दो कुण्डलिया छंद
१. मन-मंदिर
मोहन मन में बसे तो मंदिर से क्या काम
मंदिर और प्रसाद में लेकिन मिलते दाम
लेकिन मिलते दाम, तभी सब मिले हुए हैं
और आचरण पर सब के मुँह सिले हुए हैं
कह जोशी कविराय राम का काम कीजिए
बात और बुत नहीं कर्म-सन्देश दीजिए
-९-०६-२०१५
२. सूट या लँगोट
(सूट पसंद नहीं तो लँगोट पहनें -शिव सेना १-६-१५ )
किसी तरह भी चाहिएँ नेताओं को वोट
चाहे पहनें सूट या बाँधेंभले लँगोट
बाँधें भले लँगोट, मुल्क हो गया अखाड़ा
उनका सधता स्वार्थ हमारा हुआ कबाड़ा
कह जोशी कविराय दीखता नहीं त्राण है
सभी शिकारी सबके हाथों धनुष बाण हैं |
०९-०६-२०१५
१. मन-मंदिर
मोहन मन में बसे तो मंदिर से क्या काम
मंदिर और प्रसाद में लेकिन मिलते दाम
लेकिन मिलते दाम, तभी सब मिले हुए हैं
और आचरण पर सब के मुँह सिले हुए हैं
कह जोशी कविराय राम का काम कीजिए
बात और बुत नहीं कर्म-सन्देश दीजिए
-९-०६-२०१५
२. सूट या लँगोट
(सूट पसंद नहीं तो लँगोट पहनें -शिव सेना १-६-१५ )
किसी तरह भी चाहिएँ नेताओं को वोट
चाहे पहनें सूट या बाँधेंभले लँगोट
बाँधें भले लँगोट, मुल्क हो गया अखाड़ा
उनका सधता स्वार्थ हमारा हुआ कबाड़ा
कह जोशी कविराय दीखता नहीं त्राण है
सभी शिकारी सबके हाथों धनुष बाण हैं |
०९-०६-२०१५
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