Apr 14, 2019

जय जवान से जय दुकान तक



जय जवान से जय दुकान तक 



चुनावों में नेताओं के फोटो तो बहुत पहले से देखते आ रहे थे |इसके बाद दक्षिण में बड़े-बड़े कट आउट का फैशन चला |फिर सभी जगह छोटे-बड़े झंडे बाँटने, लटकाने का दौर चला जिनका सदुपयोग लोगों ने झोले और चड्डी बनवाने में किया |धीरे-धीरे कपड़े की कीमत बढ़ी तो सिंथेटिक पन्नियों के झंडे, फ़र्रियाँ चल पड़े जो दो दिन में ही कूड़ा बनकर सड़कों पर उड़ते फिरते हैं |

इसके बाद मुखौटे आए | नेता तो हमेशा ही कोई न कोई मुखौटा रखते हैं लेकिन अब तो सभा में बैठी भीड़ भी मुखौटों में छुपी नज़र आती है |जैसे नेता वैसे भक्त | असली शक्ल के अभाव में दोनों ही गिरफ्त से बाहर | पिछले चुनाव में बनारस में मोदी साड़ियाँ बाँटी गईं |सूरत का साड़ी उद्योग विकसित हुआ |निर्माता उनके आभारी हैं | वैसे भी चुनाव सामग्री एक बड़ा मौसमी उद्योग है जैसे बारिश में भुट्टा, पकौड़ा, गरमी में गन्ने का रस | राखी, पटाखे, पिचकारी, दीये, मोमबत्ती भी त्योहारों में मौसमी व्यवसाय हैं |लेकिन साड़ी कई दिन तक काम आने वाली वस्तु है | अब तो साड़ियों पर मोदी जी के साथ-साथ अभिनन्दन, सर्जिकल स्ट्राइक और योगी जी तक आगए |

जब हमने तोताराम को नेट पर इन साड़ियों के फोटो दिखाए तो बोला- देखा, इसे कहते हैं इन्नोवेटिव लोकतंत्र |ऐसे पहुंँचते हैं घर-घर और अब तो साड़ियों पर छपकर रोम-रोम में रम रहे हैं |

हमने कहा- लेकिन तोताराम, हमें इसमें कुछ सांस्कृतिक और नैतिक समस्या नज़र आती है |मोदी जी कहने को विवाहित हैं लेकिन देश सेवा और संसार के उद्धार के लिए ब्रह्मचर्य में दीक्षित | दूसरे योगी जी ब्रह्म से साक्षात्कार के लिए अखंड ब्रह्मचारी हैं |क्या इनका साड़ियों पर छपना और महिलाओं के अंगों पर सजना अच्छा लगता है ? क्या इसमें तुझे कहीं कोई नैतिक समस्या या विसंगति तो नहीं लगती ? इससे अच्छा तो यह रहता कि ये अपने नाम और फोटो वाली ध्वजाएँ छपवाते जो लोग अपने घरों, दुकानों, पर फहराते या फिर कोई तिरपाल छपवाते जिन्हें गरीब लोग अपने टपकते छप्पर पर लगा लेते |

बोला- यह सौदा दोनों ही पक्षों को महँगा पड़ता और फिर तिरपाल की बजाय साड़ी पर निगाह ज्यादा पड़ती है |अब यह पता नहीं कि वह नेताओं के फोटो के कारण पड़ती है या पहनने वाली के सौन्दर्य के कारण |यह तो बाज़ार है नेताओं का, साड़ियों, मुखौटों का, जुमलों का, कंडोम का, लंगोट का | इसे न किसी नेता से मतलब है और न किसी नैतिकता से |बाज़ार दवा और दारू, कफ़न और कॉफ़ी, लड़की और लौकी समान तत्परता और निस्पृहता से बेचता है |
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हमने कहा- वैसे हम भी यह जानते हैं कि दुकान में  हनी सिंह और हनुमान जी के कैलेण्डर और कैसेट साथ-साथ रखे रहते हैं |तुम अपने घर लाकर गीता-कुरान और बाइबल को आदर से सजाकर रखते हो लेकिन दुकानदार के लिए तो वह एक वस्तु है | उसे बिक्री और नफे के अनुसार महत्त्व मिलता है |हमें तो सबसे बड़ी चिंता यह है कि हर वस्तु को कभी न कभी पुरानी या बेकार होने पर नाली और कूड़े-कचरे में ही जाना पड़ता है |उस स्थिति में साड़ियों पर छपने वाली इन महान हस्तियों का कितना अपमान होगा ? 

बोला- इसीलिए तो अति को बुरा कहा गया है | मंदिर और मस्जिद के पास रहने वाले के लिए माइक की तेज़ आवाज़ भी सुनी-अनसुनी हो जाती है |पहले प्रसून जोशी के 'स्वच्छता की नदी' वाले सफाई-गीत से चिढ़ होती थी | अब पता नहीं उसे रोज बजाती हुई आने वाली कूड़े की गाड़ी कब आकर चली जाती है ? ऐसे ही इन साड़ियों और मुखौटों का होने वाला है |



  











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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

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