Feb 15, 2014

शिष्टाचार की कुछ सामान्य बातें (ओबामा को पत्र )

ओबामा जी,

वैसे संसारिकता और प्रेक्टिकलता का तकाज़ा तो यह है कि जिससे कोई स्वार्थ सधता हो उसके अलावा किसी से भी कोई बात नहीं की जाए जैसे कि आजकल लोग मोदी-उन्मुख होते नज़र आ रहे हैं । उसने चाय बेचने के बल पर प्रधानमंत्री पद की आशा पाल ली तो लालू प्रसाद को अपने चाय बेचने के दिन याद आ रहे हैं । शायद कुछ समर्थन मिल जाए । बड़े लोग सोच रहे हैं कि यदि राजकुमारों के लिए बचपन में चाय बेचने का कोई प्रमाण-पत्र ले लिया होता तो आज काम आता । हो सकता है कोई बचपन का चाय की केतली थामे फोटो प्रकाश में आ जाए । लेकिन हमारा आपसे इस समय कोई स्वार्थ सधने वाला नहीं है फिर भी हम भूतपूर्वोन्मुख आप (केजरीवाल नहीं) को पत्र लिख रहे हैं । इसके तीन कारण हैं- हम आपमें एक पूर्वी युवक की छवि देख रहे थे; आपने अपने प्रथम चुनाव प्रचार के दौरान एक नई आशा जगाई थी; हम अनुभव कर रहे हैं कि आपको सामान्य शिष्टाचार की कुछ बातें बताना ज़रूरी है

हालाँकि आपने हमसे ऐसी कोई प्रार्थना नहीं की है । कोई वकील होता तो अमरीकी रेट के हिसाब से कम से कम २५० डालर प्रति घंटे के हिसाब से फीस पहले रखवा लेता । मगर एक हम हैं कि अध्यापक होने के नाते मुफ्त में ही सही सलाह देने के लिए आदतन विवश हैं ।


1.



आपके यहाँ भारतीय दूतावास की एक महिला अधिकारी के साथ जिस प्रकार का अशोभनीय व्यवहार किया गया वह असामान्य और अशिष्ट है । अमरीकी कानून के अनुसार उसे उचित ठहराया जा रहा है । हो सकता है कोई बाल की खाल निकालने वाला राम जेठमलानी जैसा वकील इसे कानूनी रूप से गलत सिद्ध न होने दे लेकिन जो कानून सामान्य व्यवहार, मानवीय गरिमा और नारी का सम्मान न करे वह कैसा कानून । कानून खून के प्यासे पहलवानों का दंगल नहीं बल्कि वह करुणा और न्याय से जन्म लेने वाली एक व्यवस्था है ।


वैसे आप कानूनन कह सकते हैं कि आपको बताया नहीं गया । हो सकता है आपके यहाँ कानून के रखवाले पुलिसियों को शिष्टाचार और मानवता की इतनी समझ न हो । 



लेकिन आप चाहें तो केरल में भारतीय समुद्री सीमा में दो भारतीय मछुवारों को बंदूक चलाकर मार डालने वाले इटली के कर्मचारियों वाली घटना को याद करें । उनके लिए इटली सरकार ने क्रिसमस मनाने के बहाने जमानत की अपील की और भारत सरकार ने उसे मान लिया और अब वे भले आदमी फरार हैं । इसमें भारत की मानवता और योरप से भय के प्रतिशत के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता और अब देखिए कि इटली उन्हें बचाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में जा चुका है । क्या भारतीय राजनयिक का अपराध उनसे भी गंभीर था ? अमरीकी मानवाधिकार प्रेम की पर्दादारी के लिए हिंदी में न लिखकर अंग्रेजी में 'केविटी सर्च' लिख रहे हैं । क्या उस महिला के पास विनाश के व्यापक हथियार छुपे होने का खतरा था ?

