Apr 2, 2019

मूँछ और बल



मूँछ और बल 



वैसे तो तोताराम को जब भी कोई महत्त्वपूर्ण बात करनी होती है तो पहले हमारे सामने अख़बार रखता है और फिर कोई प्रश्न | लेकिन आज आते ही बिना किसी सन्दर्भ के एक छोटी सी फोटो हमारे सामने रखते हुए बोला- बता, यह कौन है ?

दोनों आँखों का मोतियाबिंद का ओपरेशन करवाने के बावजूद अब हालत यह हो गई है कि यदि कोई हमें हमारा ही जवानी का फोटो पहचानने को कह दे तो अकबका जाते हैं |दिमाग का हाल यह है कि जयशंकर  प्रसाद और रविशंकर प्रसाद में फर्क नहीं कर पाते, जसवंत सिंह और यशवंत सिन्हा में भेद नहीं समझ आता, हाफिज सईद और अज़हर मसूद दोनों एक से ही लगते हैं |लगता है यही हाल रहा तो अगले पाँच साल में  गाँधी और गोडसे भी गड्डमड्ड हो जाएँगे | ऐसे में कैसे पहचानें यह फोटो | 


In the two-minute video of Nirav Modi on Twitter, he can be seen dodging questions. (Photo:The Telegraph)

जब ध्यान से देखा तो पाया कि आँखों में अलौकिक दृढ़ता, ओठों पर एक गंभीर और शहीदी मुस्कान, कुछ-कुछ राजपूती झलक देती कोनों से तनिक मुड़ी मूँछें और किसी योद्धा के ज़िरह-बख्तर जैसी जैकेट |

हमने कहा- तोताराम, लगता है हमारा कोई वीर योद्धा है जिसे पाकिस्तान सरकार ने हमारी 'घर में घुसकर मारने' की धमकियों से डरकर ससम्मान छोड़ दिया है |

बोला- बस, खा गया न धोखा ! अरे, यह अपने नीरव भाई मोदी हैं |आजकल लन्दन में तशरीफ फरमा हैं | मूँछों का रोब ही कुछ ऐसा पड़ रहा है |महानायक अमित जी को फिल्म 'एकलव्य' में देखा नहीं अपनी राजस्थानी स्टाइल की दाढ़ी-मूँछों में ? एकदम भीष्म पितामह जैसे लग रहे थे | पृथ्वीराज चौहान, महाराणा प्रताप, भरतपुर वाले महाराजा सूरजमल और अब अपने अभिनन्दन |इनके बारे में कुछ न जानने वाला भी इनके व्यक्तित्त्व से प्रभावित हो जाता है |  

हमने कहा- लेकिन तोताराम, राम को तो हमने बिना दाढ़ी-मूँछों के ही देखा है जब कि रावण के बड़ी-बड़ी मूँछें | कृष्ण क्लीन शेव्ड और कंस के बड़ी-बड़ी मूँछें | सिकंदर भी मूँछें नहीं रखता था |द्वितीय विश्व युद्ध के विजेता ब्रिटेन के चर्चिल, फ़्रांस के डगाल, अमरीका के आइज़नहावर भी क्लीन शेव्ड ही थे |

बोला- लेकिन असली विजेता तो मूँछ वाला रूस का स्टालिन ही था जिसने हिटलर को वापिस जर्मनी तक दौड़ा दिया था |

हमने कहा- लेकिन १९६५ में पाकिस्तान को मात देने वाले शास्त्री जी क्या मूँछें रखते थे ? वीरता दाढ़ी-मूँछों, हथियारों, गाली-गलौज, मुहावरेबाजी में नहीं बल्कि वह तो मन में स्थित लोकहित के हिमाद्रि से निरंतर और स्वतः संचरित होने वाली अलकनंदा है |युद्धवीर ही वीर नहीं होते; धर्मवीर और दानवीर भी तो वीर ही होते हैं | गाँधी और भगतसिंह की वीरता में मात्र स्वरूप का अंतर है |अभिनन्दन अपने साहस के कारण अभिनंदनीय हैं; न कि मूँछों के कारण |यह बात और है कि उनकी मूँछें भी बहुत शानदार हैं |

बोला- लेकिन एक शब्द 'वाग्वीर' भी तो होता है |

हमने कहा- इसी प्रकार के वीरों के 'बल' के बारे में ही रामचरित में तुलसी कहते हैं- कहते हैं-
लोभ के ईछा दंभ बल, काम के केवल नारि |
क्रोध के परुष बचन बल मुनिबर कहहिं बिचारि ||



अर्थात श्रेष्ठ मुनिगण विचार करके ऐसा कहते हैं कि लोभ को इच्छा और दंभ का बल है, काम को केवल स्त्री का बल है और क्रोध को कठोर वचनों का बल है |
इसीलिए वीरता का स्थायी भाव 'क्रोध' नहीं बल्कि 'उत्साह' माना गया है |उत्साही निरंतर उत्साहपूर्वक कर्म करता है जब कि क्रोधी केवल कठोर वचनों से काम चलाना चाहता है क्योंकि उसका वही 'बल' है |





पोस्ट पसंद आई तो मित्र बनिए (क्लिक करें)


(c) सर्वाधिकार सुरक्षित - रमेश जोशी । प्रकाशित या प्रकाशनाधीन । Ramesh Joshi. All rights reserved. All material is either published or under publication. Jhootha Sach

No comments:

Post a Comment