हमने तोताराम के सामने चाय रखते हुए कहा- आज तुम्हारे लिए पचास प्रतिशत का विशेष कन्सेशन है । केवल ५२ रु में पूरा पॅकेज । मोदी जी चाय पर चर्चा सुनने वालों से एक सौ रुपए लेते हैं और चाय के चार रुपए अलग । हम तुम्हें पचास रुपए में कविता सुनाएंगे और दो रुपए में चाय पिलाएंगे । निकाल बावन रुपए ।
तोताराम ने ठहाका लगाते हुए कहा- सब झूठ है । हमने नेहरू जी, इंदिरा गाँधी, राजीव गाँधी , अटल जी, आडवाणी जाने कितनों के भाषण सुने हैं । न कभी एक पैसा दिया और न हमसे किसी ने माँगा । आजकल तो चुनाव के समय भाषण सुनने वालों की भीड़ दिखाने के लिए छुटभैय्ये प्रति व्यक्ति दो सौ रूपए, दारु का एक पव्वा और बस का किराया देते हैं । ये सौ रूपए के टिकट वाली सब बातें थोथा प्रचार हैं, अपने भाव बढ़ा कर दिखाने का नाटक है ।
चुनाव में इतना खर्च हो रहा है । क्या पता, कल को चुनाव आयोग खर्च किए गए धन का हिसाब न माँग ले, इस डर के भाषण सुनने वालों से हुई 'दर्शन-श्रवण-दक्षिणा' के बहाने आमदनी दिखाने की ट्रिक है यह । मोदी तो फिर भी प्रधान मंत्री पद का उम्मीदवार है सो हो सकता है छुटभैय्ये नेता उसकी निगाह में चढ़ने के लिए अपनी मनरेगा और भूमि घोटालों की कमाई फूँक रहे हों । लेकिन तेरी हैसियत तो एक सरपंच की भी नहीं है । तेरी कविता सुनने के लिए देना तो दूर, कोई कुछ लेकर भी आने वाला नहीं है । वैसे यह फितूर तेरे दिमाग में आया कैसे ?
हमने कहा- हम सोच रहे हैं कि डेढ़ महीने की पेंशन का ही तो मामला है । यह तमाशा भी देख ही लेते हैं । और यह भी समझ ले कि हम चुनाव मोदी के खिलाफ लड़ेंगे । जैसे राहुल के खिलाफ लड़ने से विश्वास को पब्लिसिटी मिल रही है वैसे ही अपने को भी मिल जाएगी । जैसे वह अपनी कविताएँ पेल रहा है हम भी पेल देंगे । और कुछ नहीं तो इसी बहाने लोग जान जाएँगे कि मास्टर भी कविता लिखता है । नेतागीरी का नहीं तो, क्या पता कवि सम्मेलन का धंधा ही चल निकले ।
और फिर इस देश की क्या, कहीं की भी जनता की यह विशेषता है कि वह किसी भी सामान को उत्सवी छूट के नाम पर खरीद ही लेती है, भले ही माल कितना भी घटिया क्यों न हो ।
तोताराम ने उठाते हुए कहा- मुझे देना-दिवाना कुछ नहीं है । तू मेरा बाल सखा है इसलिए अधिक से अधिक इतना कर सकता हूँ कि एक चाय में छोटी बहर की केवल चार शे'र की एक ग़ज़ल सुन सकता हूँ और उस पर भी यह शर्त है कि मंचीय शायरों की तरह एक लाइन को चार बार नहीं पढ़ेगा या हास्य कवियों की तरह चार लाइन की कविता से पहले दस घिसे-पिटे चुटकले नहीं सुनाएगा ।
हमने तोताराम के सामने चाय रखते हुए कहा- मंजूर हैं । यहीं बैठ, हम डायरी लेकर आते हैं । कहीं चाय के कप समेत ही गायब न हो जाना ।
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