अमरीकी प्रशासन ने इस कृत्य में अब भी कोई अशिष्टता नहीं पाई है । अपनी-अपनी संस्कृति की बात है । वैसे इस मामले में कभी-कभी हम सोचते हैं कि क्या ऐसा ही व्यवहार अमरीका के कानून के रखवाले पुलिसिये चीन के किसी राजनयिक के साथ करने का साहस जुटा पाते तब क्या आप उसे अनदेखा कर देते ? जो शराबी किसी सभ्य, सीधे या कमजोर व्यक्ति से शराब के नशे के बहाने बदतमीजी कर देता है वही थानेदार के सामने लड़खड़ाता हुआ ही सही, नमस्ते करने लग जाता है । आपके पुलिस वालों का यह कानून-प्रेम कहीं उस शराबी वाला ही तो नहीं है ?

इस बारे में भी एक सच्ची घटना सुनिए- आपके जन्म से पहले राष्ट्रपति आइजनहावर के ज़माने की बात है । उस समय अमरीका ने नए-नए यू टू विमान बनाए थे जो किसी भी राडार की पकड़ में नहीं आते थे । सो अमरीका ने रूस की जासूसी के लिए एक ऐसा ही विमान भेजा । रूस ने शिकायत की तो कहा गया- हमने ऐसा कोई विमान नहीं भेजा । फिर रूस ने कहा- हमने एक यू टू विमान गिरा लिया है । तो कहा गया- हमारा ऐसा ही एक विमान रास्ता भटक गया है । हो सकता है यह वही विमान हो । फिर रूस ने उत्तर दिया - इस विमान के चालक को हमने जिंदा पकड़ लिया है और उसने बताया है कि उसे जासूसी के लिए भेजा गया था । अमरीका ने उत्तर दिया- हाँ, हमने भेजा था और भविष्य में भी भेजेंगे । रूस की चेतावनी थी - यदि भविष्य में ऐसा हुआ तो हम उस अड्डे को ही नष्ट कर देंगे जहां से वह उड़ कर आएगा । तब भी क्षमा नहीं मांगी गई लेकिन फिर कभी कोई यू टू रूस की सीमा में नहीं गया ।


2.

दूसरा कारण- जब आप मंडेला के अंतिम संस्कार में सपत्नीक दक्षिणी अफ्रिका गए थे तब का आपका एक फोटो देखा । आप योरप के एक देश की युवा, सुन्दर और अपने से कम उम्र की प्रधान मंत्री के साथ 'सेल्फी' फोटो लेने के लिए पोज़ बना रहे थे । बगल में ही  श्रीमती ओबामा थीं । पत्नी के इतने निकट होते हुए किसी सुंदरी से इतनी निकटता बढ़ाना बहुत साहस का काम है । हम आपके चरित्र और एक पत्नी-व्रत पर कोई प्रश्न नहीं उठा रहे हैं लेकिन ऐसे अवसर पर कोई सामान्य व्यक्ति भी, भले ही झूठ-मूठ ही सही, गंभीर और ग़मज़दा होने का नाटक ही सही, करता तो है । 


लेकिन आपने तो इस सामान्य से शिष्टाचार को भी ताक पर रख दिया । सौन्दर्य तो सामान्य क्या, बड़े-बड़ों को भी अपने जाल में फँसा लेता है, फिर आप तो अभी जवान हैं । लेकिन याद रखना चाहिए कि राजा से जितेन्द्रिय होने की अपेक्षा की जाती है । आप इतने शक्तिशाली देश के प्रथम नागरिक हैं तो आपसे तो और भी नियंत्रित होने की अपेक्षा की जाती है । क्लिंटन जी की दुर्गति तो ऐसे कर्मों के कारण जग-जाहिर है ही । संन्यास की उम्र पर पहुँच चुके इटली के पूर्व प्रधान मंत्री बर्लुस्कोनी शायद जेल में हैं । यदि नहीं, तो भी जनता ने तो उन्हें अपनी विस्मृति के गटर में डाल दिया होगा । फ़्रांस के वर्तमान राष्ट्रपति महोदय अपनी लम्पटता के कारण सुर्ख़ियों में हैं । और पूर्व पत्नी भारत में मानसिक शांति तलाश रही है । हो सकता है आपका ऐसा कुछ इरादा नहीं रहा हो लेकिन पत्रकार तो बड़ी अफवाहें फैला रहे हैं । और पत्रकारों की ऐसी अफवाहें अब तक प्रायः सच ही निकली हैं ।



3.



