Aug 8, 2010
मणिशंकर का शुभचिंतन
मणिशंकर जी,
नमस्कार । आपने राष्ट्रमंडल खेलों की नाकामयाबी के लिए शुभकामना क्या प्रकट कर दी कि लोग आपको राष्ट्र-विरोधी तक कहने लगे । यह तो शुक्र मनाइए कि देशद्रोही नहीं कहा । पता है, देशद्रोह की सजा क्या है ? फाँसी । आप कोई अफजल तो हैं नहीं कि बात आगे खिसकती जाएगी ।
वैसे जहाँ तक शुभकामनाओं की बात है तो हम भी ऐसी ही शुभकामनाएँ किया करते हैं । किसी का काम बिगड़ते देखने का मज़ा ही कुछ और है । बालकनी में बैठकर लोगों को सड़क पर भीगते हुए देखना अच्छा लगता है । टी.वी में तो डूबने और भूकंप के दृश्य भी आनंद देते हैं । सो जब भारत की क्रिकेट टीम वर्ल्ड कप में आठवें स्थान पर आई थी तो हमें भी अच्छा लगा सोचा- चलो, अब तो शर्म के मारे ही खेलना छोड़ देंगे या बी.सी.सी.आइ. ही इन्हें नाकारा मान कर बाहर कर देगी मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ । हमारी इच्छा पूरी नहीं हुई । कुछ वर्षों बाद ट्वंटी-ट्वंटी का वर्ल्ड कप जीत लाए । और फिर से वही बीमारी चालू । अब लंका में पहला टेस्ट दस विकट से हार गए और दूसरे टेस्ट में भी जब लंका ने पहली पारी में ६४२ रन बना लिए तो हमें लगा कि बुरी तरह से हार जाएँगे मगर तमाशा देखिए कि अबकी बार लंका वालों ने इन्हें भी सात सौ से ज्यादा रन बना लेने दिए । यह सब संयोग नहीं है । हमें तो लगता है कि यह इस धंधे में लगे हुए सभी लोगों की मिलीभगत है । सबकी दुकान चलती रहनी चाहिए ।
कोई पूछने वाला हो पवार साहब से कि खेती छोड़ कर क्रिकेट में क्या कर रहे हैं ? अब कहते हैं कि काम का बोझ ज्यादा है इसे कम किया जाए जिससे कि वे क्रिकेट जैसे जीवनोपयोगी राष्ट्रीय महत्व के काम में ज्यादा समय दे सकें । उनसे कौन सी बोलिंग या फील्डिंग हो सकती है अब, पर क्रिकेट का पीछा नहीं छोड़ेंगे क्योंकि इसमें पैसा ही पैसा है । ललित मोदी को अपने बाप दादाओं के पुश्तैनी काम, उद्योग धंधों, से ज्यादा फायदा क्रिकेट में दीखता है । और फिल्म वाले भी चले आए इस फायदे के धंधे में । किसी नेता को राष्ट्रीय क्रिकेट में कोई बड़ा पद नहीं मिलता तो राज्य के क्रिकेट बोर्ड में ही घुस जाता है । अरुण जेटली से अपनी पार्टी तो सँभलती नहीं है पर क्रिकेट में ज़रूर टाँग अड़ाएँगे । अब अस्सी से ऊपर की विद्या, स्टोक्स हाकी संघ का चुनाव लड़ रही हैं । क्यों भई, कुछ खिलाड़ियों के लिए भी छोड़ोगे कि नहीं ।
आपका कहना ठीक है कि राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन में खर्च किये जा रहे पैसे से खिलाड़ियों को प्रशिक्षण दिया जा सकता था । आपको पैसे खर्च होने से ऐतराज नहीं है, ऐतराज है तो इसके खर्च किए जाने के तरीके से है । बस, यहीं हम आपसे सहमत नहीं हैं । हम तो कहते हैं कि यह खिलाड़ी का मनोरंजन या शौक उसका अपना निजी मामला है । जिसको खेलना है खेले और जिसको देखना है देखे । ऐसे कामों में सरकार को कोई मंत्रालय बनाने की क्या ज़रूरत है । मगर बंधु, जहाँ पैसा है वहाँ नेता पहुँच ही जाएगा । जैसे गुड़ के पास चीटियाँ । कोई मंत्रालय नहीं मिलेगा तो किसी गौशाला का चन्दा ही खायेगा मगर खाएगा ज़रूर । आपने भी तो जब मंत्री थे तो इन खेलों का विरोध नहीं किया । अब असफलता की कामना कर रहे हैं ।
