Apr 11, 2019

फ़्लाइंग किस का मनोविज्ञान



' फ़्लाइंग' किस का मनोविज्ञान' 


आज तोताराम ने पूछा- मास्टर, क्या तेरे पास कोई गुप्त खज़ाना है ?

हमने कहा- हाँ है, धर्य का, संतोष का, प्रेम का, शुभकामना का | 

बोला- मैं इन 'अमूल्य' चीजों की बात नहीं कर रहा हूँ |मैं तो मूल्यवान वस्तुओं, नकदी और गहनों की बात कर रहा हूँ |

हमने कहा- कवि के शब्दों में 'अपने जी से समझिए मेरे जी की बात' |तो बस, यही समझ ले कि हमारे पास उतना और वैसा ही गुप्त खज़ाना है जितना तेरे पास |

बोला- तो फिर रात को जब भी तीन-चार बार पेशाब करने उठता है तो टार्च लेकर घर के बाहर सड़क तक आकर किस खतरे को सूँघता है, किस शंका का समाधान करता है |तीन-चार बार खखार कर किसकी शंकास्पद उपस्थिति को हकालने या चेताने का नाटक करता है |

हमने पूछा- लेकिन तुझे कैसे पता ?

बोला- कल रात बंटी जयपुर से लेट नाइट बस से आया था |उसी को जयपुर रोड़ तक लेने गया था तभी तेरा यह नाटक देखा था |अब यह सब चिंता छोड़, निश्चिन्त होकर सोयाकर | तुझे पता होना चाहिए कि अब देश की और तेरी रखवाली के लिए देश के कण-कण में अनेकानेक चौकीदार पैदा हो गए हैं | 

हमने कहा- सब अपने स्वार्थ की चौकीदारी करते हैं |हम तो सभी सरकारों द्वारा घोषित किए गए एक ही वाक्य को सत्य को ब्रह्मवाक्य मानकर चल रहे हैं- 'यात्री अपने सामान की देखभाल  स्वयं करें' |चाहे तो इसमें जान भी जोड़ दे |आज तक पाँच रुपए से लेकर पचास हजार करोड़ तक की कोई भी चोरी पकड़ी गई है ? हाँ, किसी नेता की भैंस खोजने और किसी सांसद के कटहलों की रखवाली के लिए पुलिस ज़रूर तैनात हो जाती है |हमें तो एक चप्पल जोड़ी की चोरी भी भारी पड़ जाएगी |सस्ती से सस्ती जोड़ी भी दो सौ रुपए से कम में नहीं आती |

बोला- तो फिर आजकल यह- 'मैं भी चौकीदार', 'मैं भी चौकीदार' जैसा ट्वीट पर क्या आने लग गया है ? लोग अच्छा भला मंत्री पद छोड़कर पता नहीं चौकीदारी की नौकरी की तरफ क्यों भाग रहे हैं ?

हमने कहा- यह वास्तव में चौकीदारी की नौकरी नहीं है ? चौकीदारी की नौकरी में बारह-बारह घंटे की ड्यूटी होती है और तनख्वाह दस हजार रुपया महिना |इतने में तो एक मंत्री के कपड़ों की धुलाई का खर्चा नहीं निकलता |यह तो प्रतीकात्मक बात है | 

बोला- मैं तो सोच रहा था कि अब ये चौकीदार हमारा सातवें पे कमीशन का एरियर चोरी करके भागे हुए चोर को ज़रूर पकड लेंगे |

हमने कहा- यह मंत्रियों के संवेदना संदेशों की तरह है, उच्चारे गए चुनावी जुमलों की तरह है, चाय या खाट या अब बोट पर की गई चर्चा की तरह है, प्रशंसकों की तरफ फेंकी गई मालाओं की तरह है,  एक ट्वीट में १३५ करोड़ भारतीयों को दी गई होली-दिवाली की शुभकामनाओं की तरह है और किसी रोड़ शो पर निकली विश्व सुंदरी द्वारा उछाले गए 'फ़्लाइंग किस' की तरह है जो किसी तक नहीं पहुँचता | मज़े की बात यह है कि भीड़ में धक्के खाता हर फैन यही समझता है कि यह 'फ़्लाइंग किस' उसीकी तरफ उछाला गया है |और वह बिना बात दीवाना हुआ घूमता रहता है |

तेरी तू जाने लेकिन मैं अपनी चप्पलें किसी 'चुनावी चौकीदर' के भरोसे नहीं छोड़ सकता |और तो और अब रात ही नहीं दिन में भी सावधान रहना पड़ेगा क्योंकि जल्दी ही उचक्के 'संपर्क से समर्थन' के नाम पर 'रेकी' करने के लिए आना शुरू होने वाले हैं |



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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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