Jun 3, 2015

अच्छे दिनों की अगवानी

  अच्छे दिनों की अगवानी 

आज तोताराम सुबह-सुबह हाज़िर हुआ तो लगा जैसे कोई चलता फिरता टेंट-हाउस हो | पोलीथिन के एक बैग में तीन-चार पानी की बोतलें, एक कंधे पर गमछा, दूसरे कंधे पर छाता, थर्मस, नाश्ते का डिब्बा, गुलदस्ता, एक बड़ा सा बैनर जिस पर लिखा था-सीकर में आपका स्वागत है, और भी बहुत कुछ |पूछा तो बोला- बिना बात एक साल से यहाँ बैठा सगुन के कौए उड़ा रहा था और मुझे भी साल भर इस चक्कर  में उलझाए रखा | अब देख, देश के सबसे बड़े और विश्वसनीय अखबार में खबर छपी है- अच्छे दिन आ चुके हैं पर कुछ लोग बाधा डाल रहे हैं |

पता नहीं अच्छे दिन कब से आए बैठे होंगे बस अड्डे पर | पता नहीं, पानी पीने को भी पैसे होंगे कि नहीं ? कई दिनों से लू चल रही है, कहीं लू लग गई होगी तो ? इसलिए पानी की बोतलें, छाता, नाश्ता, धूप का चश्मा सब लेकर आया हूँ | जल्दी चल, कहीं किसी लपके के हाथ पड़ गए होंगे तो और मुश्किल |

हमने कहा-  अब तो दिल्ली-जयपुर वाला आन्दोलन के कारण बंद राजमार्ग भी खुल गया | थोड़ा इंतज़ार कर ले | और फिर खबर में यह भी तो नहीं लिखा कि कहाँ से, कैसे और किस स्थान पर पहुँचे ? ये अखबार वाले भी हमेशा आधी-अधूरी खबरें छापते हैं ? कहीं तू बस अड्डे पर पहुंचे और वे स्टेशन पर बैठे हों, तू स्टेशन जाए और पैदल आ रहे हों और यदि बची हो तो सड़क के किनारे किसी खेजड़ी के नीचे बैठे हों | 

बोला- तभी कहा है- संशयात्मा विनश्यति | हर बात में शंका करता है | अरे, अच्छे दिन क्या किसी एक पार्टी, वर्ग या जाति के थोड़े ही आते हैं | जब आते हैं तो सबके लिए आते हैं | सब तरफ से आते हैं | चल तो सही | जहां भी संभव होगा ढूँढेंगे | आए हैं तो जाएंगे कहाँ ? अब जल्दी कर |

वैसे हमारा अनुभव है कि जब आने होते हैं तो अच्छे और बुरे दिन छप्पर फाड़ कर आ जाते हैं और नहीं आने हों तो फाड़ते रहो आँखें | फिर भी तोताराम का साथ देने के लिए चल पड़े | बस अड्डे पर पहुँच कर तोताराम ने फटाफट  फैलाकर बैनर हाथ में उठा लिया जिस पर लिखा था -हे अच्छे दिनो, आपका सीकर में स्वागत है | हम आपको लेने के लिए आए हैं | और हर ठीक-ठाक से दिखने वाले की ओर गुलदस्ता हिलाने लगा | मगर किसी ने उसकी ओर नहीं देखा | वहाँ से निराश होकर हम रेलवे स्टेशन की तरफ चल पड़े | 
रास्ते में कुछ लोग सड़क खोद रहे थे, पता नहीं, पी.डब्लू.डी. वाले थे या जल विभाग वाले या फिर हो सकता है किसी प्राइवेट मोबाइल कंपनी वाले थे | तोताराम ने बड़ी विनम्रता से उनसे कहा- भाइयो, जल्दी से काम निबटाओ, और इस सड़क को हमवार कर दो | जल्दी ही इस सड़क से अच्छे दिनों का काफिला गुजरेगा | एक साल के चले हुए हैं | थके होंगे | पता नहीं धचके बर्दाश्त कर पाएं कि नहीं | 

सड़क खुदाई का ठेकेदार बोला- हमारे  तो अच्छे दिन आ चुके  | तोड़ने वाले भी हम और ठीक करने वाले भी हम | 

खैर, किसी तरह पसीने में तर-बतर स्टेशन पहुंचे तो पता चला कि छः महिने में चालू होने वाली ब्रोडगेज ट्रेन तीन साल में भी शुरू नहीं हुई है | हवाई अड्डा पता नहीं कहाँ है ? सोचा, मंडी के हेलीपैड बना हुआ है शायद वहीं उतरे हुए हों | 

जब लौट रहे थे तो उन्हीं गड्ढा खोदने वालों से पूछा- क्यों भैया, हमारे जाने के बाद कोई काफिला इधर से गुज़ारा क्या ? 

बोले- हाँ, मास्टर जी, दो-तीन एयर कंडीशंड बसें गुजरी तो थीं | उनके आगे-पीछे बीस-तीस बड़ी-बड़ी महँगी कारें थीं |

हमने कहा- तोताराम, अब तो समझ में आया कुछ | दुनिया में हमेशा अच्छे-बुरे दिन रहते हैं |अच्छे दिन एयर कंडीशंड से एयर कंडीशंड तक यात्रा करते हैं और बुरे दिन टूटी-फूटी सड़कों और ऊबड़-खाबड़ रास्तों पर घूमते रहते हैं और बिना बुलाए किसी भी गरीब के घर में घुस जाते हैं | अब घर चल, एयर कंडीशंड में घुसने की न हमारी औकात है और न हिम्मत |









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