रिक्शे पर 'राजा'
आज तोताराम ने आते ही ब्रेकिंग न्यूज दी- देखा, लोकतंत्र का कमाल ! राजा रिक्शे पर | हमने कहा- इसमें क्या ख़ास बात है |लखनऊ में तो साइकल रिक्शा चलाने वाला हर तीसरा व्यक्ति किसी न किसी नवाबी घराने से जुड़ा है |और हमने तो कई बरसों पहले यह समाचार भी पढ़ा था कि बहादुर शाह ज़फर का वंशज बल्लीमारान में कपड़ों पर इस्त्री करता है | जब निजी हवाई कंपनियों राष्ट्रीयकरण हो गया था तो एक महाराजा उसमें द्वारपाल अर्थात गेटकीपर का काम करने लगे थे और सभी आने वालों को सलाम बजाया करते थे |अब जब दाढ़ी बनाने वाले ब्लेड का विज्ञापन करने के लिए भी सुन्दर युवती की ज़रूरत आ पड़ी है तो उस लम्बी मूँछ वाले महाराजा की छुट्टी तो होनी ही थी |
बोला- यह लोकतंत्र का कमाल थोड़े ही था , यह तो मजबूरी थी | जब राज गया तो पेट भरने के लिए कुछ तो करना ही था |बेचारे पढ़े लिखे तो थे नहीं और न ही कमा कर खाने की आदत |और आज भी भले ही उन्हें क्षत्रिय होने के कारण आरक्षण न मिले लेकिन सब की हालत तो भूतपूर्व राजाओं जैसी है नहीं सो आज भी बहुत से क्षत्रिय चौकीदारी करते नज़र आ जाएँगे |और जो बड़े-बड़े हैं उनकी भी हालत कौनसी सम्मानजनक है |वे भी अपने महलों को 'टेंट हाउस' या 'विवाह-स्थल' बनाकर काम चला रहे हैं |मैं तो आज और अभी अभी की बात कर रहा हूँ |मोदी जी नॉएडा वाले कार्यक्रम में ई रिक्शा से मंच तक गए है |चाहते तो हैलीकोप्टर को ही सीधा मंच पर उतार सकते थे |
हमने कहा- लेकिन मोदी जी कोई राजा थोड़े ही हैं |वे तो जनसेवक हैं |उन्होंने खुद को प्रधान मंत्री नहीं बल्कि 'प्रधान सेवक' घोषित कर रखा है |और फिर वे तो शुरू से ही एक सामान्य व्यक्ति हैं |अपने राजस्थान में तो वे अपने प्रचारक काल के दौरान रिक्शा क्या, ऊँटगाड़ी, बैलगाड़ी और यहाँ तक कि रेतीले टीलों में, गरम रेत में पैदल भी चले होंगे |और अब भी चाय बनाना और ढोल बनाना नहीं भूले हैं जब कि बहुत से नेताओं को तो गाय और भैंस तक में फर्क नहीं मालूम |यह लोकतंत्र नहीं, मोदी जी की व्यक्तिगत शैली है |
बोला- खैर, मत मान लेकिन याद कर १९६० में जब चक्रवर्ती राजगोपालाचारी जी और महारानी गायत्री देवी ने 'स्वतंत्र पार्टी' बनाई थी उससे पहले क्या तूने जयपुर के राजा मानसिंह और महारानी गायत्री देवी को देखा था |यदि जयपुर भी जाता तो दर्शन मुश्किल थे लेकिन लोकतंत्र की शक्ति के कारण ही तो अपने गाँव के बाजार में उन्हें लकड़ी के तख़्त पर बैठे कितने नज़दीक से देखा था |
हमने कहा- लेकिन उस समय गायत्री देवी रिकार्डमतों से जीती थी और कई गाँवों में लोगों ने उन्हें वोट ही नहीं दिया बल्कि 'जोहार' करके चाँदी के रुपए भी दिए थे |
कहने लगा- मेरी बात को न मानने के लिए तू कुतर्क कर रहा लेकिन यह सब जानते हैं कि हवाई जहाज में चलने वाले चुनाव के समय बुलेट ट्रेन, मेट्रो ट्रेन, मुम्बई की लोकल ट्रेन, बस, जीप तक आ जाते हैं |जिनके परिवार का हर सदस्य मंत्री,एम.पी.,एम.एल.ए. है वे मुलायम सिंह जी भी साइकल पर चलने लग जाते हैं, अटल जी राजीव गाँधी के कम्प्यूटर कार्यक्रम के विरुद्ध में बैलगाड़ी से संसद गए थे कि नहीं ? बड़े-बड़े नेताओं ने लोकतंत्र की इस शक्ति के कारण रथ यात्राएँ और पदयात्राएँ कीं कि नहीं ? भले ही पाँच साल में एक बार ही सही लेकिन कल इसी लोकतंत्र के कारण ही 'राजा लोग' कनक दंडवत करते नज़र आएँगे |
हमने कहा- बन्धु, हमारी आँखों में तो वह दृश्य बसा हुआ है जिसमें मध्यप्रदेश के एक छुटभैये नेता जी एक ग्रामीण की पीठ पर चढ़कर नाला पार कर रहे थे |
कैसा भी लोकतंत्र आ जाए लेकिन लोक-विक्रम के कंधे से यह सत्ता-बेताल उतरने वाला नहीं है |
