Apr 19, 2010

चोगा, टोपी और बर्बरता

जयराम रमेश जी,
जय राम जी की । आप २ अप्रेल को भोपाल आए, वन अधिकारियों के दीक्षांत समारोह में डिग्रियाँ बाँटने के लिए । आजकल तो तथाकथित महँगे अमरीकी पैटर्न स्कूल वाले, प्ले ग्रुप वाले बच्चे तक का ग्रेज्यूएशन समारोह करने लग गए । यह तो खैर असली का दीक्षांत समारोह था ।

जब आपका दीक्षांत समारोह हुआ होगा तब तो आप बड़ी अदा से चोगा पहन कर गए होंगे और फ़ोटो भी खिंचवाया होगा । हमने भी कोई अड़तालीस बरस पहले दीक्षांत समारोह में भाग लिया था । टोपी तो नहीं थी पर चोगा ज़रूर था । सो फ़ोटो भी खिंचवाया और कोई दसेक बरस तक बड़े अंदाज में दीवार पर टाँग कर भी रखा । इसके बाद जब एम.ए. की डिग्री लेने गए तो यूनिवर्सिटी वालों ने चोगे का फैशन ही ख़त्म कर दिया सो हम डिग्री लेने ही नहीं गए । डाक से ही मँगवा ली दस रुपए भेज कर । अब तो हम, हमारे बच्चे और बहुओं की ही इतनी डिग्रियाँ हो गईं कि दीवार पर टाँगने की लिए जगह ही नहीं बची । इन भोपाल वालों ने अभी तक चोगा और टोपी लागू कर रखे हैं और वह भी राष्ट्रवादी पार्टी भाजपा के शासन में । हमें लगता है कि कहीं आपने भाजपा के इस राष्ट्रवाद की पोल खोलने के लिए तो स्टेज पर ही चोगा नहीं उतार फेंका ?

वैसे भोपाल में भी गरमी कोई कम नहीं पड़ती पर आपके लिए तो वहाँ स्टेज पर कूलर या ए.सी. का इंतज़ाम होगा । हमने तो गरमी में भी नेताओं को सूट पहने देखा है । हमारी बात और है हम तो गर्मियों में घर पर बस एक लुंगी में रहते हैं । भले ही लोग हमें असभ्य कहें । आजकल सलमान खान के शर्ट उतारने के कारण स्टेज पर कपड़े उतारने का भी फैशन चल पड़ा है । गाँव में तो कहा जाता है कि सबसे बड़ा कौन ? सबसे बड़ा नंगा । राजनीति में ही देख लीजिए जो नंगई करता है उसकी पूछ ज्यादा होती है । नंगे से तो कहते हैं भगवान भी डरता है । धोती के भीतर तो सभी नंगे होते हैं पर मंच पर कपड़े उतारना बड़े साहस का काम है । हम तो क्या बताएँ, चालीस बरस मास्टरी की पर कभी क्लास में सोने का साहस नहीं कर सके । कभी मंच पर कविता भी पढ़ी तो बड़ी शालीनता से । और हमारे ही कई साथी मंच पर ही पी लेते थे और कभी-कभी तो मंच पर ही उलटी भी कर देते थे । वे अभी तक कवि-सम्मेलनों से पैसे कूट रहे हैं और हम हैं कि केवल लिखते हैं । ठीक भी है, साहस के बिना कुछ नहीं होता ।

आपने चोगे को गुलामी और बर्बरता का प्रतीक बताया । अंग्रेजों की सीधी गुलामी तो खैर अब नहीं है पर अब वह हमारे दिमागों में घुस गई है । हमें अपने देश का कुछ भी अच्छा नहीं लगता और बाहर का गोबर भी आदरणीय समझते हैं । तभी आपको याद होगा हमारे एक मंत्री जी हालेंड से गोबर का आयात करने के लिए समझौता कर आए थे । हमें आपके बयान के बाद यह भी डर था कहीं कोई यह न कह दे कि इस बयान से ईसाइयों की धार्मिक भावना आहत हुई है । और मज़े की बात देखी कि उसके अगले दिन ही एक पादरी महोदय का बयान आ गया और आप भी उस बयान के बाद चुप हो गए । अच्छा किया, नहीं तो क्या पता थरूर वाली हालत हो जाती । कहा भी गया है कि सबसे भली चुप । आस्कर फर्नांडीज को देख लीजिए चुपचाप अपना काम कर रहे हैं और हर हालत में मज़े में रहते हैं ।

