Apr 1, 2019

मास्टर, तू कहीं जाता क्यों नहीं



 मास्टर,  तू कहीं जाता क्यों नहीं ? 


तोताराम ने आते ही प्रश्न फेंका- मास्टर, तू कहीं जाता क्यों नहीं ?

हमने कहा- हम कहीं चले गए तो फिर तुझे यह हराम की चाय कहाँ मिलेगी ?

बोला- मास्टर, भले ही तू मेरी उसी तरह से अवमानना कर दे जैसे त्रिपुरा में बिप्लव कुमार देब के शपथ-ग्रहण समारोह में मोदी जी ने अडवानी जी की की थी | 'हराम' शब्द को लेकर खेद तुझे प्रकट करना पड़ेगा लेकिन वैसे नहीं जैसे सांसद शरद त्रिपाठी ने विधायक सतीश सिंह को जूता मारने के बाद प्रकट किया था |और फिर आज के ज़माने में किसके पास समय है जो एक कप चाय के लिए घंटा-दो घंटा खराब करे |चुनावों का सीज़न है | जैसे श्राद्ध पक्ष में जीमने वाले ब्राह्मणों का टोटा रहता है वैसे ही आजकल रैली में जाने वाले, मोटर साइकल पर 'विजय-संकल्प रैली निकालने वाले  पेट्रोल के अलावा खाना और पाँच सौ रुपए में भी जल्दी से नहीं मिल रहे हैं |

हमने कहा- ठीक है, हम खेद प्रकट करते हैं |लेकिन प्रश्न तो अपनी जगह है कि हम कहीं जाते क्यों नहीं ? तो यह बता कि तुझे हमारे यहाँ रहने से क्या परेशानी है ?

बोला- परेशानी कुछ नहीं लेकिन जब आदमी इधर-उधर जाता रहता है तो लगता है कि उसकी डिमांड है |

हमने कहा- जाते क्यों नहीं ? दिन में दो बार दीर्घ और पाँच-छह बार लघु शंका के लिए जाते हैं |महिने में एक बार पेंशन लेने बैंक और एक बार मासिक जमा योजना का ब्याज लेने पोस्ट ऑफिस जाते हैं | वर्ष में एक दिन जीवन-प्रमाण-पत्र देने बैंक जाते हैं |दिन में दो बार अपनी पालतू मीठी को घुमाने जाते हैं |

बोला-यह भी कोई जाना है ? बुढ़ापे में वर्षों से खटिया में पड़ा आदमी भी एक दिन यमदूतों के साथ जाता ही है लेकिन यह क्या आना-जाना ? यह तो शायर के अनुसार-
लायी हयात आए, क़ज़ा ले चली चले
न अपनी ख़ुशी से आए, न अपनी ख़ुशी चले |

जाना तो मोदी जी का है जो बनारस भी माँ गंगा और भोले के बुलाने पर ही जाते हैं |जिसमें कुछ दम होता है उसे जीव क्या,  ब्रह्म तक बार-बार बुलाते हैं |

हमने पूछा- तो गंगा और भोले ने तेरे थ्रू कोई मैसेज भिजवाया था ?

बोला- नहीं, मोदी जी ने खुद ही कहा है |पहले कांग्रेस के द्वारा ५५ साल में गन्दी बना दी गई गंगा ने सफाई के लिए पुकारा और अब जकड़े हुए भोले ने पुकारा |जब एक सामान्य हाथी की पुकार पर भगवान विष्णु नंगे पाँव दौड़ पड़ते हैं तो ये तो सवा करोड़ के प्रधान सेवक और किसान, मजदूर, छोटे व्यापारी, दिव्यांग, महिलाओं सभी के दीनबंधु जो ठहरे |जाते कैसे नहीं |

एक तू है जिसकी किसी को ज़रूरत ही नहीं |कोई आखिर बुलाए भी तो किस काम के लिए |काम के न काज के, दुश्मन अनाज के |

हमने कहा- तोताराम, हम ज्यादा तो कुछ नहीं जानते लेकिन इतना कह सकते हैं कि ये जो चुटकी में दुनिया बदलने वाले चमत्कारी पुरुष घूम रहे हैं इन सबकी कारों का पेट्रोल, इन सब की जैकेट और कुर्तों की बनवाई और धुलाई, बाल-रंगवाई सब हमारे जैसे टेक्स पेयर की जेब से जाती है |इनकी बातों से एक गिलास पानी भी नहीं निकलने का | 

बोला- वैसे तेरा मन हो तो अपने मोहल्ले के भगत जी खाटू श्याम जी जा रहे हैं निशान  लेकर पद-यात्रा पर |प्रसाद, चाय फ्री और एक पीला पटका उपहार में मिलेगा |

हमने कहा- इस भीड़ के भय तो भगवान भी खिसक लिए होंगे |कभी फुर्सत में चलेंगे |वहाँ हमें कौन वी.आई.पी. दर्शन कराने बैठा है ?







 





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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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