Apr 19, 2016

जल-जागृति

  जल-जागृति

हमसे तो सुबह-सुबह अखबार पढ़ने और चाय पीने के अतिरिक्त कोई ढंग का काम होता नहीं लेकिन लोग हैं कि न खुद सोते हैं और न ईश्वर और खुदा को सोने देते हैं |सूरज निकलने से पहले ही अपनी-अपनी भाषाओं में आर्तनाद करने लग जाते हैं |जैसा दो रेडियो स्टेशन एक साथ मिल जाने पर होता वही हाल इन प्रार्थनाओं का होता है |किसी को कुछ समझ में नहीं आता |भगवान का पता नहीं, क्या होता होगा |सुना है, वह 'बिनु पग चले, सुने बिनु काना' है तो कुछ न कुछ समझ में आ ही जाता होगा | और हमें भी ये प्रर्थानाएँ, जैसी भी सुनें, सुनकर विश्वास हो जाता है कि यदि एक बार अपने पुत्र नारायण को पुकारने से अजामिल का उद्धार हो सकता है तो हमें भी स्वर्ग न मिले, कम से कम नरक से तो मुक्ति मिल ही जाएगी |

आज की सुबह कुछ भिन्न-सी थी |इन प्रार्थनाओं में एक स्वर और भी मिल गया था |लगा, कोई हमारे बरामदे में ही बैठकर गा रहा है |कई प्रकार के भजन और प्रेरक दोहे थे जैसे- रहिमन पानी रखिए, पानी बिच मीन पियासी, पानी रे पानी तेरा रंग कैसा आदि-आदि |बाहर निकल कर देखा तो तोताराम इकतारा तुनतुना कर गा रहा है |

हमने उसे अन्दर लिया पूछा- क्या बात है ?आज तेरे यहाँ नल नहीं आया क्या ?

बोला- मैं तेरी तरह स्वार्थी नहीं हूँ |मेरे यहाँ तो पानी की कमी नहीं है |मैं तो लातूर के जल-संकटग्रस्त लोगों में 'जल-जागृति' के लिए गा रहा हूँ |मेरे पास महाराष्ट्र जल संपदा विभाग, नीर फाउंडेशन और जैन इरिगेशन की तरह कोई बड़ा बजट तो है नहीं कि जल समस्या सुलझाने के लिए चालीस एकड़ में ७५० विद्यार्थियों से ४० मिनट में दुनिया की सबसे बड़ी रंगोली बनाने का आयोजन कर सकूँ |मैं तो प्रभु से प्रार्थना ही कर सकता हूँ |वैसे महाराष्ट्र में एक प्रभु और भी हैं जो पता नहीं क्या कर रहे हैं ?

हमने कहा- कर क्यों नहीं रहे हैं |उनके विभाग की रेलें पानी लेकर लातूर जा तो रही हैं |
हमने कहा- खैर, इसके बारे में तो बात बाद में करेंगे लेकिन यह बता इन भजनों, रंगोलियों, रेलियों आदि के नाटकों से क्या हो जाएगा ? यदि आरतियों से ही कुछ हो जाता तो अब तक गंगा कब की साफ़ हो गई होती | श्री श्री के नाच-गानों से यमुना कितनी स्वच्छ हो गई ?

बोला- साफ़ तो करने वाले करेंगे लेकिन इन आयोजनों से प्रेरणा तो मिलती ही है |एक वातावरण तो बनता ही है |मोदी जी के 'स्वच्छ भारत :स्वस्थ भारत' से कितने लोग झाडू हाथ में लेकर फोटो खिंचवाने लगे |सफाई नहीं तो सफाई की बातें तो होने लगी |आज बातें हो रही हैं तो कल को सफाई भी होने लगेगी |

हमने कहा- लेकिन लातूर के लोग क्या मूर्ख है जो पानी का इतना अपव्यय कर रहे हैं कि पीने को भी पानी नहीं बचा ?महाराष्ट्र में तो धरती का पानी गन्ने की खेती करने वाली सुगर लॉबी ने चूस लिया, कुछ क्रिकेटऔर गोल्फ वालों ने निबटा दिया और बचाखुचा बीयर,दारू,कोल्डड्रिंक बनाने वाली कंपनियों ने सलटा दिया | अब पानी आएगा भी तो कहाँ से ? 

तो कहने लगा- तो फिर महाराष्ट्र सरकार अपने यहाँ गन्ने की जगह ऐसी फसलें क्यों नहीं उगवाती जो कम पानी में हो सकें ?बीयर, शराब, और कोल्ड ड्रिंक के कारखाने बंद क्यों नहीं करवा देती ? अन्ना हजारे के गाँव वाला वाटर हारवेस्टिंग का तरीका क्यों नहीं अपनाती ?

हमने कहा- ये सब धंधे सभी राजनीतिक पार्टियों के नेताओं के ही हैं | इसलिए कोई भी इसका समर्थन नहीं करेगा | इनके खुद के लिए पानी की कौन सी कमी है |सब के घरों,बँगलों और फार्म हाउसों में स्विमिंग पूल हैं |जब पानी की ट्रेनें और टेंकरों का सिलसिला चलेगा तो उसमें भी ये ही सप्लायर होंगे |पैसे के कमाने के साथ-साथ अपना प्रचार भी करेंगे और सेवक कहलाएँगे सो अलग |

भैया, सुधार तो तब होगा जब पानी का अधिक उपयोग और अपव्यय करने वाले तथाकथित बड़े लोग सुधरेंगे | और ऐसे लोग बातों से नहीं मानते |

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