मतिअंध गंधी
आज आते ही तोताराम ने कहा- यार मास्टर, इन नेताओं को क्या हो गया है ? बिना सोचे-समझे जो मुँह में आया बोल देते हैं । नरेंद्र मोदी ने ( १२-७-२०१३ को रायटर द्वारा लिए गए एक इंटरव्यू में २००२ के दंगों के बारे में पूछे जाने पर- यदि कोई पिल्ला भी आपकी कार के नीचे आ जाए तो दुःख होता है ) मुसलमानों को 'पिल्ला' कह दिया और कल दिग्विजय सिंह ने २५-७-२०१३ को स्वयं को जौहरी और कांग्रेस की एक भली सांसद मीनाक्षी नटराजन को सौ टंच 'माल' कह दिया । किस सीमा तक गिर गया है राजनीति का स्तर !
हमने कहा-तोताराम, बिहारी का एक दोहा है -
रे गंधी मतिअंध तू अतर दिखावत काहि ।
करि फुलेल को आचमन मीठो कहत सराहि ।।
और इसी पीड़ा को संस्कृत के कवि ने इस प्रकार कहा है -
अरसिकेषु कवित्त निवेदनं
सिरसि मा लिख, मा लिख, मा लिख ।
यह जो हल्ला मच रहा है वह लोगों के भाषा अज्ञान के कारण मच रहा है । अब चुनाव आ रहे हैं और मुकाबला कांग्रेस और भाजपा में नहीं बल्कि कांग्रेस और नरेन्द्र मोदी में है । वैसे भी भाजपा में मोदी के अलावा और किसी के बोले हुए को आजकल सुन भी कौन रहा है ? इधर कांग्रेस में दिग्विजय सिंह जैसा परखी जौहरी तथा भाव और भाषा का धनी और कौन है ? और फिर प्रवक्ता होने के कारण बोलना उनकी विवशता है । यह बात और है कि दोनों ही मीठा कहकर सराहने वालों को इत्र को दिखा रहे हैं । भाषा की व्यंजना न समझने वाले इस समय में किसी भी साहित्यिक भाषा बोलने वाले के साथ ऐसा हो जाता है ।
बात १९७४ की है । हम स्टाफरूम में बैठे ऐसे ही सोच रहे थे कि कुछ अवसर होते हैं जब प्रायः उपेक्षित रहने वाले साधारण व्यक्ति के प्रति भी सबका ध्यान चला जाता है जैसे कि जन्म, विवाह, ट्रांसफर और मृत्यु । तभी हमारे मित्र शर्मा जी आ गए । हमने उसी भाव धारा में बहते हुए उनसे कह दिया- देखो शर्माजी, भगवान की क्या लीला है कि वह गधे को भी, एक दिन के लिए ही सही, हीरो बनने का अवसर दे ही देता है । और हमने वे चार अवसर गिना दिए ।
हमारे एक साथी जो हमारे दुश्मन तो नहीं हैं लेकिन उनकी विनोदवृत्ति ने उस दिन दुश्मन की भूमिका निभा दी । बोले- देखा शर्माजी, जोशी आपको गधा कह रहा है । हुआ यूँ कि शर्मा जी का कीनिया के एक इन्डियन स्कूल में सलेक्शन हो गया था और तीसरे दिन वे रिलीव होकर जाने वाले थे । हमें इस बात का पता नहीं था । इस सन्दर्भ में यह मजाक इतना फिट बैठा कि उन्होंने प्राचार्य से हमारी बाकायदा शिकायत की । खुद हमें ज़िंदगी भर अपना दुश्मन मानते रहे और प्राचार्य महोदय हमें ‘लूज़ टाक’ करने वाला । किसी ने हमारा कोई स्पष्टीकरण नहीं सुना ।
इसी तरह १९९५ का दिल्ली कैंट के केन्द्रीय विद्यालय का एक वाकया है । ऐसे ही स्टाफ रूम में हिंदी ज्ञान की चर्चा चल रही थी । हमने कह दिया- उत्तर प्रदेश का तो कुत्ता भी हिंदी जानता है । बस, फिर क्या था, उत्तर प्रदेश के हमारे एक युवा साथी भड़क उठे । कहने लगे- आप उत्तर प्रदेश वालों को कुत्ता कहते हैं ! अब हम उनसे क्या कहते ? बड़ी मुश्किल से हाथ-पाँव जोड़कर पीछा छुड़ाया । प्रतिज्ञा की कि ऐसे भाषा वैज्ञानिकों के सामने चुप ही रहेंगे । मगर आदत पड़ी हुई क्या कभी छूटती है ?
