Apr 20, 2010

आल इन वन

चौपट नगरी में वीकएंड की रात का दूसरा पहर बीत चुका है । चौपट महल के रखवाले ऊँघने लगे हैं । पर महाराज की आँखों में नींद नहीं । सारे सुखों को त्याग कर महाराज कक्ष से बाहर निकले । दबे पाँव चारदीवारी फाँदकर कर जनपथ पर आ गए और छुपते-छुपाते संसद के पिछवाड़े को जाने वाली पगडंडी पकड़ ली । दीवार तक पहुँचने पर चार ईंटें हटाकर गुप्त मार्ग से प्रवेश करके संसद के कुँए के पास जा निकले ।

बड़ी सावधानी से कुँए से 'सत्य का शव' निकाला और कंधे पर डाल कर गुप्त मार्ग से बाहर निकलने लगे । तभी शव में स्थित बेताल बोल उठा- राजन, जब सारी चौपट नगरी वीकएंड मनाती है तब तुम क्यों सारे सुखों को त्याग कर सत्य के शव को ठिकाने लगाने के लिए चल पड़ते हो ? जब कि तुम अच्छी तरह से जानते हो यह सत्य बड़ा चीमड़ है और किसी न किसी बहाने तुम्हारे चंगुल से निकल जाता है । आज फिर तुम इसे उठा कर चल पड़े हो ।

महाराज कुछ नहीं बोले तो बेताल ने कहा- पर तुम्हारी भी क्या गलती । राजा को हर समय सत्य के उठ खड़े होने का डर सताता रहता है । उसके लिए चैन की नींद सोना मुश्किल हो जाता है । मुझे तुमसे पूरी सहानुभूति है । तुम्हारा मन बहलाने और श्रम भुलाने के लिए, लो मैं तुम्हें एक कहानी सुनाता हूँ ।

सेवानगर में एक सेवक रहता था । वैसे तो उसका नाम सेवाराम था पर वह आपने को सेवा सिंह कहता था । सेवा सिंह इसलिए कि कुछ तो उसका स्वास्थ्य अच्छा था दूसरे बचपन में पढ़ाई में कमज़ोर होने के कारण उसने आपने समवयस्कों के बीच स्वयं को दादागीरी के बल पर स्थापित भी कर लिया ।

सेवा सिंह का जीवन बड़ा रोमांचक रहा । उसे किसी के नीचे काम करना अच्छा नहीं लगता था । इसलिए उसने अपना स्वयं का काम शुरु किया । सबसे पहले वह सिनेमा हाल पर टिकटों का ब्लेक किया करता था मगर जब से टीवी पर सीडी से सिनेमा देखने का चलन शुरु हुआ तो सिनेमा हाल बंद होने लगे तो उसका धंधा कहाँ से चलता ।

इसके बाद उसने देसी दारू का धंधा शुरु किया । उसका मानना था कि इससे देसी तकनीक का विकास होगा, विदेशी मुद्रा की बचत होगी, अपने आसपास के कुछ लोगों को रोजगार भी दिया जा सकेगा और सबसे बड़ी बात कि आज के टेंशन के ज़माने में सस्ते में लोगों का टेंशन दूर कर सकेगा । वैसे वह किसी का जायज़ हक़ मारने के पक्ष में भी नहीं था सो नेताओं और पुलिस वालों को पहले तोड़ की बोतल गिफ्ट कर देता था । धीरे-धीरे उन लोगों की माँग बढ़ती गई तो मुनाफा कम होने लगा सो सेवा सिंह ने अपना धंधा बदल लिया ।

तीसरा धंधा उसने पिछड़े इलाकों से लड़कियाँ उठवाने का किया । यह काम भी वह सेवा मानकर ही करता था । इससे माँ-बाप की दहेज़ की समस्या हल हो जाती थी और धंधे में जम जाने के बाद लड़कियाँ अपने घर वालों को कुछ भेजने भी लगती थी जिससे उनके घर की अर्थव्यवस्था भी सुधर जाती थी । और आज के ज़माने में बदरंग होते जा रहे जीवन में कुछ उल्लास का संचार भी हो जाता था । पर चूँकि उसका यह धंधा कुटीर स्तर पर चलता था इसलिए लोग उसे अच्छा नहीं मानते थे और फिर एड्स वाले भी बिना बात हल्ला मचाते थे सो पुलिस वालों ने उसे सहयोग नहीं दिया । और वह धंधा भी सेवा सिंह को बंद करना पड़ा ।

अंत में उसने अपने घर पर ही जुआ खिलाने का काम शुरु किया । कुछ दिन तो चला पर जब से लोग घर पर बैठे-बैठे ही मोबाइल पर सट्टा और शेयर का धंधा करने लगे तब से उसे भी छोड़ना पड़ा । राजनीति में भी जाने की कोशिश की पर लोगों ने अपना खुद का तंत्र इतना विकसित कर लिया है कि जेल में बैठे-बैठे ही सुपारी दे देते हैं, किसी भले उम्मीदवार को फोन पर धमका कर ही नाम वापस करवा देते हैं तो उस जैसे ज़मीनी कार्यकर्ता के भाव गिर गए ।

हे राजन, क्या तुम ऐसे पुरुषार्थी, मेहनती और सेवाभावी व्यक्ति की सहायता करने के लिए कुछ नहीं कर सकते ? यह आदमी दिल का बुरा नहीं है । जो काम करता है उसे बड़ी सेवा भावना से करता है । पर क्या किया जाए वह इन कामों के अलावा कुछ और धंधा जानता भी तो नहीं ।

महाराज चौपटदित्य ने कहा- मुझे तो यही आश्चर्य है कि ऐसा गुणी आदमी अब तक देश के चर्चित और भद्र लोगों में शामिल कैसे नहीं हो पाया । उसे चाहिए कि जैसे भी हो कुछ लोगों को इकठ्ठा करके क्रिकेट की एक टीम बना ले । टीम जीते या नहीं इससे कोई फर्क नहीं पड़ता पर उसकी लड़कियाँ सप्लाई करने, दारू परोसने और जुआ खिलाने और टिकटों का काला धंधा करने की सभी योग्यताओं का पूरा-पूरा सदुपयोग हो जाएगा । इससे वह भद्र जनों में तो तत्काल ही शामिल हो जाएगा । हो सकता है कि इस खुराफात-खेल की राजनीति के समय में मंत्री भी बन जाए ।

महाराज चौपटादित्य का उत्तर सुनकर बेताल की खोपड़ी के टुकड़े-टुकड़े हो गए ।

१८-४-२०१०

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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
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Jhootha Sach

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