Apr 19, 2010

बड़े बेआबरू होकर

थरूर जी,
जय श्रीराम । यह तो होना ही था । हमें तो पहले ही लग रहा था कि यह कढ़ी तो बिगड़ने वाली है । आप भले ही मंत्री पद के नशे में समझ नहीं पाए हों । मंत्री पद तो गया ही और इज्ज़त भी यदि आप उसे कोई काम की चीज़ समझते हों तो । खैर, अब मज़े से ट्विट्टर पर टर्राइए, दुबई, कनाडा कहीं भी जाइए, इश्क फरमाइए, केटल क्लास से मुक्ति मिली, फाइव क्या फिफ्टी स्टार में रहिए । कोई पूछने वाला नहीं है । वैसे जब कोई टोकने वाला हो तो नियम तोड़ने में अधिक मज़ा आता है । वर्जित फल ही तो ललचाता है । खैर, जब मंत्री पद ही चला गया तो फिर पार्टी के सुहाग का ही क्या चाटना । ज्यादा से ज्यादा कांग्रेस आपको पार्टी से निकाल सकती है पर एम.पी. की सुविधाएँ, तनख्वाह और उसके बाद पेंशन तो छीन नहीं सकती । मज़े से ए.सी. डिब्बे में ट्रेन में यात्रा कीजिए और हम तो कहते हैं कि एक अच्छी सी ट्रेन छाँट लीजिए और उसमें से उतरिए ही नहीं । कौन टिकट लगनी है । दिल्ली वाला बँगला किराए पर चढ़ा दीजिए ।

हमारे पास सुझावों की कमी नहीं है । आप भले ही बोर हो जाएँ । खैर, जैसे बेताल विक्रमादित्य को कहानी सुनाता है वैसे ही हम भी आपको एक कहानी सुनाते हैं । और इसके बाद हम कोई प्रश्न पूछ कर आपको असमंजस में भी नहीं डालेंगे । तो कहानी सुनिए ।

एक गाँव का लड़का था । कम पढ़-लिखा और सीधा-सदा । उसकी शादी शहर की एक लड़की से हो गई । लड़का तो अपनी गाँव वाली बोली बोलता था पर वह तो शहर वाली हिन्दी छाँटती थी । कई दिन हो गए । लड़का परेशान । बात-बात में कहती- समझ गए, क्या समझे ?
वैसे ऐसे प्रश्नों का कोई उत्तर नहीं होता । ये केवल तकिया कलाम की तरह होते हैं । एक दिन लड़का परेशान हो गया और बोला- समझ गया । लड़की के लिए यह पहली बार हो रहा था । उलट कर बोली- क्या समझ गए ? लड़का बोला- यह समझ गया कि तू मेरे नहीं रहनी ।

सो प्यारे लाल, हम तो तभी समझ गए थे जिस दिन आपने अंग्रेजी छाँटनी शुरु कर दी थी । अब आप को क्या बताएँ, अब तो काम हो ही गया । पर याद रखिए, जैसा देश वैसा भेस । बोली-बानी देसी ही अच्छी लगती है आम आदमी को । भले ही परदे के पीछे कुछ भी कीजिए पर बाहर से लम्बा और उजला चोगा रखिए । लोग भले की खुद पक्के हरामी हों पर अपने नेता को दूध का धुला देखना चाहते हैं । धार्मिक व्यक्तियों के पास जाने वाले खुद भले ही जवान भक्तिनों को घूरने और पटाने जाते हों पर भगत जी की टेढ़ी नज़र पर पूरा ध्यान रखते हैं । और कभी ज़रा सी भी कोई सी.डी. जारी हो जाए तो वे ही भक्तगण गुरुजी के पोस्टरों को जूते मारने लग जाते हैं ।

एक किस्सा और सुन लीजिए । अब आपको कौन सी मंत्रालय जाने की ज़ल्दी है और हमें भी आप जैसे महान लोगों को पत्र लिखने के अलावा और कौन सा काम है । भारत के एक बुद्धिजीवी राज्य में एक पंडित जी शादी करवा रहे थे । पंडित जी भी कौन से यजमानों से कम थे । आधे से ज्यादा बराती दारू में धुत्त । और पंडित जी भी टुन्न । फेरे करवाकर बोले- अब छोरा-छोरी दोनों उठके थापे के आगे जाओ । कोई एक बराती बोल्या- पंडित जी फेरा तो एक कम लगवाया दीखे । पंडित बोले- अरे भाई, रुकनी होगी तो इतने फेरों में ही रुक ज्यागी ।

