Aug 23, 2010

प्रधान मंत्री श्री लालू प्रसाद जी

लालू जी,
बधाई हो । भले ही आपकी पार्टी के राष्ट्रीय दर्जे पर संकट के बादल मँडरा रहे हों और लालटेन भक्-भक् कर रही हो । ना बिहार में और न ही दिल्ली में कोई पद । बधाई जैसा कुछ नहीं हो सकता । फिर भी आप प्रधान मंत्री बन गए, भले ही नाटक में ही सही । नाटक का भी एक मजा है । नाटक करते-करते भी आदमी खुद को वही समझने लगता है जिसका पार्ट वह लंबे समय से करता आ रहा है । हमारे एक मित्र हमेशा रामलीला में हनुमान का पार्ट किया करते थे तो लोग उन्हें हनुमान जी ही कहने लगे । एक सज्जन रावण का पार्ट किया करते थे सो उनका नाम भी रावण ही पड़ गया । एक आदमी नाटक में पागल का पार्ट किया करता था सो वास्तव में ही पागल हो गया । नाटक का भी महत्व होता है । यदि व्यक्ति सरल हो तो उल्टा नाम जपते-जपते भी वाल्मीकि हो जाता है । जब राम का खर-दूषण से युद्ध हुआ तो राम तो अकेले थे और राक्षस हजारों । सो राम ने माया रची तो राक्षस एक दूसरे में ही राम देखने लगे और आपस में राम-राम चिल्लाते हुए लड़ कर मर गए । उनके इस प्रकार राम-राम कहते लड़ मरने से भी उन्हें स्वर्ग प्राप्त हो गया ।

जब छोटे बच्चे स्कूल में पढ़ते हैं तो घर पर आकर मास्टर की एक्टिंग करते हैं । भले ही उनसे पढ़ने वाला कोई विद्यार्थी सामने न हो । वे सामने पड़ी घर की छोटी-मोटी चीजों को ही विद्यार्थी मान कर उन्हें डाँट-पीट और पढ़ा कर अपनी मास्टर बनने की कुंठा को पूरा करते हैं । बड़े होने पर जब कभी मास्टर जी क्लास से बाहर होते हैं तो कुछ साहसी बच्चे उनकी कुर्सी पर बैठ कर मास्टर बनने की इच्छा पूरी कर लेते हैं । सो कुछ समय संसद स्थगित होने पर आप भी प्रधान मंत्री बन ही गए । इस दौरान आप मनमोहन जी की कुर्सी पर जाकर बैठे या नहीं ? पहले भी आपने एक इंटरव्यू में कहा था कि आप प्रधान मंत्री बनना चाहते हैं पर अभी ऐसी क्या जल्दी है । तब आप रेल मंत्री थे और लोग आपको मनेजमेंट गुरु मानकर विदेशी कालेजों में भी बुलाने लग गए थे सो आप सोचते थे कि आपमें प्रधान मंत्री बनने की सभी विशेषताएँ हैं और कभी न कभी आप प्रधान मंत्री जरूर बनेंगे ।

पर अब वह आशावाद नहीं रहा । बिहार में नीतीश कुमार जम गए । पासवान से भी किसी प्रकार की मदद की आशा नहीं क्योंकि एक तो उनकी पार्टी ही लोकसभा में साफ़ हो गई । किसी तरह आपकी कृपा से फिर राज्य सभा में आए हैं । इतने दिन पहले वाले मकान का एक लाख रुपया किराया देना पड़ रहा था । अब उससे पीछा छूटा और उछल-कूद कर किसी तरह कैमरे में भी घुस ही जाते हैं । यदि फिर कभी दो-चार सीटें उन्हें मिल भी गईं तो वे खुद ही प्रधान मंत्री बनने के सपने देखने लग जाएँगे । पुरानी जनता पार्टी भी इसीलिए टूटी कि उसमें सभी प्रधान मंत्री बनना चाहते थे । काँग्रेस के अलावा सभी पार्टियों में आज भी वही हाल है । ‘जूतियों में दाल बँटती’ रहती है । और वे कभी कांग्रेस नहीं बन पातीं । कांग्रेस में भले ही मन ही मन कई प्रधान मंत्री बनना चाहते हैं पर सब अपनी औकात जानते हुए प्रकट में अनुशासित सिपाही बने रहते हैं और काम चलता रहता है ।

तो नाटक में ही सही आप प्रधान मंत्री बन ही गए । यदि व्यक्ति की कोई विकट इच्छा अधूरी रह जाती है तो उसकी मोक्ष नहीं होती और मर कर भी उसकी आत्मा भटकती रहती है और वह फिर सपने में लोगों को परेशान करती है । वैसे आपकी तो अभी उम्र ही क्या है ? और स्वास्थ्य भी बढ़िया है । आपने एक बार कहा भी था कि असली शेर तो आप ही हैं । आपके जैसी लाली किसी के भी चेहरे पर नहीं है । ठीक है, पर जीवन का क्या भरोसा । तभी कवियों ने कहा है कि 'काल करे सो आज कर ' । आपने प्रधान मंत्री की कुर्सी पर बैठ कर फोटो खिंचवाया या नहीं ? जब नाटक करने ही लगे थे तो हम तो कहते हैं कि आपको शपथ भी ग्रहण कर लेनी चाहिए थी । पहले तो आपको कई बार विदेश भी जाने का मौका मिला था पर अब आप भले ही किसी भी पद पर पहुँच जाएँ पर लोग आपको अपने यहाँ बुलाने में झिझकेंगे । क्या पता, आप वहाँ की संसद में जाएँ और मौका देख कर वहाँ के राष्ट्रपति की कुर्सी पर ही जा बैठें । खैर, कोई बात नहीं । लोग कुछ भी कहें एक बार तो झूठी-मूठी ही सही आत्मा तो शांत हुई । अब कोई भी प्रधान मंत्री शांति से अपनी कुर्सी पर बैठ सकेगा ।