आज तोताराम ने आते ही ब्रेकिंग न्यूज दी- देखा, लोकतंत्र का कमाल ! राजा रिक्शे पर | हमने कहा- इसमें क्या ख़ास बात है |लखनऊ में तो साइकल रिक्शा चलाने वाला हर तीसरा व्यक्ति किसी न किसी नवाबी घराने से जुड़ा है |और हमने तो कई बरसों पहले यह समाचार भी पढ़ा था कि बहादुर शाह ज़फर का वंशज बल्लीमारान में कपड़ों पर इस्त्री करता है | जब निजी हवाई कंपनियों राष्ट्रीयकरण हो गया था तो एक महाराजा उसमें द्वारपाल अर्थात गेटकीपर का काम करने लगे थे और सभी आने वालों को सलाम बजाया करते थे |अब जब दाढ़ी बनाने वाले ब्लेड का विज्ञापन करने के लिए भी सुन्दर युवती की ज़रूरत आ पड़ी है तो उस लम्बी मूँछ वाले महाराजा की छुट्टी तो होनी ही थी |
बोला- यह लोकतंत्र का कमाल थोड़े ही था , यह तो मजबूरी थी | जब राज गया तो पेट भरने के लिए कुछ तो करना ही था |बेचारे पढ़े लिखे तो थे नहीं और न ही कमा कर खाने की आदत |और आज भी भले ही उन्हें क्षत्रिय होने के कारण आरक्षण न मिले लेकिन सब की हालत तो भूतपूर्व राजाओं जैसी है नहीं सो आज भी बहुत से क्षत्रिय चौकीदारी करते नज़र आ जाएँगे |और जो बड़े-बड़े हैं उनकी भी हालत कौनसी सम्मानजनक है |वे भी अपने महलों को 'टेंट हाउस' या 'विवाह-स्थल' बनाकर काम चला रहे हैं |मैं तो आज और अभी अभी की बात कर रहा हूँ |मोदी जी नॉएडा वाले कार्यक्रम में ई रिक्शा से मंच तक गए है |चाहते तो हैलीकोप्टर को ही सीधा मंच पर उतार सकते थे |
हमने कहा- लेकिन मोदी जी कोई राजा थोड़े ही हैं |वे तो जनसेवक हैं |उन्होंने खुद को प्रधान मंत्री नहीं बल्कि 'प्रधान सेवक' घोषित कर रखा है |और फिर वे तो शुरू से ही एक सामान्य व्यक्ति हैं |अपने राजस्थान में तो वे अपने प्रचारक काल के दौरान रिक्शा क्या, ऊँटगाड़ी, बैलगाड़ी और यहाँ तक कि रेतीले टीलों में, गरम रेत में पैदल भी चले होंगे |और अब भी चाय बनाना और ढोल बनाना नहीं भूले हैं जब कि बहुत से नेताओं को तो गाय और भैंस तक में फर्क नहीं मालूम |यह लोकतंत्र नहीं, मोदी जी की व्यक्तिगत शैली है |
बोला- खैर, मत मान लेकिन याद कर १९६० में जब चक्रवर्ती राजगोपालाचारी जी और महारानी गायत्री देवी ने 'स्वतंत्र पार्टी' बनाई थी उससे पहले क्या तूने जयपुर के राजा मानसिंह और महारानी गायत्री देवी को देखा था |यदि जयपुर भी जाता तो दर्शन मुश्किल थे लेकिन लोकतंत्र की शक्ति के कारण ही तो अपने गाँव के बाजार में उन्हें लकड़ी के तख़्त पर बैठे कितने नज़दीक से देखा था |
हमने कहा- लेकिन उस समय गायत्री देवी रिकार्डमतों से जीती थी और कई गाँवों में लोगों ने उन्हें वोट ही नहीं दिया बल्कि 'जोहार' करके चाँदी के रुपए भी दिए थे |
कहने लगा- मेरी बात को न मानने के लिए तू कुतर्क कर रहा लेकिन यह सब जानते हैं कि हवाई जहाज में चलने वाले चुनाव के समय बुलेट ट्रेन, मेट्रो ट्रेन, मुम्बई की लोकल ट्रेन, बस, जीप तक आ जाते हैं |जिनके परिवार का हर सदस्य मंत्री,एम.पी.,एम.एल.ए. है वे मुलायम सिंह जी भी साइकल पर चलने लग जाते हैं, अटल जी राजीव गाँधी के कम्प्यूटर कार्यक्रम के विरुद्ध में बैलगाड़ी से संसद गए थे कि नहीं ? बड़े-बड़े नेताओं ने लोकतंत्र की इस शक्ति के कारण रथ यात्राएँ और पदयात्राएँ कीं कि नहीं ? भले ही पाँच साल में एक बार ही सही लेकिन कल इसी लोकतंत्र के कारण ही 'राजा लोग' कनक दंडवत करते नज़र आएँगे |
हमने कहा- बन्धु, हमारी आँखों में तो वह दृश्य बसा हुआ है जिसमें मध्यप्रदेश के एक छुटभैये नेता जी एक ग्रामीण की पीठ पर चढ़कर नाला पार कर रहे थे |
कैसा भी लोकतंत्र आ जाए लेकिन लोक-विक्रम के कंधे से यह सत्ता-बेताल उतरने वाला नहीं है |
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