तीसरा कारण- अभी एक खुलासा छपा है कि आपने नवम्बर २००९ में मनमोहन सिंह जी को जो डिनर दिया था उसमें पौने छः लाख डालर खर्च हुए थे । मनमोहन जी भले आदमी हैं । वे अपनों की बातों का ही ज़वाब नहीं देते तो आपको क्या कुछ कहेंगे । यह आपके और आपके प्रशासन के सोचने की बात है कि किसी भले आदमी को पहले तो निमंत्रण देकर घर बुलाओ और फिर इस तरह दुनिया में उसका जुलूस निकालो ।

एक किस्सा सुनाते हैं जिससे शायद हमारी बात स्पष्ट हो जाए । एक सेठ ने अपने नाई को किसी काम से अपने बेटे की ससुराल भेजा । वहाँ नाई को दस-दस ग्राम के पतले-पतले फुल्के परोसे गए । उन दिनों में आने-जाने के साधन बहुत कम थे और वैसे भी लोग दस-पंद्रह किलोमीटर के लिए कोई साधन लेते भी नहीं थे, पैदल ही चले जाते थे । नाई भी पैदल चलकर सेठ के बेटे की ससुराल पहुंचा । दिन भर का भूखा, पतले-पतले फुल्के , खा गया चालीस-पचास ।


नाई खाता जाता था और सोचता जाता था कि इतने पलते फुल्के परसे जाने का क्या चक्कर है ? आप जानते हैं कि नाई सत्तर घाट का पानी पिया एक चतुर प्राणी होता है । उसने छुपाकर एक फुल्का अपनी जेब में रख लिया । जब लौट कर सेठ को रिपोर्ट की तो अपने समधी की चिट्ठी पढ़कर सेठ ने कहा- नेवगी जी, आपने तो बेटे की ससुराल में हमारी नाक ही कटवा दी । अरे भाई, ऐसी भी क्या भूख । पचास फुल्के खा गए । नाई ने जेब से फुल्का निकाल कर दिखाया और कहा- सेठ, ये रहा फुल्के का नमूना ।


बात समझ में आ गई होगी । नहीं तो कुछ और स्पष्ट कर देते हैं । उस भोज में मनमोहन जी के साथ होंगे कोई बीस आदमी, जब कि आप वाले दो सौ । आपको याद होगा उस भोज में शराब के एक व्यापारी (सलाही) अपनी सुन्दर पत्नी के साथ बिना बुलाए आए और दारू पीकर चले गए । हो सकता है ऐसे ही बहुत से लोग बिना गिनती के आ गए होंगे और आपने खर्चा डाल दिया मनमोहन जी के खाते में । जैसा कि हमें याद है, उस भोज में मनमोहन जी को बैंगन का भुरता परोसा गया था और वह बैंगन भी मिशेल ने अपने किचन गार्डन में उगाया था । हमें लगता है कि कर्मचारियों ने इसमें कम से कम साठ प्रतिशत का घपला किया है । चालीस प्रतिशत में से मनमोहन जी के साथ वालों पर चार प्रतिशत खर्चा हुआ होगा । कुल मिलाकर दस हजार डालर से अधिक खर्चा अमरीकी सरकार का नहीं हुआ होगा । जब कि इससे कई गुना तो उन्होंने निजी हवाई जहाज से अमरीका आने-जाने में खर्च कर दिया होगा । जितने की झाँझ नहीं उतने के मंजीरे फूट गए और इतना बड़ा अहसान ऊपर से । इससे करोड़ों गुना तो अपने एक परमाणु सौदे में मनमोहन जी से कमा लिया होगा ।

