Feb 22, 2014

तोताराम के तर्क और ताऊ के आँसू


तोताराम ने आते ही सांसदों को भला-बुरा कहना शुरु कर दिया- करना-धरना तो कुछ है नहीं । बिना बात २१ फरवरी २०१४ को वर्तमान संसद के अंतिम सत्र के अंतिम दिन को बेकार कर दिया । अरे, ध्वनि-मत से ही सही, दस-पाँच बिल और पास कर-करा देते तो कहने को हो जाता कि सांसद कुछ काम करते हैं ।

जब अगली संसद में इन्हीं को या इनके ही परिवार वालों को आना है तो फिर भई, जाओ अपने-अपने क्षेत्रों में, पाँच वर्ष से तरस रही जनता को दर्शन दो, लोकतंत्र को सफल बनाने के लिए अपनी दो नंबर की कमाई में से थोड़ा इन्वेस्ट करो अगली टर्म के लिए । बिना बात का विदाई समारोह बना दिया ।


हमने कहा- तोताराम, सुख या दुःख कैसा भी अवसर हो, मानव एक सांस्कृतिक प्राणी है इसलिए थोड़ी-बहुत औपचारिकता आवश्यक हो जाती है । बिछड़ तो रहे ही हैं, भले ही दो चार महीने के लिए ही सही । और फिर जीवन तो जीवन है । क्या पता, इस दौरान कोई अगली संसद में आने की बजाय ऊपर वाली संसद में ही नोमिनेट हो जाए । सो क्या हो गया जो विदाई समारोह जैसा कुछ हो गया तो । और फिर आडवाणी जी १९७१ मॉडल के एकमात्र सांसद बचे है सो उन्हें अगर किसी ने फादर ऑफ़ हाउस या अपना संरक्षक कह दिया तो क्या हो गया ?

तोताराम ने बात बदलते हुए कहा- अच्छा चल, इस बारे में और बात बाद में करेंगे । पहले तो तू एक किस्सा सुन- एक आदमी रोज दारू पिया करता था । एक बार ऐसा संयोग हुआ कि दो दिन दारू नहीं मिली । अब तो उसका चलना-फिरना मुहाल । तीसरे दिन तो खाट से ही नहीं उठा । लोगों ने समझा बीमार है । पाँच-चार दिन बाद लोग हाल-चाल पूछने के लिए आने लगे । वह आदमी तो संवाद कम करता, घर वाले ही अधिक बातें किया करते थे । लोग आते और तरह-तरह के इलाज़ बताते । कोई कहता-फलाँ काढ़ा पिलाओ, कोई किसी देवता विशेष की माला फेरने को कहता तो कोई किसी ठरकी बाबा का स्पेशल शक्ति वर्द्धक रसायन पिलाने की सलाह देता । एक दिन एक व्यक्ति ने दबी जुबान में कहा- अरे भई, थोड़ी ब्रांडी मिल जाए तो वह भी पिला कर देखो । लेकिन घर वालों ने उसकी ओर ध्यान नहीं दिया । थोड़ी देर बाद वह आदमी उठ बैठा और बोला- सालो, बिना बात की किचर-किचर कर रहे हो, कोई इस भले आदमी के बताए इलाज़ को सीरियसली क्यों नहीं लेता ।

सो ताऊ अडवाणी कौन अभी रिटायर हो रहा है जो ऐसे विदाई दे रहे हो । कोई उनके दिल की दबी-ढकी आवाज़ को क्यों नहीं सुन रहा है ? अब ऐसे में ताऊ रोएगा नहीं तो क्या करेगा ? ताऊ कोई अपने आप थोड़े ही रोया है । इन पाजियों ने रुलाया है । और ये आँसू ख़ुशी के नहीं, मनमोहन जी की तरह खून के आँसू हैं ।

हमने कहा- तो फिर तू ही बता कि इस दिन संसद में ताऊ के साथ क्या होना चाहिए था ?

बोला- काली मिर्च-प्रक्षेपण, चाकू-प्रदर्शन जैसे संसदीय कार्य तो बंद हो ही चुके थे और माहौल भी हल्का हो चुका था तो मज़ाक में ही सही एक बार ताऊ को मनमोहन सिंह जी कुर्सी पर ही बिठा कर फोटो खींच लेते ।
२२ फरवरी २०१४

पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)


(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

No comments:

Post a Comment