आजकल जो भी काम हो रहा है वह जनता की भलाई के लिए नहीं वरन कमीशन खाने के लिए हो रहा है । यदि सड़कें बनवाए बिना ही पैसा कमीशन खाया जा सकता तो वैसा भी कर लिया जाता मगर इतना झूठ चल नहीं सकता इसलिए सड़कें बनवाई जाती हैं और पूरा पैसा लगाने के बाद भी फिर इतनी ज़ल्दी टूट जाती हैं । इसलिए कि सब इसमें खाते हैं । यदि सच और ईमानदारी होती तो सत्येन्द्र दुबे की चिट्ठी पर कार्यवाही की जाती और उसे इस तरह ठेकेदारों से मरने के लिए नहीं छोड़ दिया जाता । और अब पकड़ कर सजा भी दी गई तो दो साधारण लोगों को । कोई पूछे कि इन लोगों को दुबे से क्या परेशानी थी ? परेशानी थी तो बड़े ठेकेदारों को । उनका तो कहीं नाम ही नहीं है जिन्होंने सुपारी देकर दुबे को मरवाया था ।
वैसे आपने कामना की है कि बरसात इन खेलों को बिगाड़ दे तो क्या बरसात आपके हाथ में है ? जहाँ तक बरसात की बात है तो राजस्थान में कहावत है- 'मेऊ तो बरस्या भला, होणी हो सो होय' अर्थात बरसात हर हालत में अच्छी ही होती है हालाँकि अंग्रेजी में रेनी डे को अच्छा नहीं कहा गया है जैसे कि 'सेव फॉर रेनी डे' । बरसात मतलब कि संकट का समय । पर अपने यहाँ तो सोचते हैं कि यदि ज्यादा बरसात से फसल कम भी होगी तो कोई बात नहीं, कम से कम बरसात से जानवरों के लिए घास तो हो जाएगी ।
क्या आप सोचते हैं कि बरसात से यदि ये खेल असफल हो गए तो फिर कभी ऐसे आयोजन करवाए ही नहीं जायेंगे तो आपकी भूल है । सफल हों या असफल, आयोजन तो होंगे ही । यदि खर्चा नहीं किया जाएगा तो बाँटनवारे को रंग कैसे लगेगा । वैसे हमारी व्यक्तिगत राय पूछें तो हम तो सभी तरह के खर्चीले आयोजनों के खिलाफ हैं फिर भले ही वह किसी परियोजना का शिलान्यास या उद्घाटन ही क्यों न हो । अगर खाली जगह है तो उसमें खेती करवाओ । आपने भी मान लिया है कि अब इस समय और नहीं बोलेंगे । अब तो १५ अक्टूबर को जब खेल खत्म हो जाएँगे तभी मुँह खोलेंगे ।
वैसे इस देश में पैंतीस हज़ार करोड़ रुपए कोई खास मायने नहीं रखते । इतने रुपए के तो यह देश गुटके खाकर थूक देता है; बीड़ी, सिगरेट फूँक कर धुँआ में उड़ा देता है । आपको पता है, इससे ज्यादा का तो अनाज गोदामों में सड़ जाता है और किसी की जिम्मेदारी तय नहीं होती ।