मोदी जी के साथ भी यही हुआ । बिना सोचे समझे जिसे देखो पीछे पड़ गया । किसी ने भी इस 'भी' पर ध्यान नहीं दिया । उनकी व्यंजना थी कि कुत्ते के बच्चे के मरने पर 'भी' दुःख होता है तो इंसान के मरने पर दुःख न होने का तो प्रश्न ही नहीं उठता । दिग्विजय सिंह जी ने अपनी बात कहने से पहले ही कहा था कि वे एक जौहरी हैं । और फिर मीनाक्षी नटराजन को 'सौ टंच माल' कहा । अब जौहरी के लिए सौ टंच माल से श्रेष्ठ चीज और क्या हो सकती है ? एक टाइपिस्ट से सुहागरात को उसकी पत्नी ने पूछ- तुम मुझे कितना प्यार करते हो ? टाइपिस्ट ने उत्तर दिया- जितना अपने नए टाइप राइटर से । अब यदि पत्नी उससे इस बात पर झगड़े कि उसे टाइप राइटर क्यों कहा तो आप इसे क्या कहेंगे ? यह आपके भाषा-ज्ञान पर निर्भर करता है ।
चुनाव आ रहे हैं । किसी के पास कोई कल्याणकारी कार्यक्रम और सद्दिच्छा नहीं है । किसी के पास भी सत्कर्मों की दौलत तो है नहीं और न ही जनता के पास कोई विकल्प । अब ले देकर बयानों, आलोचनाओं और गाली-गलौच का ही सहारा रह गया है । एक कहता है- तू चोर है, तो दूसरा कहता है-तू भी तो चोर है । सर्वोच्च न्यायलय यह संज्ञान लेने में सक्षम नहीं है कि जब दोनों ही चोर हैं तो क्यों न इन्हें चुनाव लड़ने से अयोग्य घोषित कर दिया जाए और जनता को इन्हीं चोरों में से किसी को चुनना है । यदि किसी ने भी वोट नहीं दिया तो सिक्का उछालकर हैड-टेल करके इन्हीं में से कोई न कोई सिंहासन पर बैठ जाएगा । जिस मीडिया को इमेज बनाने का ठेका दिया गया है वही इन्हें, बयानों से ऐसे ही जनहितकारी कीचड़ निकालकर उछालने की, राय देता है । लोकतंत्र का समुद्र-मंथन चल रहा है जिससे निकलने वाले अमृत, कल्पवृक्ष, कामधेनु, लक्ष्मी, कौस्तुभ मणि, ऐरावत आदि देवगण ले जाएँगे; वारुणी पीकर बूथ लेवल के कार्यकर्ता असुर उत्पात मचाएँगे और बचा हलाहल विष जिसे जनता के सिवा और कौन पिएगा ?
जहाँ तक मोदी जी, दिग्विजय जी या किसी और राजनीतिक संत के शब्दों की बात है तो क्या अन्यथा लेना । जिसकी जैसी औकात और नीयत होती है उसके शब्दों का बिना कहे भी वही अर्थ निकलता है जो निकलना चाहिए । जब कबीर स्वयं को 'राम का कुत्ता' कहता है तो कुछ भी अन्यथा समझ में नहीं आता । और इन संतों के कर, मुख, चरण किसी को भी कमल कहे जाने पर कीचड़ के अलावा और कुछ ध्यान में ही नहीं आता ।
इतने प्रवचन के बाद जैसे ही हमने एक कामर्सियल ब्रेक लिया तो देखा कि तोताराम वैसे ही उठकर जा चुका है जैसे कि सत्ताविहीन हो चुके दल को छोड़कर रामविलास पासवान या अजित सिंह चले जाते हैं ।
हमें विश्वास है कि मोदी जी और दिग्विजय सिंह जी हमारे इस आलेख से अपने को 'मतिअंध' कहा गया मानकर नाराज़ नहीं होंगे ।
२६-७-२०१३
पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)
(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach
मोदी और दिग्विजय सिंह जी बिल्कुल नाराज नहीं होंगे कविराज :)
ReplyDelete