Aug 26, 2010

तोताराम के तर्क : बैट-विसर्जन

दाह संस्कार के बाद भी बात तब तक पूरी नहीं होती जब तक कि मृतक की अस्थियाँ गंगा में विसर्जित नहीं कर दी जाएँ । इसी तरह पूजा के बाद गणेश या दुर्गा की मूर्तियाँ भी किसी नदी या तालाब में विसर्जित की जाती हैं । पी.टी. परेड भी विसर्जन के बाद ही विधिपूर्वक समाप्त होती हैं । हमारे लिए ऐसा कोई मौका नहीं था । हम तो लंका में भारतीय टीम की न्यूजीलैंड और लंका से शर्मनाक हार के बाद क्रिकेट से पीछा छुड़ाने के लिए विसर्जन की सोच रहे थे । वैसे क्रिकेट के बारे में चिंता करने की जिम्मेदारी तो भारतीय संसद की होती है जिसने पिछली बार वेस्ट इंडीज में भारतीय टीम की हार के बाद संसद के कुएँ में ही डूब कर मरने की सोच ली थी । यह तो शुक्र था कि कुएँ में पानी ही नहीं था । पानी तो पूरी संसद की ही आँखों में नहीं है, कुएँ का ही क्या रोना रोएँ । अबकी बार तो बेचारे गरीब सांसद अपनी दिहाड़ी बढ़वाने में ही दिन-रात एक किए हुए थे । क्रिकेट का तो ख्याल ही नहीं रहा ।

अब क्रिकेट के लिए रोने वाला कोई नहीं था तो यह जिम्मेदारी हम पर ही आ पड़ी । हमारे पास न तो ड्रेस थी और न ही विकेट, पैड, बैट - किसका विसर्जन करते । किसी तरह ढूँढ़-ढाँढ़ करके हमें पोते-पोतियों का प्लास्टिक का एक बैट मिला उसी को प्रतीकात्मक रूप से क्रिकेट-विसर्जन के लिए लेकर घर से बाहर निकले मगर बरसात बहुत तेज थी सो सड़क के पास के बरसाती नाले में ही उस बैट को फेंक कर घर पर आकर स्नान किया और शुद्ध हुए ।

शुद्ध होकर बैठे ही थे कि तोताराम आ गया । उसके हाथ में वही बैट था । बोला- पता नहीं, किसने बच्चों का यह बैट बाहर फेंक दिया । लगता है अपना ही है । इसे अंदर रख ।

हमने कहा- तोताराम, अब इस बैट को हम घर में नहीं रखेंगे क्योंकि हमने इसका भारतीय क्रिकेट के प्रतीक रूप में विसर्जन कर दिया है । तोताराम को बर्दाश्त नहीं हुआ । कहने लगा- ज़रा-ज़रा सी बातों पर इतने बड़े और कड़े फैसले नहीं लिए जाते । अरे, खेल में हार-जीत तो होती ही रहती है । अभी भी सचिन का सर्वाधिक रन बनाने और सबसे अधिक मैच खेलने का रिकार्ड हमारे पास ही है । हमारे क्रिकेट बोर्ड के पास सबसे ज्यादा धन है । पिछले दिनों ही धोनी को दो सौ दस करोड़ का विज्ञापन का कांट्रेक्ट मिला है । बता, दुनिया के किस क्रिकेटर का ऐसा शानदार रिकार्ड है । आदमी प्राण छोड़ दे, देश छोड़ दे, घर-बार छोड़ दे, नौकरी छोड़ दे मगर धर्म नहीं छोड़ता । क्रिकेट हमारे देश का धर्म है । भले ही इनिंग से हारें, वन डे में दो सौ रनों से हारें, आठ-दस विकेट से हारें मगर अपने क्रिकेट-धर्म को नहीं छोड़ेंगे । तेरे जैसे मनहूसों के चक्कर में ललित मोदी और शरद पवार की क्रिकेट के लिए की गई तपस्या और बलिदानों को व्यर्थ नहीं जाने देंगे ।

हमने कहा - इन रिकार्डों का क्या चाटें ? ये सब अपने लिए खेलते हैं । इन्हें टीम और देश से कोई मतलब नहीं है । टीम तो १९८३ में थी उन नए-नए, सीधे-सादे छोरों की जो बिना अनाप-शनाप पैसों और प्रोत्साहन के ही वर्ल्ड कप ले आए । और एक ये हैं कि विज्ञापन करने और पबों में जूते खाने से फुर्सत नहीं है । इनके भरोसे चलने वाली क्रिकेट का तो विसर्जन ही ठीक है ।

तोताराम ने कहा- याद रख, धर्म की जड़ सदा हरी रहती है । तू लाख विसर्जन कर दे पर क्रिकेट का यह बिरवा कभी नहीं मुरझा सकता । स्फिंक्स की तरह फिर अपनी राख से उठ खड़ा होगा । महाभारत में भीष्म की शर-शैय्या और द्रोण व कर्ण के मरने के बाद जब शल्य को कौरवों का सेनापति बनाया गया तब संजय ने धृतराष्ट्र से कहा है- ‘आशा बलवती राजन्’ ।
लंका में न्यूजीलैंड के खिलाफ अस्सी रन बनाए तो क्या, श्री लंका के खिलाफ उसमें तीस रन की वृद्धि हुई कि नहीं ? इसी तरह चलते रहे तो दस मैचों के बाद वन डे में फिर अढ़ाई सौ से ऊपर चले जाएँगे । मार्केट का ट्रेंड देखकर शेयरों के भाव बढ़ते हैं और ट्रेंड सुधार की तरफ है इसलिए चिंता की बात नहीं है ।

हमने कहा- तेरा आशावाद संजय जैसा है और उस पर विश्वास कोई धृतराष्ट्र ही कर सकता है और यह सब जानते हैं कि धृतराष्ट्र अंधा था ।

खुद को फँसते देख तोताराम पलटी खा गया, कहने लगा- कोई बात नहीं चाय तो पिला ।
हमने कहा- किस खुशी में ?
तो कहने लगा खुशी का क्या है-
गरज ये है कि पीने की नागा न हुई
न हुई जीत तो क्या हार के गम में पी ली ।

२३-८-२०१०
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)

(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication.Jhootha Sach

No comments:

Post a Comment