हमारे यहाँ 'ऐसे' अतिथि सत्कार को ओछी-नीत कहते हैं लेकिन आपसे यही कहते हैं कि इतने बड़े देश के राष्ट्रपति होकर इतना छोटा दिल मत रखिए । अपने अकाउंट्स विभाग वालों से भी कह दें कि मेहमानों की रोटियाँ न गिना करें ।

ये तीनों बातें ही अशिष्टता हैं, क्षमा माँगने योग्य हैं लेकिन हमें पता है कि आप क्षमा नहीं मांगेंगे क्योंकि क्षमा माँगने के लिए क्षमा करने वाले से भी बड़ा दिल चाहिए ।

हमारे यहाँ शिव काल से भी बड़े, महाकाल हैं और इसीलिए महादेव हैं । उनसे क्षमा माँगने का एक मन्त्र है । उससे आप समझ जाएंगे कि वास्तव में सच्ची क्षमा-याचना क्या होती है ? यह कोई सॉरी जैसा दो अक्षरों में निबटा दिया जाने वाला रस्मी मामला नहीं है । सुनिए उस श्लोक का भावार्थ-
हे करुणा के सिन्धु महादेव शम्भु ! मैं अपने हाथों, पैरों से किए गए, शरीर और कर्म द्वारा किए गए, कानों और नेत्रों द्वारा किए गए, मन द्वारा किए गए, सभी व्यक्त और अव्यक्त अपराधों के लिए आपसे क्षमा माँगता हूँ । मुझे क्षमा करिए ।

ऐसी क्षमा किसी और का नहीं बल्कि स्वयं का भला करती है उसे पवित्र करती है । यदि इस भाव से क्षमा मांगी जाए तो ठीक है अन्यथा शाब्दिक चोंचलों का कोई अर्थ नहीं । वैसे हम जानते हैं कि आप ऐसी औपचारिक क्षमा भी नहीं मांगेंगे क्योंकि आपके सामने इण्डिया की स्थिति तो उस प्रेमिका जैसी है जो कहती है-
तड़पाओगे तड़पा लो, हम तड़प तड़प कर भी तुम्हारे गीत गाएंगे ।

वैस अब आपको अधिक सोचना भी नहीं चाहिए क्योंकि अब कौनसा चुनाव लड़ना है । अमरीका में कोई भी राष्ट्रपति अधिक से अधिक आठ वर्ष का सत्ता सुख ही भोग सकता है । सो आपके छः वर्ष तो बीत ही गए, दो और बीत जाएंगे । आपकी स्थिति तो हमारे अरविन्द केजरीवाल जैसी है । आपके लिए पाने को कुछ नहीं है और उसके पास कुछ खोने को नहीं है ।


‘जय शंकर बम भोले’ नहीं बोलेंगे क्योंकि क्या पता, कहीं हमारी भी 'केविटी सर्च ' न हो जाए । और उसमें व्यापक विनाश की कोई कविता या पत्र निकल आया तो क्या करेंगे । वैसे यह बम वह नहीं है जो आतंकवादी रखते हैं । यह तो शिव के प्रिय भंग के गोले से संबंधित है जिसका सेवन आपने भी किया हुआ है । क्या मज़े की चीज़ है ? एक आनंद ही आनंद । कोई कुंठा और ईर्ष्या-द्वेष नहीं । खाओ तो खाते ही जाओ, हँसो तो हँसते ही जाओ, रोओ तो रोते ही चले जाओ ।

आज 'वेलेंटाइन डे' भी है । ऐसे नहीं कहा जा रहा हो तो भंग का गोला चढ़ा कर ही सही, एक बार ढंग से मिशेल को 'आई लव यू' कह दो और भावी पारिवारिक जीवन को सुखद बना लो क्योंकि राष्ट्रपति न रहने पर, न कोई गायिका पूछने आएगी और न ही कोई युवा प्रधान मंत्री । यही भली औरत साथ निभाएगी ।

१४ फरवरी २०१४

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