हटाकर गुप्त मार्ग से प्रवेश करके संसद के कुँए के पास जा निकले ।
बड़ी सावधानी से कुँए से 'सत्य का शव' निकाला और कंधे पर डाल कर गुप्त मार्ग से बाहर निकलने लगे । तभी शव में स्थित बेताल बोल उठा- राजन, जब सारी चौपट नगरी वीकएंड मनाती है तब तुम क्यों सारे सुखों को त्याग कर सत्य के शव को ठिकाने लगाने के लिए चल पड़ते हो ? जब कि तुम अच्छी तरह से जानते हो यह सत्य बड़ा चीमड़ है और किसी न किसी बहाने तुम्हारे चंगुल से निकल जाता है । आज फिर तुम इसे उठा कर चल पड़े हो ।
महाराज कुछ नहीं बोले तो बेताल ने कहा- पर तुम्हारी भी क्या गलती । राजा को हर समय सत्य के उठ खड़े होने का डर सताता रहता है । उसके लिए चैन की नींद सोना मुश्किल हो जाता है । मुझे तुमसे पूरी सहानुभूति है । तुम्हारा मन बहलाने और श्रम भुलाने के लिए, लो मैं तुम्हें एक कहानी सुनाता हूँ -
"किसी महान देश में लोग बहुत पिछड़े हुए थे । बहुत पहले तो खैर उस देश के निवासी दूध बेचते ही नहीं थे तो पानी मिलाने का प्रश्न ही नहीं उठता था पर धीरे-धीरे जब उनमें व्यापारिक बुद्धि आने लगी तो उन्होंने दूध बेचना शुरु कर दिया । जब बेचना शुरु कर दिया तो नफा-नुकसान भी देखा जाने लगा । बेचनेवाला दूध में पानी मिला कर अपना मुनाफा बढ़ाना चाहता था तो लेने वाले के लिए पानी पर निगरानी रखना ज़रूरी हो गया । दूध लेनेवाले शुद्धता पर विशेष जोर देते थे । दूध लेते थे तो केवल दूध ही चाहते थे । पानी की एक बूँद भी बर्दाश्त नहीं करते थे । बिना पानी के दूध के लिए दूर-दूर तक निकल जाते थे । जल्दी सुबह ही दूध वाले के घर पहुँच जाते थे और अपने सामने दूध निकलवाते थे । दूध लेने और बेचने वाले के बीच एक अद्भुत खेल चलता रहता था । घी का भी यही हाल था । जब वनस्पति घी नहीं चला था तब तक तो मज़बूरी थी । मिलाएँ तो क्या मिलाएँ । कुछ लोग घी में अधिक से अधिक छाछ छोड़ कर ही कुछ अधिक कमाई करना चाहते थे । मसाले भी लोग साबुत ही लेते थे और घर पर ही कूट लेते थे सो उनमें भी मिलावट नहीं हो पाती थी । इस प्रकार वह देश व्यापार की दृष्टि से काफी पिछड़ा हुआ था ।
धीरे-धीरे विकास शुरु हुआ । वनस्पति घी आ गया तो असली घी में उसकी मिलावट शुरु हो गई । लोग पिसे हुए मसाले लाने लगे तो मसलों में भी अपनी-अपनी योग्यता के हिसाब से लोग मिलावट करने लगे जैसे धनिए में लकड़ी का बुरादा, मिर्च में गेरू, काली मिर्च में पपीते के बीज आदि । फिर भी वह देश व्यापार में पिछड़ा हुआ था ।
जब उस देश में वैज्ञानिक उन्नति हुई तो बाज़ार और व्यापार में बड़ी तेजी से वृद्धि हुई । जितना चाहे दूध, जब चाहे ले लो । जितना चाहे घी ले लो । लोगों ने सिंथेटिक दूध और घी बनाने शुरु कर दी और उन्होंने यह ज्ञान किसी विकसित देश से आयात नहीं किया बल्कि यह उनका अपना आविष्कार था । ऐसे में दिखाने के लिए ग्राहकों के भले का नाटक करना भी ज़रूरी होता है और फिर कुछ पुराने आदर्शवादी लोगों की चूँ-चूँ भी यदा-कदा होती थी सो वहाँ कि सरकार ने 'जागो ग्राहक, जागो' का प्रचार करना शुरु किया मगर बात वहीं की वहीं थी । सो सरकार ने एक और अभियान शुरु किया- 'शुद्ध के लिए युद्ध' । अब साधारण ग्राहक के पास कोई बंदूक तो होती नहीं और न ही किसी को जेल भिजवाने का अधिकार सो वह हमेशा ही इस युद्ध में हारता था पैसे पूरे देता था पर न तो तौल पूरा मिलता था और न ही कोई चीज शुद्ध ।
हे राजन, अब बताओ कि उस महान देश के निवासी शुद्ध के लिए इस युद्ध में किस प्रकार विजय प्राप्त करें । यदि तुमने जानते हुए भी उत्तर नहीं दिया तो तुम्हारा सिर टुकड़े-टुकड़े हो जाएगा ।"
महाराज चौपटादित्य ने कहा- बेताल यह सब श्रद्धा और विश्वास का मामला है । जिन्हें बाज़ार और सरकार पर विश्वास है वे जो कुछ बाज़ार में मिलता है उसे खाते हैं और मस्त रहते हैं । विश्वास के बल पर ही मीरा विष पी गई और कुछ नहीं हुआ । कुछ को अपनी शुद्धता पर विश्वास होता है वे दूध, घी आदि खाते ही नहीं सो वे भी कोलोस्ट्रल, मोटापे से दूर रहते हैं । पर कुछ अधकचरे और शंकालु लोग होते हैं जो न तो बाज़ार पर विश्वास करते है और न ही बाज़ार से बच सकते हैं । वे पैसा भी खर्च करते हैं, वे ही चीजें खाते भी हैं और चीं-चीं भी करते रहते हैं । ऐसे शंकालु लोगों का कोई इलाज नहीं है । उनका तो विनाश होकर ही रहेगा । कृष्ण ने ऐसे ही लोगों के लिए कहा है- संशयात्मा विनश्यति । इसमें कोई क्या कर सकता है ।
महाराज चौपटादित्य का उत्तर सुनकर बेताल की खोपड़ी के टुकड़े-टुकड़े हो गए ।
८-४-२०१०
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
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Jhootha Sach
वाह गुरुदेव, वाह क्या खूब उत्तर दिया चौपतादित्य ने.... इन्हें तो भारत सरकार में कैबिनेट सेक्रेटरी होना चाहिये..या फिर वित्त मन्त्री..
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