वैसे जहाँ तक चोगों के अत्याचारों की बात है तो कोई भी धर्म इससे मुक्त नहीं है । कोई उन्नीस तो कोई बीस । सारे योरप में लाखों लोगों को धर्म विरोधी कह कर मारा ही गया था । भारत में ईसाई और मुस्लिम क्या लोग अपनी मर्जी से बने हैं ? सभी धर्मों के ठेकेदार लम्बे चोगे ही पहनते हैं । चोगों के नीचे बहुत कुछ छुप जाता है । नोट, चाकू और बंदूक तक । और जहाँ तक चरित्र की बात है तो हजारों पादरी बच्चों के यौन शोषण के चार्ज भुगत रहे हैं, सजा का पता नहीं, होगी या नहीं । फिर भी भारत एक धर्म निरपेक्ष देश है इसलिए हम केवल अपने धर्म को ही गाली निकाल सकते हैं । किसी और धर्म की सच्ची गलती भी नहीं गिना सकते ।

हमारे यहाँ तो प्राचीन काल में बच्चे आश्रमों में एक लँगोटी लगा कर ही शिक्षा पूरी कर लेते थे । न गुरुओं को चोगों की ज़रूरत थी और न बच्चों को । आज तो निजी स्कूल प्ले ग्रुप के बच्चों तक का टाई से गला घोंट देते हैं ।

आगे आपने एक बात बड़ी मजेदार कही कि टोपी की क्या ज़रूरत है । टोपी तो कार्यक्रम के अंत में केवल उछालने के काम आती है । जहाँ तक अपनी टोपी उछालने की बात है तो क्षमा किया जा सकता है पर आज कल तो लोग दूसरों की टोपी उछालने में ज्यादा रुचि लेते हैं । इसीलिए आजकल नेता लोग टोपी नहीं पहनते हैं । पर उछालने वालों को टोपी नहीं मिलती तो वे संसद में कुर्सियाँ ही उछालने लग जाते हैं । अब भी टोपी केवल वे नेता ही पहनते हैं जो लोगों को इस भ्रम में रखना चाहते हैं कि इसके नीचे अभी तक बाल हैं, मैं अभी तक पूरी तरह गंजा नहीं हुआ हूँ । जिनके सिर पर काले, घने, चमकदार बाल हैं वे बालों का स्टाइल बिगड़ जाने के डर से टोपी नहीं पहनते । वे अपनी जेब में कंघा रखते हैं ।

कभी सेवादल का कार्यक्रम हो तो अध्यक्ष को दिखाने के लिए स्वयंसेवक टोपी पहनते हैं, भाजपा वाले संघ के कार्यक्रम में टोपी पहनते है, मुलायम जी को लोहिया के चक्कर में कभी-कभी साइकल पर बैठ कर रैली निकालने के समय पहननी पड़ती है । बाकी सभी दल टोपी की इस बंदिश से मुक्त हैं ।

वैसे हमारा तो यह कहना है कि ज्ञान न तो डिग्री में है और न डिग्री टोपी और चोगे में है । सच्चा ज्ञान तो कर्म में है । आप फोरेस्ट की डिग्री लेने वालों को यह समझाते कि वनों को कटने मत देना, वनों और वन्य जीवों का सरंक्षण करना । पर असलियत तो यह है कि जब नेता ही रिश्वत लेकर वनों की अवैध कटाई करवाते हैं तो वन अधिकारी बहती गंगा में हाथ क्यों नहीं धोएँगे ।

आप की चोगे वाली बात पर हम तो अपना एक शे'र अर्ज़ करना चाहेंगे-
ऊपर से जो ठहरी दीखे, झील वही तूफ़ानी है ।
लम्बे चोगे, उजली दाढ़ी करतूतें शैतानी हैं ।

५-४-२०१०

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Jhootha Sach

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