पिछली बार जब बी.जे.पी. हार गई थी तो अडवाणी ने भी अपनी आत्मा की शांति के लिए एक छाया मंत्रीमंडल बनाया था । उन्होंने तो आपके प्रधान मंत्री बनने पर कोई ऐतराज नहीं किया ना ? वैसे एक छाया मंत्रीमंडल हमने और हमारे मित्र तोताराम ने भी बनाया था पर उसका कोई समाचार अखबारों में तो छपा नहीं सो हम तो कोई ऐतराज कर नहीं सकते । कैसे भी बने, पर बने तो सही प्रधान मंत्री । कई दिनों से वैसे भी कोई मज़ा ही नहीं आ रहा था अखबारों में ।

घोटाले, भ्रष्टाचार की खबरें भी कोई खबरें होती हैं ? यह तो रोजाना का किस्सा है । किसी भैंस के चरने, ब्याने और दूध देने की खबरें भी कोई खबरें हैं ? यदि किसी दिन भैंस चारा खाए और फिर भी दूध न दे तो भी खबर नहीं बनती । हाँ, भैंस चारा भी खाए और दूध भी न दे बल्कि मालिक का ही दूध निकाल ले तो कुछ खबर बनती है । यदि संसद अपनी तनख्वाह एकमत से बढ़ा लेते है तो क्या खबर हुई । खबर तो तब हो जब कोई सांसद कहे कि हम तो सेवक हैं हमें इतनी अधिक तनख्वाह नहीं चाहिए । बीस तीस हजार ही बहुत है । पर ऐसी खबर कभी नहीं आने की अब । पहले राजेन्द्र प्रसाद जी ने अपनी तनख्वाह दस हजार से घटा कर तीन हजार कर ली थी पर वह जमाना और था । अब तो नेताओं को अपने कर्मों पर तो विशवास ही नहीं, वे तो सोचते हैं कि जितनी ज्यादा तनख्वाह उतनी ही इज्ज़त । वास्तव में वे नहीं जानते कि आज भी लोग ज्यादा पैसे वाले की ईमानदारी पर शक करते हैं ।

बहुत बातें हो गईं । पत्र भी लंबा होता जा रहा है । आप तो एक किस्सा सुनिए । एक किसान था । काफी उम्र होने पर भी उसकी शादी नहीं हुई । अच्छा स्वस्थ और भारी भरमक शरीर था । शादी नहीं हुई पर मौत तो अटल है सो आ ही गई कुँवारे को ही । लोग उसे श्मशान ले जाने लगे । श्मशान दूर था । वजन के कारण कंधा देने वाले थक गए । तभी सामने एक टीला आ गया तो एक कंधा देने वाले ने लंबी साँस लेते हुए कहा- टीला आ गया । तभी मुर्दा अर्थी पर ही उठ बैठा और पूछने लगा- क्या कहा, टीका आ गया ? कंधा देने वाले ने कहा- नहीं टीका नहीं, टीला आ गया । मुर्दे ने निराश होकर कहा- टीका नहीं आया ? खैर, कोई बात नहीं । और फिर मर गया ।

ऐसे ही एक मियाँ जी का किस्सा है । वे भी बूढ़े हो गए मगर शादी नहीं हुई । एक दिन वे थके हुए अपनी टूटी हुई चारपाई पर बैठे ऊँघ रहे थे कि पड़ोस के एक बच्चे ने आकर जोर से आवाज लगाई- मियाँ जी, बगल वाले की मुर्गी आपके गेहूँ चुग रही है । मियाँ जी ने आँखें बंद किए हुए ही कहा- कोई बात नहीं । चुगने दे । गेंहूँ का क्या है । अरे इस बहाने घर में कोई जनाना पैर तो पड़ा ।

सो आप प्रधान मंत्री बने तो, नाटक में ही सही । और आदमी के भाग्य और देश के दुर्भाग्य का क्या पता है कुछ भी हो सकता है । जब देवेगौड़ा, इन्दरकुमार गुजराल, चंद्रशेखर, चरणसिंह प्रधान मंत्री बन सकते है तो आप क्यों नहीं । चलो उस दिन से पहले फिलहाल यही सही । अंग्रेजी में कहें तो- 'सम थिंग इज बेटर देन नथिंग' ।

२१-८-२०१०
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1 comment:

  1. अरे भाई मजा आ गया श्री लालू प्रसाद जी (स्वप्निल प्रधानमंत्री ) के बारे में पड़कर. मैंने भी व्यंग लिखा है पढ़ने के लिया कहूँगा : हम तो झंडोबाम हुवे बाबु तेरे चक्कर में ............. पगार का मसला है भाई ... नोकरी खो बैठे.

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