सो वैवाहिक जीवन का गणित भी ऐसा ही होता है । टिकना होता हो तो बेमेल विवाह भी सारी ज़िंदगी टिक जाता है । नहीं तो अच्छा-भला अपनी मर्जी से किया प्रेम-विवाह भी नहीं टिकता । आपका पहला विवाह भी प्रेम विवाह ही था । पूरे पच्चीस बरस चला । भगवान ने दो अच्छे से बच्चे भी दिए । हमारे यहाँ गृहस्थ आश्रम पच्चीस बरस का ही तो माना गया है । फिर तो बच्चों को सब कुछ सौंपकर सन्यास की तैयारी करने वाला वानप्रस्थ आ जाता है । आप ने भी दूसरी शादी पचास बरस की उम्र में मतलब कि वानप्रस्थ की उम्र में की । बच्चे भी क्या सोचते होंगे । हमारे हिसाब से तो आपको बच्चों की शादी करके बहू से सेवा करवानी चाहिए थी और फिर पोते-पोतियों को खिलाना चाहिए था । पर यह सुख उनकी किस्मत में नहीं होता जो हमेशा अपने ही मज़े की सोचते रहते हैं ।

आपने दूसरी शादी २००७ में ५१ बरस की उम्र में की । यह भी कोई शादी की उम्र है ? और आपकी दूसरी पत्नी भी कौनसी षोडशी होगी । वह भी खेली-खाई होगी । इस पर भी एक किस्सा सुन लीजिए । एक व्यक्ति ने बड़ी उम्र में शादी की । लड़की भी गाँव की, बड़ी उम्र की थी । पति ने कहा- हम हनीमून मनाने चलेंगे । हनीमून पर पहुँचने के तीन-चार दिन बाद पत्नी ने कहा- वह हनीमून कब मनाएंगे ? तो पति ने कहा- अब तक और क्या माना रहे थे । तो पत्नी ने कहा- इसके लिए इतनी दूर आने की क्या ज़रूरत थी । यह तो हम खेत में ही मना लेते थे । आप सेर तो वह सवा सेर से कम क्या होगी । सो उस शादी का अंत ऐसा ही होना था । सो या तो तलाक हो गया दीखे या नहीं हुआ तो हो जाएगा ।

अब आप तीसरी महिला मित्र के साथ देखे जाते हैं । वह भी कौन सी बच्ची है । दुबई में अपना कारोबार चलाती है । लम्पटता में आदमी की बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है । दशरथ की बुद्धि भी कैकेई के प्रति उनके अति अनुराग के कारण ही भ्रष्ट हो गई और राम और सारे अयोध्या को कष्ट उठाना पड़ा था । और अब आप भी ऐसे ही मोह के कारण चक्कर में पड़े । तभी तो ऐसी स्थिति के लिए ही कबीर ने नारी को माया और ठगिनी कहा है । पर ऐसी माया से वही बच सकता है जिस पर या तो भगवान की कृपा होती है या फिर जिसे अपनी पत्नी और बच्चों से सच्चा प्यार होता है ।

हमारा तो कहना है कि अब भी आप अपनी पहली पत्नी को मना लें और शांति का जीवन बिताएँ ।

भगवान आपको सद्बुद्धि प्रदान करें ।

पद-इज्ज़त दोनों गए, तबियत हो गई खुश्क ।
अब जी भर फरमाइए, दुनिया भर में इश्क ।
दुनिया भर में इश्क, इश्क के खेल निराले ।
बड़े-बड़ों के इसने खूब जुलूस निकाले ।
कह जोशी जो यहाँ-वहाँ पर चोंच लड़ाएँ ।
आज नहीं तो कल सड़कों पर जूते खाएँ ।

१९-४-२०१०

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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication.
Jhootha Sach

2 comments:

  1. बहुत धांसू लेखन शैली है आपकी। पढ़कर मजा आया।

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  2. सुबह से ही कुछ अच्‍छा पढ़ने को फड़फड़ा रहे थे, इसी कारण पोस्‍ट भी लिख मारी कि क्‍या ब्‍लाग जगत चुक गया। लेकिन शाम होते-होते ब्‍लाग जगत में जान आ गयी है ऐसा लगने लगा है। बहुत ही शानदार रचना, बधाई।

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