चार दिन की चाँदनी
तोताराम ने आते ही हमसे दरयाफ्त किया- और मास्टर, चाँदनी रात में नौका विहार कैसा रहा ?
हमने कहा- हमने तो कभी कोई नौका विहार नहीं किया ? फिर क्या बताएँ कैसा रहा ? हाँ, पन्त जी वाली 'चाँदनी रात में नौका विहार' कविता ज़रूर पढ़ी है |क्या कविता है ! क्या प्रवाह, क्या शब्द चयन ! घर में बैठकर पढ़ने वाले को भी लगता है जैसे वह खुद ही एक झूले में झूलता-सा मंथर गति से तिरता चला जा रहा है |
कालाकांकर के राजमहल में निवास, राजा साहब के साथ उनकी शानदार नाव में चाँदनी रात में गंगा की लहरों पर नौका विहार, गप्प गोष्ठी, बढ़िया खाना, पेय भी हो तो पता नहीं | न अगले दिन ड्यूटी पर जाने की चिंता, न नाव वालों के किसी बिल की फ़िक्र | इसी मज़े में आकर पन्त जी के कंठ से यह कविता स्वतः फूट पड़ी थी |अंत में आकर तो पन्त जी ने उसे क्या आध्यात्मिक रंग दे दिया-
हे जग-जीवन के कर्णधार !
चिर जन्म-मरण के आर-पार,
शाश्वत जीवन-नौका-विहार।
बोला- वैसे तो बड़ा व्यंग्यकार बना फिरता है लेकिन इस ज़रा से इशारे तक को नहीं समझा |मैं प्रियंका गाँधी की 'बोट पे चर्चा' की बात कर रहा हूँ |
हमने कहा- तोताराम, राजनीति में चर्चा का यह नया ट्रेंड मोदी जी ने २०१४ में 'चाय पर चर्चा' से चलाया और बहुत सफलता पूर्वक चलाया |वैसे भी कितना बढ़िया अनुप्रास अलंकर है 'चाय पर चर्चा' | कुछ भी कहो तोताराम, बन्दा अनुप्रास का तो मास्टर ही है |क्या रोना, क्या गाना | प्रशंसा तो प्रशंसा, गाली भी अनुप्रास में ही देता है |
ठीक है, चुनाव में बहुत कुछ देखा-देखी का भी करना पड़ता है लेकिन जो रवानी 'चाय पर चर्चा' में है वह न तो पिछली बार उत्तर प्रदेश में राहुल के खाट पर चर्चा वाले खटराग में थी और न ही प्रियंका के इस 'बोट पे चर्चा' में है | बहुतों को तो यह समझ नहीं आएगा कि यह 'बोट पे चर्चा' है या 'वोट पे चर्चा' है |और फिर कोई भी चर्चा बिना चाय के हो भी तो नहीं सकती |पहले भी चौपाल में चर्चा होती थी तो चिलम-तम्बाकू पर होती थी या फिर चंडूखाने में ताड़ी पर होती थी |
बोला- इसमें गलती कार्यक्रम की नहीं समझने वाले की है |किसे राम की तरह सरयू पार करनी है |जिसे चुनाव की वैतरणी पार करनी है वह वोट के अलावा किसी और विषय पर चर्चा करेगा ही क्यों ? किस को परलोक की फ़िक्र है जो कीर्तन करेगा ? सबको सत्ता प्राप्त करके यह लोक सुधारना है |वैसे यदि चाय होती भी तो पीना आसान नहीं होता क्योंकि हिलते-डुलते बोट में चाय छलक नहीं जाती ?
हमने कहा- क्यों ? यह कोई तुम्हारे-हमारे जैसे के लिए अस्सी घाट से रामनगर की तरफ जाने वाली कोई डोंगी थोड़े ही है |यह क्रूज शिप जैसा सर्व सुविधायुक्त बढ़िया मोटर बोट है |समय कम है इसलिए चाय-वाय का कोई चक्कर नहीं | छात्र-छात्राएँ फोटो खिंचवाकर और ज्यादा हुआ तो सेल्फी लेकर चले जाएंगे |
बोला- तो फिर संस्कृति मंत्री महेश शर्मा क्यों परेशान हैं ? डरकर 'पप्पू-पप्पी' की गंध फैला रहे हैं |
हमने कहा- इसके कई कारण है- एक,वे गौतमबुद्ध नगर में बोल रहे थे जो सत्य अहिंसा के प्रतीक माने जाते हैं; दूसरे वे केंद्र में संस्कृति मंत्री हैं और वह भी सांस्कृतिक पार्टी से |इसलिए उनके केंद्र में और परिधि में सभी जगह संस्कृति ही संस्कृति रहती है |प्यार से माँ-बाप बच्चों को पप्पू कहते हैं |हमारी संस्कृति में बच्चों का बहुत महत्त्व है |उनके लिए परिवार, समाज, विद्यालय सभी जगह वात्सल्य और स्नेह की आशा की जाती है | इसलिए वे इन्हें पप्पू-पप्पी कह रहे हैं |
बोला- सो तो संस्कृति वालों की 'वाट्सअप वाहिनी' में इसी वात्सल्य, सांस्कृतिकता और शालीनता की सरिता में आई हुई बाढ़ से ही पता चलता है |
हमने कहा- खैर, चाहे इनका 'नौका-विहार' हो या उनका 'चरण प्रक्षालन' सामान्य आदमी के लिए तो हर चाँदनी चार दिन की ही होती है |जीवन तो अँधेरे में ही कटता है |गरीबी हटाओ और शाइनिंग इण्डिया और अच्छे दिन सब एक ही जुमले के पर्याय हैं |
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(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach
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