जहाँ तक आपकी शुभकामना की बात है तो उसमें फिर भी कुछ उद्देश्य नज़र आता है । हम जो क्रिकेट टीम के हारने की कामना किया करते थे, हो सकता है कि उसमें भी कपिल के स्थान पर हमारे खुद के वर्ल्ड कप न ला पाने की कुंठा रही हो । इसलिए एक सच्चा शुभचिंतक बनने के लिए हम आपको एक सज्जन का उदाहरण देते हैं जिन्हें हमने खुद देखा है और उनकी शुभचिन्तना के सच्चे किस्से जानते हैं । उनकी शुभचिन्तना का क्षेत्र था शादी-विवाह के रिश्ते । यदि कोई सज्जन उन्हें शादी के लिए आए रिश्ते की बातचीत के समय बुला लेता था तो ठीक था, ज्यादा टाँग नहीं अड़ाते थे मगर किसी ने नहीं बुलाया या उनकी अनुपस्थिति का लाभ उठाकर रिश्ता तय कर लिया तो वे अपनी जेब से पैसा खर्च करके लडके/लड़की वाले के घर जाते थे और किसी न किसी बहाने उससे मिल ही लेते थे और मंथरा की तरह शक का बीज डालकर चले आते थे । इसके बाद भाग्य की बात या संबंधित लोगों की समझदारी की । पर वे ऐसे अवसरों पर अपना कर्म करने से कभी भी चूके नहीं । वैसे लोगों का कहना है कि इसी व्यस्तता के कारण वे अपने खुद के बेटे के लिए कोई रिश्ता नहीं ढूँढ सके ।
हमने क्रिकेट के लिए बहुत शुभकामनाएँ की हैं और कभी- कभी उनका प्रभाव भी हुआ है मगर हमने इनके बारे में कभी किसी को बताया नहीं । रामचरितमानस में कहा है कि युक्ति, मन्त्र, योग और तप का प्रभाव तभी होता है जब इन्हें छुपा कर किया जाए पर आपने तो अभी किया कुछ नहीं और अपने इरादों का ढिंढोरा पहले से ही पीट दिया । वैसे हम जानते हैं कि आपके पास बरसात को कंट्रोल करने की कोई विधि नहीं है फिर भी अब अगर राष्ट्रमंडल खेलों के समय बरसात ने काम बिगाड़ दिया तो कलमाड़ी जी आपकी ‘बाइ नेम’ शिकायत करेंगे और आपके पास सफाई देने के लिए कुछ भी नहीं होगा । इसलिए १५ अक्टूबर तक ही क्या, हो सके तो इस मामले पर पूरी तरह से चुप लगा जाइए जैसे कि भोपाल गैस मामले और अफजल मामले में सरकार ने चुप लगा रखी है । हम तो कहते हैं कि अब गुपचुप रूप से राष्ट्रमंडल खेलों में बरसात न हो इसके लिए यज्ञ करवाइए जिससे आपके लिए आगे और कोई चक्कर नहीं पड़े ।
बुजुर्गों ने यूँ ही नहीं कहा है कि सबसे भली चुप ।
३०-७-२०१०
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन ।
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Jhootha Sach
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बहुत सुन्दर प्रस्तुती ,दरअसल जरूरत है आज सिर्फ लिखने की नहीं बल्कि भ्रष्ट मंत्रियों के खिलाप कार्यवाही के लिए प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति पर एकजुट होकर दवाब बनाने की और उनके द्वारा कार्यवाही नहीं करने पर सामूहिक आत्मदाह तक करने की | जब तक जनता अपने जान पर खेलकर इन भ्रष्ट मंत्रियों को सबक नहीं सिखायेगी जनता यूँ ही लुटती रहेगी और देश और समाज का पतन होता रहेगा ,इन कुकर्मियों ने बद से बदतर बना दिया इस साधन संपन्न देश को लूटकर इनसे तो अंग्रेज अच्छे थे |
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